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सांपों के फुफकारने का क्‍या म‍तलब? क्‍यों न‍िकालते हैं जीभ, जान लेंगे तो पास कभी नहीं फटकेंगे

-इस प्रणाली को कहते हैं ग्‍लोटिस

नई दिल्ली । क्या आपने कभी सोचा है कि सांपों के आगे के दांत ही नहीं होते, फिर वे फुफकार कैसे मारते हैं? कभी-कभी तो वे उसी समय अपनी जीभ भी बाहर निकाल लेते हैं। आखिर ये होता कैसे है? एक रिपोर्ट के मुताबिक, सांप फुफकारने के लिए एक खास तरह की प्रणाली बनाते हैं, इसे ग्‍लोटिस कहते हैं।

ग्लोटिस सांप के मुंह के नीचे एक छोटा सा छेद होता है जो सांप के सांस लेने पर खुलता है। यह श्वसन प्रणाली और फेफड़े से जुड़ा होता है। सांपों का केवल एक ही फेफड़ा काम करता है, जबकि दूसरा बचा रहता है। उसका वह कभी इस्‍तेमाल नहीं करता। मिसौरी दक्षिणी राज्य विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डेविड पेनिंग के मुताबिक, सांप के फेफड़े भी उसी तरह ऑक्‍सीजन लेते हैं, जैसे इंसान। लेकिन सांप के फेफड़े के पीछे का आधा हिस्सा पुराने समय की चिमनी की तरह होता है। यह एक खाली गुब्‍बारे की तरह है, जो हवा को पकड़ता है। इसलिए जब सांप फुंफकारता है, तो वह अपनी पसलियों को फैलाता है। एक बड़ी गहरी सांस लेता है और फिर काफी लंबे समय के लिए सांस छोड़ता है। उस वक्‍त यही हिस्‍सा फूलता-पचता रहता है। फुसफुसाहट की आवाज ग्लोटिस से गुजरने वाली तेज हवा की वजह से आती है। आप इसे ऐसे समझिए, जब हम किसी छोटे से छिद्र में से तेज हवा गुजारते हैं, तो एक तरह की आवाज आती है, ठीक उसी तरह सांप के ग्‍लोटिस से भी ऐसी ही आवाज निकलती है।

इसका सांप की जुबान से कोई लेना देना नहीं है। जब सांपों की जीभ बाहर आती है, तो वे हवा में वाष्पशील अवस्‍था में मौजूद कार्बनिक यौगिकों को पकड़ने की कोशिश कर रहे होते हैं। इन्‍हीं की सुगंध से वे शिकारियों की पहचान भी करते हैं। जीभ में बने दो कांटे उन्हें बताते हैं कि शिकारी किस ओर से आ रहा है। सांप इसलिए फुफकारते हैं, ताकि वह सामने आने वाले जीवों या लोगों को डरा-धमका सकें। इससे वे अपने लिए सुरक्षा चक्र बनाते हैं। तेज आवाज निकालने का उनका एक मात्र उद्देश्‍य अपनी रक्षा करना होता है। सांपों की फुफकार अलग-अलग प्रजातियों में अलग-अलग हो सकती है। उनकी तीव्रता अलग हो सकती है। जैसे किंग कोबरा गुर्राहट की आवाज निकालता है। क्‍योंकि उसकी श्वासनली में अतिरिक्‍त थैलियां होती हैं, जो तेज आवाज निकालने में उसकी मदद करती हैं।

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