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चाय से लेकर समोसा तक एक-एक पाई का हिसाब चुनाव आयोग को देता है उम्मीदवार, पढ़ें पूरी खबर

ब्रेड पकौड़ा, सैंडविच और जलेबी की कीमत तय की आयोग ने
नई दिल्ल,(ईएमएस)। लोकतंत्र के लिए चुनाव एक महापर्व है, गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे बैनर-पोस्टर और बड़े-बड़े होर्डिंग्स से पट जाते हैं। वोटर्स को लुभाने के लिए गीत-संगीत का तड़का लगाया जाता है, छोटे-बड़े पर्दे के सितारों की भी मदद ली जाती है। ये सबकुछ केवल एक-एक वोट के लिए किया जाता है।

चुनाव में पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है, दरअसल, ये आम धारणा है। लेकिन हकीकत में एक-एक वोट का हिसाब-किताब होता है। एक वोट के लिए कितना खर्च हो रहा है। इसका लेखा-जोखा रखा जाता है।

पहले बैलट पेपर से वोटिंग होती थी, अब ईवीएम के जरिए मतदान हो रहा है। तकनीक में विस्तार की वजह से वोटिंग के तरीके बदले हैं। आज के समय में चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष और सुचारु ढंग से चुनाव कराना महंगा हो गया है। क्योंकि एक बड़ा फंड ईवीएम खरीदने और उसके रख-रखाव पर जाता है। देश में आजादी के बाद साल 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था। इस चुनाव में करीब 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुआ था। चुनाव आयोग के मुताबिक 1951 कुल 17.32 मतदाता थे, जो साल 2019 में बढ़कर 91.2 करोड़ हो गए थे। आयोग के मुताबिक 2024 के चुनाव में 98 करोड़ मतदाता अपने मत का इस्तेमाल करने वाले है।

मोदी सरकार पहली बार 2014 में सत्ता में आई थी। चुनाव आयोग के मुताबिक इस चुनाव को करने में करीब 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसके पहले 2009 लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 2009 के मुकाबले में 2014 में चुनावी खर्च करीब तीन गुना बढ़ गया।वहीं पिछला चुनाव, यानी 2019 में चुनावी खर्च करीब 6600 करोड़ रुपये रहा था।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में खर्च बढ़कर 72 रुपये प्रति वोटर पहुंच गया था। साल 2014 के चुनाव में प्रति मतदाता खर्च करीब 46 रुपये था। इसके पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में 17 रुपये प्रति वोटर, और 2004 के चुनाव में 12 रुपये प्रति वोटर खर्चा आया था। देश में सबसे कम खर्च वाला लोकसभा चुनाव 1957 में हुआ था, तब चुनाव आयोग ने सिर्फ 5.9 करोड़ रुपये खर्च किए थे, यानी हर मतदाता पर चुनाव खर्च सिर्फ 30 पैसे आया था।
सवाल उठता है कि क्या सही में चुनाव के दौरान पैसा पानी की तरह बहाया जाता है? इसका जवाब है कि नहीं… चुनाव आयोग निर्धारित करता है कि एक उम्मीदवार अधिकतम कितना खर्च कर सकता है। जिसमें हर तरह की खर्च के लिए राशि निर्धारित होती हैं, और कीमतें भी तय रहती हैं। चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार को सार्वजनिक बैठक, रैली, विज्ञापन, पोस्टर, बैनर, वाहन, चाय, बिस्किट, समोसे और गुब्बारे तक का खर्च शामिल होता है। उम्मीदवार एक-एक खर्च का हिसाब देना पड़ता है।

रिपोर्ट के मुताबिक एक कप चाय की कीमत 8 रुपये और एक समोसे की कीमत 10 रुपये निधारित है। बिस्कुट 150 रुपये किलो, ब्रेड पकौड़ा 10 रुपये पीस, सैंडविच 15 रुपये पीस और जलेबी की कीमत 140 रुपये किलो तय की गई है। मशहूर गायक की फीस 2 लाख रुपये तय है या भुगतान का असली बिल लगाना होता है। ग्रामीण इलाके में कार्यालय के लिए उम्मीदवार 5000 रुपये महीने खर्च कर सकता है। जबकि शहर में यह राशि 10,000 रुपये है।
आम चुनाव 2024 में एक उम्मीदवार अधिकतम 95 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है। इसमें चुनाव प्रचार, वाहन, खाना-पानी, टेंट और बैनर-पोस्टर तक शामिल है। चुनाव के दौरान गायकों और सोशल मीडिया पर दिए गए विज्ञापन का भी हिसाब होता है। फिलहाल विधानसभा चुनाव के लिए ये रकम प्रति उम्मीदवार के लिए अधिकतम 40 लाख रुपये निर्धारित है। इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी खर्च अधिकतम 95 लाख रुपये, 2014 के लोकसभा चुनाव में 70 लाख रुपये, 2009 के चुनाव में 25 लाख रुपये, और 2004 के लोकसभा चुनाव में 25 लाख रुपये खर्च का दायरा था। देश के पहले चुनाव यानी 1951 में एक उम्मीदवार अधिकतम 25 हजार रुपये तक खर्च कर सकता था।

कौन उठाता है लोकसभा चुनाव का खर्च?
चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है। इसमें इलेक्शन कमीशन के प्रशासनिक कामकाज से लेकर, चुनाव में सिक्योरिटी, पोलिंग बूथ बनाने, ईवीएम मशीन खरीदने, मतदाताओं को जागरूक करने और वोटर आईडी कार्ड बनाने जैसे खर्चे शामिल हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान किसी के पास 50 हजार से ज्यादा नकदी मिलने पर उसका स्रोत और मकसद बताना होता है। स्रोत या उद्देश्य नहीं बताने पर राशि जब्त की जा सकती है। यही नहीं, चुनाव के दौरान किसी व्यक्ति के पास 10 लाख रुपये या इससे अधिक राशि मिलती है, तब तुरंत इसकी सूचना आयकर विभाग को दी जाती है।

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