वाराणसी । अगर कोई आपका परिचित लगातार गुमसुम दिखे या फिर घर परिवार में भी अलग-थलग रहे तो इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। उसे मनो चिकित्सक के पास ले जाए। सही परामर्श के साथ इलाज कराने के बाद पीड़ित सामान्य हो जाएगा। दरअसल कॅरियर में पिछड़ने, तनावपूर्ण प्रतिस्पर्धा भरा जीवन शैली व अन्य कारणों से अलग—थलग होकर गुमसुम रहने लगते हैं। अधिक समय तक ऐसे हालात में रहने पर उन्हें मानसिक बीमारी ( साइकेटिक डिसऑर्डर) सीजोफ्रेनिया होने की आशंशा रहती है। हालत बिगड़ने पर पीड़ित को लगता था कि कुछ लोग उसे मारने के चक्कर में हैं। पीड़ित अपने मिलने वालों से यह शिकायत करने लगते हैं। अक्सर उनकी शिकायत की पड़ताल करने पर परिजनों को ऐसा कुछ नहीं मिला। इसके बाद परिजन उसकी बातों की अनदेखी करने लगते हैं।
नगर के मनोचिकित्सक डाॅ. हेमंत सिंह ने मीडिया से बात करते हुए बताते हैं कि लम्बे समय से समाज से कटने के बाद उपजे हालात, आर्थिक स्थिति से भी लोगों में अवसाद और असुरक्षा का भाव बढ़ा है। उन्होंने बताया कि सीजोफ्रेनिया के शिकार ज्यादातर युवा ही बनते हैं। इस रोग में पीड़ित व्यक्ति को हमेशा तरह-तरह की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। उसे हमेशा लगता है कि उसके आसपास के लोग उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। लोग उसका पीछा कर रहे हैं। कभी भी उस पर हमला कर सकते हैं। डाॅ. हेमंत सिंह ने बताया कि ऐसी स्थिति में मरीज की सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और वह कोई निर्णय भी नहीं ले पाता है। ऐसी स्थिति ज्यादातार अकेले रहने पर उपजती है।
इस रोग के लक्षणों में समाज से अलग—थलग रहना, कपड़े ठीक से न पहनना, साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देना, बहुत कम बोलना, अकेले में बड़बड़ाना, कभी अनायास हंसना और तेज—तेज रोना है। उन्होंने बताया कि सीजोफ्रेनिया होने के कोई खास कारण नहीं हैं। आनुवंशिक, पारिवारिक तनाव या बचपन की कुछ अप्रिय घटनाएं, सामाजिक प्रभाव, डिप्रेशन, तनाव या फिर अपनी खुद की आदतें हैं। उन्होंने बताया कि दिमाग में बाॅयोकेमिकल बदलाव, मस्तिष्क के चेतन तंतुओं के बीच के रासायनिक तत्वों में होने वाले परिवर्तन भी रोग का कारण बनते हैं। माता-पिता में से कोई एक सीजोफ्रेनिया का शिकार हो तो बच्चे में इस रोग के होने की आशंका बढ़ जाती है। अगर दोनों पीड़ित हों, तो बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका पचास फीसदी से अधिक बढ़ जाती है।
उन्होंने बताया कि इस रोग का इलाज बेहतर व्यवहार और दवाओं से संभव है। इसमें खास न्यू जनरेशन एंटी साइकेटिक दवाएं, आधुनिक ईसीटी और सही इलाज और देखभाल से मरीज सामान्य हो सकता है। लेकिन दवाओं का जरूरत पड़ती रहेगी। उन्होंने कहा कि ऐसे रोगियों को पारिवारिक सहयोग और स्नेह की जरूरत होती है। मरीज के परिवार को उसका साथ देना चाहिए। उसे समझें। ऐसे मरीज को व्यस्त रखने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि सिजोफ्रेनिया को मानसिक बीमारियों में सबसे खतरनाक माना जाता है। सिजोफ्रेनिया का अगर सही इलाज न किया जाए तो करीब 25 फीसदी मरीजों के आत्महत्या करने का खतरा बढ़ जाता है।