लखनऊ, (हि.स.)। अयोध्या में राममंदिर तोड़े जाने से लेकर 21 वीं सदी के दूसरे दशक तक युद्ध, प्रतिरोध और आंदोलन की आग बुझी नहीं। बाबर के कालखंड के बाद हूमायूं के दौर में भी राजकुमारी जयराज और स्वामी महेश्वरानंद का सैन्य दल लगातार मुगल सेना से मोर्चा लेता रहा। हांलाकि बाद में दोनों वीरगति को प्राप्त हुए। अकबर के कालखंड में तो हिंदुओं ने बीस बार से अधिक श्रीराम जन्मभूमि पर हमला किया। अकबर के बाद जहांगीर और शाहजहां के कार्यकाल में अयोध्या की स्थिति यथावत बनी हुई थी। इसके बाद मध्यकालीन इतिहास लेखकों ने जिसे जिंदा पीर और कट्टर सुन्नी मुसलमान कहा वह औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठा और उसने फिर से अयोध्या में उथल-पुथल शुरू कर दी। औरंगजेब ने तो मंदिरों को तोडऩे की अपनी राजकीय नीति ही बना ली थी।
1932 में प्रकाशित अयोध्या का इतिहास, अवधवासी लाला सिताराम अपनी पुस्तक में पंडित माधव प्रसाद शुक्ल के लिखे सुदर्शन पत्र का हवाला देते हुए लिखते है कि मुसलमान राज में अयोध्या मुसलमानों के मुर्दो के लिए करबला हुई। मंदिरों की जगह पर मस्जिदों और मकबरों का अधिकार हुआ। अयोध्या का बिलकुल स्वरुप ही बदल दिया।
कौन थी बहू-बेगम
शुजाउदौला की मौत के बाद उसकी विधवा बेगम जिसे बहू बेगम के नाम से जाना जाता है वह अत्यंत क्रूर स्वभाव की थी। अयोध्या अब उसकी जागीर हो चुकी थी। बहू बेगम का अयोध्या नगर में इतना अधिक आतंक था कि जब उसकी सवारी निकलती तो अयोध्या और फैजाबाद में घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे। इतना ही नहीं, रास्ते में कोई माथे पर तिलक लगाए मिल जाता तो उसे कठोर दंड दिया जाता। उसी समय का एक दोहा प्रसिद्ध है कि अवध बसन को मन चहै, पै बसिये केहि ओर। तीन दुष्ट एहि मेें रहें, वानर, बेगम और चोर। बाद में वायसराय वारेन हेस्टिंग्स बहू बेगम और उसकी सास को काफी प्रताडि़त किया। बहू बेगम फैजाबाद में 1816 में मरी और जिस मकबरें में वह गड़ी है उसे बेहद खूबसूरत मकबरा बनाया गया है जो आज भी बहू बेगम के मकबरे के रुप में मौजूद है।
मुसलमानों ने हनुमान गढ़ी पर बोला धावा
अयोध्या का इतिहास में लाला सीताराम लिखते हैं कि गुलाम हुसैन नाम का सुन्नी फकीर हनुमान गढ़ी के महंतों के यहां रहता था। उसने अचानक एक दिन अफवाह फैलाया कि औरंगजेब ने गढ़ी में जो मस्जिद बनवाई थी उसे वैरागियों ने कब्जा कर लिया है। जिसके बाद सुन्नी मुसलमानों ने जिहाद की घोषणा कर दी और हनुमान गढ़ी पर धावा बोल दिया। लाला सीताराम लिखते हैं कि हिंदुओं के आक्रमण से मुसलमान भाग खड़े हुए और भागकर रामजन्मभूमि स्थित बाबरी ढांचे में छिप गए। कप्तान आर, मिस्टर हरसे और कोतवाल मिरजा मुनीम बेग ने यह झगड़ा निपटाया। इस लड़ाई में 11 हिंदू और 75 मुसलमान मारे गए। दूसरे दिन नासिर हुसैन नायब कोतवाल ने मुसलमानों को एक बड़ी कब्र में दफना दिया जिसे गंजशहीदां कहते हैं।