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अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने पर बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों ने फहराया था तिरंगा, घर-घर जले थे दीये

हमीरपुर, (हि.स.)। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए यहां के तमाम क्रांतिकारियों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू समेत तमाम बड़े नेताओं ने भी यहां आकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों में जोश भरा था। अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद क्रांतिकारियों ने एक प्राचीन मंदिर में सामूहिक रूप से तिरंगा फहराकर जश्न मनाया था। इतना ही नहीं वीरभूमि में हर गांव में अंग्रेजों के देश छोड़ने पर घरों में दीये जलाए गए थे। जश्र के माहौल में आतिशबाजी भी की गई थी।

हमीरपुर जिले के मुस्करा थाना क्षेत्र के गहरौली गांव में बांके बिहारी जू मंदिर स्थित है। इसका इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। मंदिर में पहले अवध बिहारी महंत होते थे जिनके चमत्कार को आज भी गांव के लोग याद करते हैं। मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि जिले का यही एक मंदिर है जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अतीत को संजोए है। मंदिर की देखरेख करने वाले विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि इस मंदिर को सरकारी स्तर पर संवारने के लिए कोई मदद नहीं मिली है लेकिन स्वयं के खर्च से मंदिर को नए आयाम दिए गए हैं।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.जयकरन सिंह की 105 वर्षीय पत्नी विजय कुमारी ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ हर गांव में लोग सड़क पर आए थे। बांके बिहारी जूदेव मंदिर समेत तमाम मंदिरों में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी फौजों से बचने के लिए शरण ली थी। कुछ विभीषण के कारण क्रांतिकारियों को आंदोलन के दौरान बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। अंग्रेजों की सत्ता खत्म होने पर शहर और कस्बों से लेकर गांव-गांव तक लोगों ने दीये जलाकर खुशियां मनाई थी। ऐतिहासिक मंदिरों और गांवों में लोगों ने सामूहिक रूप से आजादी का जश्र मनाया था। आतिशबाजी से दीपावली जैसा माहौल हो गया था।

गांव के बुजुर्ग विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ यहां गांव के एतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के तहखाने में सेनानियों ने रणनीति बनाई थी। अंग्रेजों को भगाने के लिए बड़ा आंदोलन चला था जिसके बाद अंग्रेज अफसर भागने को मजबूर हो गए थे। 96 वर्षीय चन्द्रशेखर शुक्ला व जयनारायण गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों को भागने के बांद आजादी का जश्न मनाया गया था। तिरंगा फहराकर घर-घर दीये भी जलाए गए थे। आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर मंदिर को अब सजाया जा रहा है। गांव में आजादी की सालगिरह पर कार्यक्रम भी करने की तैयारी शुरू की गई है।

धनीराम गुरुदेव ने अपने अनुज पं.उधवराज के पुत्र प्रागदत्त के जन्मोत्सव पर इस मंदिर का निर्माण 1872 में कराया था। चूना, मिट्टी और कंकरीले पत्थरों से निर्मित मंदिर में भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। मंदिर की छत से सटे कंगूरे, प्रमुख द्वार से लेकर बांके बिहारी महाराज के विराजमान स्थल तक फूल पत्ती, तैल चित्र और सनातनी देवी देवताओं की प्रतिमायें अंकित हैं। गहरौली गांव के भगवान का शृंगार सोने और चांदी से निर्मित है। मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है। पच्चीस गांवों से इसे देखा जा सकता है।

गहरौली गांव में बांके बिहारी जू देव मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों ने इस मंदिर से ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोला था। मंदिर के तहखाने में बुंदेलखंड केसरी नाम का अखबार टाइप करके निकाला जाता था। क्रांतिकारी पंडित मन्नीलाल गुरुदेव के नेतृत्व में बैजनाथ पाण्डेय, नत्थू वर्मा, जगरूप सिंह इस अखबार को चोरी छिपे बांटते थे। ये अखबार भी अंग्रेजों के खिलाफ जनता को लामबंद करने के लिए प्रेरित करता था। क्रांतिकारी अंग्रेजों से बचने के लिए सुरंग के जरिये मंदिर में आते जाते थे।

राजा भइया दीक्षित ने बताया कि सौ साल पहले गहरौली गांव में प्रजापति बिरादरी के घर बरात आयी थी। बारात में किसी बात को लेकर विवाद हो गया तो सैकड़ों बारातियों के लिए पंडित मन्नीलाल गुरुदेव ने सुरंग से भागने का रास्ता दिखाया था। कन्या पक्ष के लोगों के हल्ला बोलने पर दूल्हा सहित सभी बराती मंदिर के सुरंग में घुस गये थे फिर सुरंग के सहारे जान बचाकर घर भागे थे। मंदिर में सुरंग का आखिरी छोर गांव के बाहर खत्म होता है। इस मंदिर के तहखाने व सुरंग को फिलहाल बंद किया जा चुका है।

पंडित नेहरू ने लोगों में भरा था जोश

मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि वर्ष 1937 में कांग्रेस का पहला अधिवेशन इसी मंदिर के परिसर में हुआ था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू औैर पूर्व मुख्यमंत्री नारायन दत्त तिवारी सहित तमाम नेता आये थे। इस अधिवेशन में इंदिरा गांधी भी पंडित नेहरू के साथ आयी थी। उस समय उनकी उम्र सिर्फ दस साल की थी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से पार्टी के जिलास्तरीय अधिवेशन में पंडित नेहरू एवं इंदिरा ने ताम्रपत्र दिया था।

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