–कोर्ट ने कहा, अधिकारियों की तय हो जवाबदेही
–तीन माह अधिकतम छह माह में विवेचना की गाइडलाइंस पेश करने का आदेश
प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्राम विकास, गरीबी उन्मूलन एवं रोजगार गारंटी की योजना मनरेगा के तहत अमृत सरोवर निर्माण में अधिकारियों के भ्रष्टाचार की जांच में देरी पर चिंता जताई है। कहा है कि अधिकारियों की जांच में देरी होने से विभागीय कार्य बुरी तरह से प्रभावित होता है और साक्ष्य नष्ट होने के कारण जवाबदेही तय न हो पाने से लोगों का व्यवस्था से विश्वास का उठता है। साथ ही पीड़ित के साथ अन्याय होता है और सरकारी खर्च बढ़ता है। तकनीकी खामियों का लाभ भ्रष्ट अधिकारी उठाते हैं और इससे अपराध की पुनरावृत्ति होती है।
कोर्ट ने कहा भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच की समय सीमा तय नहीं होने से कानून का शासन कमजोर होता है। कोर्ट ने राज्य सरकार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी गठित करने का निर्देश दिया है और सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के जांच की गाइडलाइंस तैयार कर महानिबंधक के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कमेटी को तीन माह में या अधिकतम छह माह में अपनी रिपोर्ट पेश करने का समय दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति वी के बिड़ला तथा न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने जौनपुर के प्यारेपुर की ग्राम प्रधान सहित अन्य अधिकारियों की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मनीष कुमार सिंह, पुष्पा निषाद, विनोद कुमार सरोज व जवाहरलाल ने अमृत सरोवर निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायत के साथ सुजानगंज थाने में दर्ज एफआईआर को रद करने व गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा है कि जिला, जोन व राज्य स्तर पर दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाय।
कोर्ट ने प्रदेश के सभी पुलिस कमिश्नरों/पुलिस अधीक्षकों को सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की दर्ज एफ आई आर की विवेचना ब्यौरे के साथ सूची तैयार करने का भी निर्देश दिया है और कहा है कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ निष्पक्ष त्वरित विवेचना में विफल पुलिस अधिकारियों को कुछ समय के लिए थाना या पुलिस चौकी इंचार्ज बनने से रोका जाय। कोर्ट ने कहा यदि आरोप साबित नहीं होता तो पुलिस कमिश्नर/पुलिस अधीक्षक अपनी संतुष्टि दर्ज कर फाइनल रिपोर्ट दाखिल करें। कोर्ट ने याचियों के खिलाफ विवेचना शीघ्र पूरी करने का निर्देश दिया है।
मालूम हो कि 21 अगस्त 23 को बी डी ओ सुजानगंज ने प्रोजेक्ट डायरेक्टर की तीन सदस्यीय कमेटी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर एफआईआर दर्ज कराई। रिपोर्ट में अधिकारियों की मिलीभगत से अमृत सरोवर निर्माण में 15,57,790 रूपये के घपले के आरोप की पुष्टि की गई है। जिस पर दर्ज प्राथमिकी की पुलिस विवेचना में देरी की जा रही है। घपले में ग्राम सचिव, ग्राम प्रधान, सहायक प्रोग्राम अधिकारी, लेखाकार, रोजगार सेवक लिप्त पाए गए हैं।
याचियों का कहना था कि प्रारम्भिक जांच 24 घंटे में पूरी कर ली गई। कारण बताओ नोटिस नहीं दी गई। कमेटी की रिपोर्ट पर एक सदस्य के हस्ताक्षर नहीं है। याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। उन्हें फंसाया गया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के हवाले से कहा कि अनुच्छेद 21 स्पीडी ट्रायल का नागरिकों को अधिकार देता है। जिसमें निष्पक्ष व समय बद्ध शीघ्र विवेचना भी शामिल हैं। इसलिए सरकारी विभागों के खिलाफ आपराधिक मामलों को खासतौर पर भ्रष्टाचार की नियत समय के भीतर जांच पूरी करने की गाइडलाइंस तैयार की जाय।