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भारतीय सेना में 2020 के बाद से भर्ती नहीं हुए नेपाली गोरखा, जानिए क्या है वजह

काठमांडू (ईएमएस)। भारतीय सेना में नेपाली सैनिकों की भर्ती बंद है, अब यह इतिहास की बात हो सकती है। दरअसल 2020 से कोविड महामारी के कारण नेपाली गोरखाओं की भर्ती रुकी हुई है। जानकारी के अनुसार भारतीय सेना में नेपाली सैनिकों की भर्ती फिर से शुरू नहीं हुई है। इसके बजाय, पिछले साल अग्निपथ (भारतीय सेना की चार साल की भर्ती योजना) ने इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है जब तक कि नेपाल के राजनीतिक दल नई योजना पर आम सहमति नहीं बना लेते हैं, भर्ती शुरु नहीं होगी। इन ‎दिनों 1971 के युद्ध के दौरान सेना प्रमुख रहे दिवंगत फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बायोपिक एक महीने से चल रही है। सैम बहादुर नाम की इस बायोपिक को लोगों ने खूब पसंद भी किया है। सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट से जुड़े हुए थे। यह वही रेजिमेंट है, जिसकी जड़ें नेपाल से भी जुड़ी हुई हैं। हालां‎कि जानकार बताते हैं ‎कि भारत में नेपाली गोरखाओं का इतिहास 100 साल से भी पुराना है। भारत की सात गोरखा राइफल्स रेजिमेंटों का इतिहास 19वीं शताब्दी की शुरुआत से है जब उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिख सेना में सेवा की थी।

नेपाल-सिख युद्ध में अपनी सेना के विरुद्ध गोरखाओं के प्रदर्शन से महाराजा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोरखाओं की हार के बाद उन्हें भर्ती कर लिया। आज तक, नेपाल के गोरखा जो विदेशों में सेवा करते हैं, उन्हें लाहोर्स कहा जाता है, जो सिख साम्राज्य की राजधानी लाहौर से लिया गया है। भारत की स्वतंत्रता के बाद, उस समय की 10 गोरखा रेजिमेंटों में से छह भारत आ गईं और बाकी ब्रिटिश सेना के पास रहीं। चार ब्रिटिश गोरखा रेजिमेंट के सैनिक जो स्वतंत्र भारत की सेवा करना चाहते थे, उन्हें 11वीं गोरखा राइफल्स (11जीआर) के नाम से एक अलग रेजिमेंट के रुप में स्थापित किया गया। यह भारत की सातवीं गोरखा रेजिमेंट बनी। इन सात भारतीय गोरखा रेजिमेंटों में कुल मिलाकर लगभग 850 गोरखाओं की 39 बटालियन हैं। बता दें ‎कि गोरखा अन्य रेजिमेंटों में भी काम करते हैं।

नेपाली गोरखाओं को भारतीय गोरखा से नहीं बदला गया
भारत और यूनाइटेड किंगडम 1947 में नेपाल के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते के आधार पर नेपाल से सैनिकों की भर्ती करते हैं। इसके अलावा यूनाइटेड किंगडन नेपाल के गोरखाओं की भर्ती सिंगापुर की पुलिस और ब्रुनेई के सैनिकों के लिए भी करता है। भारतीय सेना ने अतीत में इन रेजिमेंटों को स्वदेशी बनाने के प्रस्तावों को इस कारण खारिज कर दिया था, क्योंकि तब तक भारत और नेपाल के बीच समझौता टूटा नहीं था। आजादी के बाद भी जलियांवाला बाग हत्याकांड में शामिल 9वीं गोरखा राइफल्स को भंग नहीं किया गया था। लेकिन, 2016 में पहली गोरखा राइफल्स की 6वीं बटालियन की स्थापना केवल भारतीय गोरखा सैनिकों के साथ की गई थी।

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