बांदा (हि.स.)। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को जब वनवास मिला तब वह अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ बांदा (अब चित्रकूट) आए थे। इसी धरती पर वनवास के साढ़े 11 साल बिताए थे। उनके जीवन चरित्र को ‘रामायण’ में अक्षरशः प्रस्तुत करने वाले महर्षि वाल्मीकि और ‘रामचरितमानस’ के माध्यम से आमबोलचाल की भाषा में लिपिबद्ध करने वाले गोस्वामी तुलसीदास भी इसी धरती में पैदा हुए थे।
श्रीराम का त्रेता में भी बांदा और चित्रकूट से गहरा नाता था। ठीक उसी तरह से उनकी जन्मस्थली अयोध्या से वर्तमान में बांदा का रिश्ता बना रहा। जब विवादित ढांचा को ढहाया गया, तब भी बांदा के सैकड़ों कारसेवकों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और आज जब अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर तैयार हो रहा है, तब भी इस मंदिर के निर्माण में बांदा जुड़ा हुआ है। यहां केसीएनआईटी से इंजीनियरिंग कर चुके अभिषेक निगम इस समय लार्सेन एंड टूब्रो कम्पनी, जो श्रीराम मन्दिर का निर्माण कर रही है, के आईटी और एचआर मैनेजर के रूप में राम मंदिर का हिस्सा बन गए हैं।
राम मंदिर आंदोलन की जब शुरुआत हुई थी। तब बांदा को अस्थाई जेल बनाकर लगभग 30000 कारसेवकों को कैद किया गया था। इनमें साध्वी उमा भारती भी थीं। उस समय उमा भारती शहर के वयोवृद्ध नाई कालका से अपना सर मुंडवा कर बजरंग दल के साहसी कार्यकर्ता राजकुमार शिवहरे के साथ अस्थाई जेल को तोड़कर अयोध्या पहुंची थी और कारसेवा को अंजाम दिया था। करने का तात्पर्य ये है कि बांदा और बांदा के लोगों की आस्था भगवान श्रीराम से सदैव जुड़ी रही। अब जब मंदिर का निर्माण हो रहा है तो इसमें भी बांदा का महत्वपूर्ण योगदान है। इसका श्रेय शहर के क्योटरा मोहल्ला निवासी अभिषेक निगम को जाता है। अभिषेक निगम के बड़े भाई मनोज निगम लाला बांदा शहर की जानी मानी हस्ती हैं। अभिषेक निगम ने बांदा के काली चरण निगम इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से वर्ष 2010 में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग से बीटेक किया था और 2020 में जब से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मंदिर निर्माण में वह भी अपनी कम्पनी के माध्यम से जुड़ गए और आज जब 3 साल बाद श्रीराम मंदिर लगभग तैयार हो चुका है, तो ऐसे में उनकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
इस बारे में स्वयं एलएंडटी के आईटी और एचआर मैनेजर 32 वर्षीय अभिषेक निगम बताते हैं कि इस परियोजना का हिस्सा बनना इतिहास का हिस्सा बनने जैसा है। शुरू में जब उन्हें अपने गृहनगर बांदा से दूर इस परियोजना के लिए चुना जा रहा था, तो ये उनके लिए सौभाग्य की बात थी। पर उन्हें तब तक नहीं पता था कि वो परियोजना श्रीराम मन्दिर निर्माण की है। लेकिन जब उनके सीनियर्स ने उन्हें अयोध्या भेजने के लिए चुना तो उनके लिए खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अभिषेक के शब्दों में, ”मुझे लगा कि जैसे मुझे मेरी आस्था का फल मिल गया हो। घर के करीब होने का वह प्रारंभिक आकर्षण जल्द ही आस्था के आगे बौना हो गया। लोग कहते हैं कि हम पिछले जन्म में राम की बंदरों की सेना रहे होंगे, इसलिए हमें चुना गया।”
अभिषेक ने बताया कि मुझे हमेशा यह अहसास होता था कि कोई उच्चशक्ति काम कर रही है। वह शक्ति मेरे व्यक्तिगत जीवन में भी तब प्रकट हुई, जब सितंबर 2020 में परिवार सहित अयोध्या पहुंचने का सौभाग्य मिला। मुझे वहां काम करते समय अपनी बेटी और पत्नी का संबल मिला। मुझे यह लगता है कि यह एकमात्र ऐसी परियोजना है जहां निष्पादन से पहले प्रत्येक सामग्री, प्रत्येक पद्धति का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया गया था। तभी तो यह मन्दिर अपने श्रद्धालुओं के लिए अनंत काल की छाप छोड़ेगा।
श्रीराम मंदिर के निर्माण के पीछे जो टीम काम कर रही है, उस टीम का भी मानना है कि विज्ञान और आस्था ने मंदिर निर्माण में समान भूमिका निभाई है। इस मन्दिर के निर्माण का जब शिलान्यास किया गया था, तभी इसके निर्माण में पल-पल की वीडियोग्राफी के लिए दूरदर्शन द्वारा उच्च क्षमता वाले कैमरों का इंस्टालेशन किया गया था। ये कैमरे रात-दिन मन्दिर निर्माण की एक-एक गतिविधि को रिकॉर्ड कर रहे हैं। जिसके पूरा होने के बाद दूरदर्शन द्वारा इसकी विस्तृत डॉक्यूमेंट्री तैयार की जायेगी। यह वह दस्तावेज होगा, जो युगों-युगों तक श्रीराम मन्दिर के निर्माण की कहानी पीढ़ियों को बतायेगा।
अभिषेक निगम 2025 तक अयोध्या में रहकर काम करेंगे। क्योंकि 22 जनवरी को जो मन्दिर श्रद्धालुओं के लिए प्रारम्भ किया जा रहा है, उसमें केवल प्रथम तल ही पूरी तरह तैयार हो सकेगा। इसके ऊपर के दो तलों का काम अगले साल तक चलता रहेगा। वर्ष 2025 में यह मन्दिर पूरी तरह से बनकर तैयार हो जायेगा।