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धर्मनगरी हरिद्वार लोस सीट हमेशा से ही राजनीतिक दलों के लिए रही है अहम, जानें अब तक का चुनावी इतिहास

देहरादून  (हि.स.)। उत्तराखंड के धर्मनगरी हरिद्वार की लोकसभा सीट राजनीतिक दलों के लिए न केवल कई अर्थों में महत्वपूर्ण है वरन यह पार्टियों के लिए बहुत प्रतिष्ठा को भी दर्शाती है। इस सीट पर जीत-हार से निकला संदेश राजनीतिक दलों के लिए अन्य क्षेत्रों में भी समीकरण साधने का खास महत्व रखता है। ऐसे में हरिद्वार की लोस सीट पर इस बार भी लड़ाई काफी रोचक रहने वाली है। इस सीट पर सबसे अधिक भाजपा को जीत मिली है। इस बार भी भाजपा ने अपना उम्मीदवार पहले घोषित कर चुनावी बढ़त बना ली है।

भाजपा ने राज्य के सभी पांचों सीटों पर अपना उम्मीदवार पहले घोषित कर कांग्रेस से आगे निकल गयी है। राज्य की सबसे हॉट सीट माने जाने वाली हरिद्वार लोकसभा सीट पर भाजपा ने सीटिंग सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काट कर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उम्मीदवार बनाया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद से त्रिवेंद्र को एक राजनीतिक अवसर का इंतजार था। हरिद्वार जैसी सीट से त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट मिलना बड़ा अवसर है। हालांकि कांग्रेस ने अभी तक हरिद्वार सीट पर अपना उम्मीदवार फाइनल नहीं कर पाई है। वहीं एक तरफ भाजपा लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ाती जा रही है।

भाजपा उम्मीदवार त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चुनावी हुंकार भर कर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। कार्यकर्ताओं के साथ नारसन बार्डर, ऋषिकेश विधानसभा सहित विभिन्न स्थानों पर रोड शो निकाला। उनका कहना है कि मां गंगा के द्वार हरिद्वार से मेरा आत्मीय नाता रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजनरी नेतृत्व में विकसित भारत के निर्माण का सपना अवश्य साकार होगा। इस संकल्प रूपी सेतु के निर्माण के लिए पार्टी ने एक गिलहरी की भूमिका में मुझे चुना है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ता से भाजपा के संकल्प को पूरा करने के लिए तन-मन-धन से जुड़ जाने का आह्वान किया। ऐसे में कमजोर संगठन और आपसी गुटबाजी में उलझी कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार में देरी पार्टी को रणनीतिक तौर पर कमजोर कर सकती है। उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस मंथन कर रही है।

हरिद्वार लोकसभा की सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। शुरू में इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का प्रभाव होने के कारण लोकदल का ही दबदबा रहा। यही कारण रहा कि पहला चुनाव लोकदल ने 1980 में भी यह सीट जीती, लेकिन 1984 में समीकरण बदले और कांग्रेस के सुंदर लाल ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। 1987 के उपचुनाव में भी कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। 1989 में भी कांग्रेस का दबदबा कायम रहा। इस सीट पर कांग्रेस ने पकड़ मजबूत करने में सफलता हासिल की, लेकिन 1991 के बाद एक-दो मौके छोड़ दिए जाएं तो अधिकतर समय भाजपा ही इस सीट का प्रतिनिधित्व करती रही है। कांग्रेस से 1991 में भाजपा में आए राम सिंह सैनी ने इस सीट का समीकरण बदल दिया और यह सीट भाजपा की झोली में आ गई। इसके बाद हरिद्वार सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई और भाजपा के हरपाल साथी ने लगातार तीन चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया। 2004 में सपा के राजेंद्र सिंह बड़ी ने यह सीट भाजपा से छीन ली। 2009 में हरिद्वार सीट के अनारक्षित श्रेणी में आने के साथ ही कांग्रेस के हरीश रावत ने इस सीट पर जीत दर्ज की। पिछले दो चुनाव में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने इस लोस सीट पर जीतकर पार्टी का दबदबा बनाया।

हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में साधु समाज के साथ ही ब्राह्मण-पुरोहित, अनुसूचित जाति, पहाड़ी समाज, पाल, तेली, झोझा, बंजारा, पंजाबी-सिख, सिंधी, वैश्य, सैनी, जाट, गुर्जर, कुम्हार, त्यागी, आदि प्रेशर ग्रुप के रूप में हैं। मुस्लिम भी यहां समीकरण प्रभावित करने की स्थिति में रहते हैं। हरिद्वार संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, बिजनौर, सहारनपुर से लगा है, जबकि उत्तराखंड में पौड़ी और टिहरी गढ़वाल से लगा है। यही कारण है कि हरिद्वार की राजनीति में कई मुद्दे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उठते रहे हैं।

हरिद्वार लोकसभा सीट का 2011 में परिसीमन होने के बाद राजनीतिक मिजाज भी प्रभावित हुआ। हरिद्वार संसदीय सीट में दो जिलों के 14 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। हरिद्वार जिले की हरिद्वार, भेल रानीपुर, ज्वालापुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण और देहरादून जिले की ऋषिकेश, डोईवाला व धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र इस लोकसभा में शामिल हैं। लोकसभा क्षेत्र में छह तहसील, एक उप तहसील व सात विकासखंड हैं।

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