सोनभद्र । यूपी की सबसे आखिरी सीट राबटर्सगंज पर सत्तापक्ष और प्रमुख विपक्षी दल की तरफ से टिकट को लेकर बना सस्पेंश आए दिन नया समीकरण बनाने में लगा है। सत्तापक्ष की तरफ से टिकट की घोषणा के साथ ही, भाजपा के पूर्व सांसद छोटलाल खरवार की सपा में इंट्री की सामने आई जानकारी ने अचानक से समीकरण बदलकर रख दिया है। अब एक बार फिर राबटर्सगंज सीट हॉट सीट में शुमार हो गई है। अब सपा से छोटेलाल को टिकट मिलता है या फिर कोई और बाजी मार जाता है? आगे चलकर चुनावी समीकरण किस तरह की करवट लेता है? इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। छोटेलाल वर्ष 2014 में राबटर्सगंज सीट से भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए थे। उन्हें रिकार्ड मतों से जीत हासिल कर, जीत के अंतर का एक नया रिकार्ड भी बनाया था लेकिन वर्ष 2019 में यह सीट अपना दल एस के खाते में जाने के बाद उनका सियासी सफर ब्रेक हो गया। इसके बाद उन्होंने पत्नी के जरिए मजबूत सियासी दस्तक देने की कोशिश की लेकिन पार्टी से उन्हें निराशा हाथ लगी।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने खुलकर नाराजगी जहिर की और उपेक्षा का आरोप लगाकर, शीर्ष नेतृत्व तक हड़कंप मचा कर रख दिया था। सदर विधानसभा सीट पर कांटे की लड़ाई को देखते हुए, किसी तरह छोटेलाल को मनाया गया था। उस समय यह बात भी सामने आई थी कि उन्हें 2024 के चुनाव में सांसदी का टिकट देने का भरोसा दिया गया है लेकिन जैसे ही वर्ष 2019 की तरह 2024 में भी राबटर्सगंज सीट अद एस के कोटे में जाने की बात सामने आई उन्होंने अलग रास्ता तलाशना शुरू कर दिया। अद एस की तरफ से मंगलवार की शाम जैसे ही रिंकी कोल को प्रत्याशी बनाने की जानकारी सामने आई। वैसे ही छोटेलाल खरवार को सपा का दामन थामने की चर्चाएं तेज हो गईं। बुधवार को पता चला कि उन्होंने लगभग 10 दिन पूर्व ही सपा सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। प्राथमिक सदस्यता सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।
सिर्फ अब पार्टी हाईकमान की तरफ से इसको सार्वजनिक किया जाना बाकी है। सेलफोन पर हुई वार्ता में दबी जुबान सपा के कई दिग्गजों के साथ ही पूर्व सांसद ने इस बात को स्वीकार किया। यह भी बात सामने आई कि पूर्व सासंद की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ टिकट और चुनावी समीकरण दोनों को लेकर मीटिंग भी हो चुकी है। बुधवार देर रात या बृहस्पतिवार सुबह तक सपा की ओर से टिकट की तस्वीर भी स्पष्ट होने की उम्मीद जताई जा रही है। – छोटेलाल को सपा का दामन थामने से जहां भाजपा के सामने उसका एक मजबूत आदिवासी वोट बैंक दरकने का खतरा मंडराने लगा है। वहीं दुद्धी विधानसभा में हो उपचुनाव में इस कथित वोट बैंक को जिताऊ समीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। चुनावी परिणाम क्या होगा? यह तो चार जून को आने वाला परिणाम तय करेगा लेकिन जिस तरह से अचानक से समीकरण बदले हैं, उससे यह तस्वीर तो साफ हो गई है कि लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव दोनों में चुनावी संघर्ष कांटे का रहने वाला है।