लखनऊ (हि.स.)। उत्तर प्रदेश का सीतापुर जिला ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से बेहद अहम है। यह जिला नैमिषारण्य तीर्थ के कारण प्रसिद्ध है। जिले का दरी उद्योग अपने आप में एक अलग स्थान रखता है। राजनीतिक तौर पर प्रदेश और देश की राजनीति में सीतापुर की अहम भूमिका रही है। उप्र की संसदीय सीट संख्या 30 सीतापुर में चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होगी।
सीतापुर लोकसभा सीट का इतिहास
सीतापुर लोकसभा क्षेत्र का पहला आम चुनाव 1951 में हुआ था। उस समय एक सीट पर दो सांसद चुने का प्रावधान था। डबल सीट की व्यवस्था दूसरे चुनाव 1957 तक जारी रही। सन् 1952-62 तक इस सीट पर कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। उसके बाद वर्श 1962-71 तक यहां भारतीय जनसंघ का कब्जा रहा। सन् 1971-77 में कांग्रेस ने यहां वापसी की। सन् 1977-80 में यह सीट लोकदल के खाते में चली गई। कांग्रेस ने सन् 1980-91 के बीच यहां हैट्रिक लगाई। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी जीती हैं।
राजेश वर्मा यहां से रिकॉर्ड चार बार सांसद रह चुके हैं। 2014 और 2019 के चुनाव यहां भाजपा जीती है। भाजपा इस सीट पर हैट्रिक लगाने की तैयारी में है। कांग्रेस और सपा आखिरी बार इस सीट से क्रमश: 35 और 28 साल पहले जीते थे। इस सीट से अब तक कोई निर्दलीय नहीं जीता।
पिछले दो चुनावों का हाल
2019 के लोकसभा चुनाव के सीतापुर संसदीय सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा ने चुनाव में राजेश वर्मा को टिकट दिया तो बसपा ने नकुल दुबे को मैदान में उतारा। बसपा-सपा के गठबंधन के बाद भी बसपा को जीत नहीं मिली। राजेश वर्मा को चुनाव में 514,528 (48.3%) वोट मिले तो नकुल दुबे के खाते में 413,695 (38.84%) वोट गए थे। राजेश वर्मा ने 1 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीत हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी कैसर जहां 96,018 (9.01%) वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा को तब के चुनाव में 417,546 (40.66%) वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर रही बसपा उम्मीदवार कैसर जहां को 366,519 (35.69%) वोट हासिल हुए। सपा और कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे और चौथे स्थान पर रहे।
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने तीसरी बार राजेश वर्मा पर भरोसा जताया है। बसपा से महेन्द्र सिंह यादव मैदान में हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन में ये सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने राकेश राठौर पर दांव लगाया है।
सीतापुर सीट का जातीय समीकरण
इस सीट पर 17 लाख 47 हजार 932 वोटर्स हैं। इनमें से 81 फीसदी वोटर ग्रामीण हैं, जबकि शहरी एरिया मात्र 19 फीसदी है। सीतापुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 28.1 फीसदी एससी-एसटी मतदाता हैं। यह वर्ग बसपा का कैडर वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा करीब 23 फीसदी सामान्य, 27.9 फीसदी पिछड़ा वर्ग एवं 21 फीसदी मुस्लिम मतदाता है।
विधानसभा सीटों का हाल
सीतापुर जिले की बात करें तो यहां पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें सीतापुर, महमूदाबाद, लहरपुर, बिसवां ओर सेवता शामिल हैं। इन सीटों में लहरपुर पर सपा के विधायक हैं, बाकी सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
जीत का गणित और चुनौतियां
सीतापुर संसदीय क्षेत्र के चुनाव मैदान में उतरे तीन प्रमुख दलों के प्रत्याशी पुराने साथी हैं। कांग्रेस ने पूर्व विधायक राकेश राठौर और बसपा ने पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। वर्ष 2019 के चुनाव में ये दोनों भाजपा में थे। भाजपा ने लगातार दो बार यहां से जीत दर्ज की है, और राजेश वर्मा को फिर से टिकट देकर वह मुकाबले में मजबूत मानी जा रही है। भाजपा प्रत्याशी डबल इंजन के विकास कार्य जनता को गिना रहे हैं तो वहीं विपक्ष का फोकस समस्याओं और कमियों पर है। पिछले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन का फायदा बसपा को मिला था। इस बार बसपा अकेले मैदान में है। ऐसे में यहां चुनावी समर त्रिकोणीय बना हुआ है।
स्थानीय समाजसेवी अखिलेश अवस्थी के अनुसार, चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है, जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिलेगा। इस बार में बसपा अकेले मैदान में है ऐसे में उसे कम आंकना बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही ठीक नहीं होगा।
सीतापुर से कौन कब बना सांसद
1952 परागी लाल/ उमा नेहरू (कांग्रेस)
1957 परागी लाल/ उमा नेहरू (कांग्रेस)
1962 सूरज लाल (जनसंघ)
1967 शारदानंद दीक्षित (भारतीय जनसंघ)
1971 जगदीश चंद्र दीक्षित (कांग्रेस)
1977 हरगोविंद वर्मा (भारतीय लोकदल)
1980 राजेन्द्र कुमार बाजपेई (कांग्रेस आई)
1984 राजेन्द्र कुमारी वाजपेई (कांग्रेस)
1989 राजेन्द्र कुमारी वाजपेई (कांग्रेस)
1991 जनार्दन प्रसाद मिश्र (भाजपा)
1996 मुख्तार अनीस (सपा)
1998 जनार्दन प्रसाद मिश्र (भाजपा)
1999 राजेश वर्मा (बसपा)
2004 राजेश वर्मा (बसपा)
2009 कैसर जहां (बसपा)
2014 राजेश वर्मा (भाजपा)