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यूपी का रण : इस जिले में है वोटों के बिखराव के बीच कांटे की जंग, सपा-बसपा ने साथ चुनाव लड़कर 2019 में….

2014 की अपेक्षा 2019 में भाजपा के वोटों में हुई थी बढ़ोतरी
सपा-बसपा ने साथ चुनाव लड़कर 2019 में भाजपा को हराया था

जौनपुर। जौनपुर की जनसांख्यिकी विविधताओं से भरी है और चुनावी नजरिए से यह उत्तर प्रदेश के लोक सभा क्षेत्रों में रोचक और अहम है। अंतिम चरण में चुनाव होने के कारण यहाँ कयासों का दौर लंबे समय तक चलता है। बीते दो लोकसभा चुनावों के नतीजों पर गौर करें तो भाजपा के कुल वोटों में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई किंतु 2019 में सपा बसपा के गठबंधन तथा धनंजय सिंह के चुनाव ना लड़ने पर सभी वोट बसपा प्रत्याशी को चले गए जिसके चलते भाजपा को यह सीट गवानी पड़ी।ऐसे में 2024 में जब सपा व बसपा ने अपने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए है तो वोटों के बंटवारे में किसे विजयश्री मिलेगी यह तो यक्षप्रश्न है। आंकड़ांे पर गौर करें तो जौनपुर लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान 1848842 मतदाता दर्ज थे। उस चुनाव में भाजपा पार्टी के प्रत्याशी कृष्ण प्रताप श्केपीश् ने कुल 367149 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। उन्हें डाले गए वोटों में से 36.45 प्रतिशत वोट मिले थे। उधर, दूसरे स्थान पर रहे बसपा पार्टी के उम्मीदवार सुभाष पांडे को 220839 मतदाताओं का समर्थन हासिल हो सका था, जो कुल वोटों का 21.93 प्रतिशत था। इस चुनाव पर जीत का अंतर 146310 रहा था। वहीं तीसरे स्थान पर रहे सपा के पारसनाथ यादव को 180003 वोट जबकि निर्दलीय धनंजय सिंह को 64137 वोट प्राप्त हुए थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में इस सीट पर कुल 1867976 मतदाता थे जिसमें बसपा प्रत्याशी श्याम सिंह यादव को जीत हासिल हुई थी, और उन्हें 521128 वोट हासिल हुए थे।

 

इस चुनाव में श्याम सिंह यादव को डाले गए वोटों में से 50.02 प्रतिशत मिले थे।जिसमे सपा व बसपा के कोर वोटों के साथ धनंजय सिंह के चुनाव ना लड़ने पर समर्थकों के वोट भी विभिन्न पार्टियों में बट गए, जिसका लाभ भी बसपा प्रत्याशी को मिल गया।वहीं भाजपा प्रत्याशी कृष्ण प्रताप सिंह केपी दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 440192 वोट मिले थे और उन्हें कुल डाले गए वोटों में से 42.25 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 के मुकाबले लगभग 73000 वोट ज्यादा पाने के बावजूद केपी सिंह 80936 वोट से अपनी सीट हार गए। जौनपुर की लोकसभा की चुनावी बिसात पर सभी पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में तो आ चुकें है, एक तरफ जहां कद्दावर नेता कृपाशंकर सिंह बीजेपी के उम्मीदवार हैं। कभी बसपा के मजबूत स्तम्भ रहे बाबूसिंह कुशवाहा सपा के झंडे पर चुनाव लड़ने को तैयार है तो वही बसपा से निष्कासित हो चुके पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह हाथी के दम पर चुनावी रण जीतने को आतुर हैं। ऐसे में कौन किसको पटखनी देकर चुनावी रण जीतेगा यह तो 4 जून को पता चलेगा लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में वोटों का बिखराव तो होना तय है।

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