अगर हम इस संसार की बात करें तो इस पूरी दुनिया में न जाने कितने व्यक्ति होंगे जो भगवान भोलेनाथ के भक्त हैं भगवान भोलेनाथ को शिवजी, शंभू, महादेव, अर्धनारीश्वर और ना जाने कितने नाम से पुकारा जाता है भगवान भोलेनाथ का स्वभाव बहुत ही भोला है यह अपने भक्तों की भक्ति से बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं भगवान भोले नाथ के भक्त भी इनकी भक्ति में लीन रहते हैं इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए इनकी पूजा-अर्चना करते हैं ऐसे में आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने वाले हैं कि आखिर भगवान शिवजी की पूजा में शंख का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए? दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि पूजा में शंख का विशेष महत्व होता है परंतु भगवान शिव जी की पूजा में आखिर शंख का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव जी की पूजा में शंख के इस्तेमाल से सर्वनाश होता है इस विषय में भी शिव पुराण में इस बारे में उल्लेख किया गया है।
शिव पुराण के अनुसार इस बारे में ऐसा उल्लेख किया गया है कि किसी जमाने में शंखचुड़ नाम का एक पराक्रमी राक्षस हुआ करता था वह दैत्य राज दंभ का पुत्र था दैत्य राज दंभ ने कई सालों तक भगवान विष्णु जी की कठिन तपस्या करके उनको प्रसन्न किया था तब भगवान विष्णु जी ने प्रसन्न होकर दैत्य राज दंभ को दर्शन दिए थे और उसको अपनी इच्छा मांगने को कहा था तब दैत्य राज दंभ ने भगवान विष्णु जी से तीनों लोकों में अजय और महा पराक्रमी पुत्र का वर मांगा था इतना ही नहीं दैत्य राज दंभ के पुत्र ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और उनसे अजय होने का वरदान भी हासिल कर लिया था इन दोनों वरदानो के बाद शंखचुड़ अत्यंत पराक्रमी हो गया और उसने अपने पराक्रम के बल पर तीनों लोको पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया था इसके अत्याचारों से तीनों लोग बुरी तरह से प्रभावित हो गए थे तीनों लोकों में इसका भय काफी बढ़ गया था चारों तरफ हाहाकार मच रहा था मात्र इंसान ही नहीं बल्कि देवता भी इसके अत्याचारों से काफी दुखी थे।
जब शंखचूड़ का अत्याचार बढ़ने लगा तो इसके अत्याचारों से छुटकारा पाने के लिए सभी लोग भगवान शिव जी के पास पहुंचे परंतु शिव जी ने शंखचूड़ का वध कर पाने में असमर्थ रहे क्योंकि उसे श्री कृष्ण कवच और तुलसी की पतिव्रता धर्म की प्राप्ति थी इन दोनों के होते हुए शंखचूड़ का वध करना नामुमकिन था यह सब देखते हुए भगवान विष्णु जी ने एक उपाय निकाला और वह एक ब्राह्मण के भेष में शंखचूड़ के पास पहुंच गए और उससे श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया साथ ही शंखचूड़ का रूप धरकर तुलसी के शील का हरण भी कर लिया था जिसके पश्चात शंखचूड़ की सारी शक्तियों का नाश हो गया था और इसी बीच शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था उसके पश्चात ही ऐसा कहा जाता है कि शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख का जन्म हुआ था और इस कारण से शिवजी की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं होता है।