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निराश्रित महिलाओं के भरण-पोषण का केस तय करने में देरी न करे अदालतें : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 23 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीशों को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग करना चाहिए। न्यायाधीशों को निराश्रित महिलाओं से सम्बंधित भरण-पोषण मामलों के शीघ्र निपटारे को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो अपने माता-पिता, ससुराल वालों या पतियों से सहायता के बिना रह जाती हैं।

न्यायालय ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि समाज में बुनियादी भरण-पोषण और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को न्याय में देरी न हो। यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने आपराधिक पुनरीक्षण अर्जी पर दिया।

सहारनपुर निवासी महिला ने पारिवारिक न्यायालय में अपने पति से भरण-पोषण के लिए वाद दायर किया था। 2019 में पारिवारिक अदालत ने पत्नी को पांच हजार और उसके नाबालिग बच्चे को तीन हजार रुपये भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। भरण पोषण भत्ते के आदेश के खिलाफ पति की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए 2023 में एकपक्षीय आदेश को रद्द कर दिया गया। इसके खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई।

याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को कुछ विसंगतियां नजर आईं और उसने भरण-पोषण के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन के सम्बंध में सहारनपुर की पारिवारिक अदालतों से रिपोर्ट मांगी।

अदालत ने 9 दिसम्बर को पारित आदेश में कहा, “मैं रिपोर्ट की विषय-वस्तु पर विस्तार से चर्चा नहीं करना उचित समझता हूं। पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने अदालत को आश्वासन दिया है कि पारिवारिक न्यायालयों ने उपर्युक्त निर्णय में जारी निर्देशों का पालन करना शुरू कर दिया है।“ गुण-दोष के आधार पर न्यायालय ने 1 मई को मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के पास वापस भेज दिया था। न्यायालय ने उम्मीद जताई कि अब तक मामले का निर्णय हो चुका होगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि मामला अभी भी लम्बित है, तो सम्बंधित पक्षों को 9 दिसम्बर के आदेश की प्रति प्राप्त होने के बाद तीन सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय लिया जाना चाहिए।

न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण के दौरान किया जाए जागरूकइलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक को निर्देश दिया कि वे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे न्यायिक अधिकारियों को न्यायिक अनुशासन और भरण-पोषण के सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय की ओर से जारी निर्देशों के अनुपालन में जागरूक करें। उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में आवश्यक बिंदुओं की एक सूची तैयार की जानी चाहिए, जिसमें क्या करना है, इसकी स्पष्ट रूपरेखा भी शामिल होनी चाहिए। साथ ही समय-समय पर पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच इसे प्रसारित की जानी चाहिए।

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