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लोस चुनाव : भाजपा के गढ़ में किसके पाले में गिरेगा बरेली का झुमका!

लखनऊ  (हि.स.)। उत्तर प्रदेश रामगंगा नदी के किनारे बसा बरेली शहर नाथ नगरी भी है और आला हजरत की विरासत भी संभाले हुए है। मान्यताओं के मुताबिक महाभारत काल का पांचाल क्षेत्र यही था। बांस के फर्नीचर और आंखों के सुरमे के लिए बरेली की देश दुनिया में अलग पहचान है।

झुमकों के लिए मशहूर बरेली लोकसभा सीट राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। पिछले करीब तीन दशक से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एक छत्र राज रहा है। उप्र में 25वें नंबर के बरेली संसदीय क्षेत्र में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।

 

बरेली लोकसभा सीट का इतिहास

 

रुहेलखंड की सबसे अहम बरेली लोकसभा सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें 8 बार भाजपा ने बाजी मारी है और 6 बार लगातार जीत दर्ज की है। 1952, 1957 में कांग्रेस यहां से जीती थी लेकिन 1962 और 1967 के चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के मुकाबले भारतीय जनसंघ ने यहां से जीत दर्ज की थी। उसके बाद तीन चुनावों में कांग्रेस, भारतीय लोकद और जनता पार्टी सेक्यूलर यहां से जीते। 1981 में कराए गए उपचुनाव में पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम अबीदा अहमद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं और विजयी रहीं। 1984 के चुनाव में भी वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रही थीं। कांग्रेस के लिए अबीदा अमहद की यह जीत आखिरी जीत साबित हुई। 1989 के चुनाव में यहां बीजेपी की ओर से संतोष गंगवार जीते और 2004 तक लगातार 6 बार सांसद रहे। 2009 में कांग्रेस ने यहां कड़े मुकाबले में जीत दर्ज की। लेकिन 2014 के चुनाव में संतोष गंगवार ने फिर जीत के साथ वापसी की। 2019 के चुनाव में भी यही नतीजा रहा क्योंकि संतोष गंगवार ने सपा-बसपा के साझा उम्मीदवार को हराकर अपनी आठवीं जीत हासिल की। संसद के इतिहास में आठ बार के सांसद बहुत कम बन पाए हैं। खास बात यह है कि यहां पर अब तक समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का खाता तक नहीं खुला है।

पिछले दो चुनावों का हाल

2019 के आम चुनाव में बरेली सीट पर भाजपा की ओर से संतोष कुमार गंगवार को मैदान में उतारा गया, जिनके सामने सपा ने भागवत सरन गंगवार को उतारा। संतोष कुमार गंगवार को 565,270 (52.88) वोट मिले तो सपा प्रत्याशी के खाते में 397,988 (37.23) वोट आए। संतोष गंगवार ने 1,67,282 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण सिंह ऐरन तीसरे स्थान पर रहे।

 

 

 

इससे पहले 2014 के चुनाव में भी भाजपा के संतोष कुमार गंगवार ने जीत हासिल की थी। तब के चुनाव में संतोष गंगवार ने 2,40,685 मतों के अंतर से जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे। बसपा प्रत्याशी उमेश गौतम तीसरे और कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन चौथे स्थान पर रहे थे।

 

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

 

भाजपा ने इस बार संतोष कुमार गंगवार की जगह योगी कैबिनेट के पूर्व मंत्री छत्रपाल गंगवार को मैदान में उतारा है। सपा-कांग्रेस के गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है। सपा ने पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन को टिकट दिया है। बसपा ने छोटे लाल गंगवार पर दांव लगाया है।

 

 

 

बरेली सीट का जातीय समीकरण

 

बरेली लोकसभा सीट पर करीब करीब 18 लाख मतदाता हैं। राजनीतिक दलों से मिली जानकारी के मुताबिक इसमें सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता करीब सात लाख हैं। कुर्मी छह लाख, कश्यप डेढ़ लाख, मौर्य डेढ़ लाख व वैश्य पौने दो लाख, ब्राह्मण व कायस्थ सवा-सवा लाख और सिख व पंजाबी मतदाता करीब एक लाख हैं। बाकी में अन्य वर्ग के वोटर हैं।

 

 

 

विधानसभा सीटों का हाल

 

बरेली संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें बरेली, बरेली कैंट, मीरगंज, भोजीपुरा और नवाबगंज सीटें शामिल हैं। भोजीपुरा सीट सपा और बाकी सीटें भाजपा के खाते में हैं।

 

 

 

दलों की जीत का गणित और चुनौतियां

 

बरेली में विकास और चुनौतियां साथ-साथ चलती हैं। जातिगत समीकरण राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाजपा के छत्रपाल सिंह गंगवार और बसपा के छोटे लाल गंगवार दोनों ही कुर्मी समुदाय से आते हैं, ऐसे में भाजपा को यहां से वोटों के बंटवारे का डर है। वहीं संतोष कुमार गंगवार को टिकट कटने से उनके समर्थकों में नाराजगी भी है। सपा ने पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन को टिकट दिया है। सवर्णों के साथ-साथ अल्पसंख्यक और दलित वर्ग भी में भी उनकी अच्छी पकड़ है। हालांकि भाजपा का यह मजबूत किला है, और हर वर्ग के वोटरों का उसे निरंतर समर्थन मिलता रहा है।

 

 

 

राजनीतिक विशलेषक प्रवीण वशिष्ठ के अनुसार, पतंगों के इस शहर में यदि बसपा बीजेपी के वोट बैंक खासकर कुर्मी वोटरों में सेंध लगा पाई तो, केवल तब ही बीजेपी उम्मीदवार की उड़ती पतंग खतरे में पड़ सकती है, वर्ना तो वह उड़ ही रही है।

 

बरेली से कौन कब बना सांसद

 

1952 सतीश चंद्रा (कांग्रेस)

 

 

 

1957 सतीश चंद्रा (कांग्रेस)

 

 

 

1962 बृज राज सिंह (जनसंघ)

 

 

 

1967 बी.बी. लाल (भारतीय जनसंघ)

 

 

 

1971 सतीश चंद्रा (कांग्रेस)

 

 

 

1977 राममूर्ति (भारतीय लोकदल)

 

 

 

1980 निसार यार खां (जनता पार्टी सेक्यूलर)

 

1981 आबिदा अहमद (कांग्रेस) उपचुनाव

 

 

 

1984 अबीदा अहमद (कांग्रेस आई)

 

 

 

1989 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

1991 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

1996 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

1998 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

1999 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

2004 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

2009 प्रवीण सिंह ऐरन (कांग्रेस)

 

 

 

2014 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

 

 

 

2019 संतोष कुमार गंगवार (भाजपा)

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