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पौने दो सौ साल पुरानी है जमालपुर की बड़ी दुर्गा, भक्तों की कामनाएं करती है पूरी

भक्तों की कामनाएं पूरी करती है बड़ी दुर्गा महारानी

जमालपुर में दुर्गा पूजा का इतिहास काफी पुराना है। पंरापरा के रूप में शारदीय पूजा की शुरूआत 18वीं शताब्दी में हुई। प्रो0 आलोकनाथ शास्त्री के अनुसार मिट्टी की प्रतिमा बनाकर दुर्गा पूजा करने की परंपरा एक हजार वर्ष पुरानी है। राजबाड़ो के दायरे में सिमटे दुर्गा पूजा को सड़क चैराहे के सार्वजनिक पूजा मंडप तक पहली बार ले आने का काम क्रांतिकारी अतिन्दुनाथ बसु ने 1926 में किया। सार्वजनिक उत्सव के आठ दर्शक पूरा होते होते उसका स्वरूप इतना बदल गया है कि भक्ति बाजारीकरण हो गया है, और पश्चात् सम्यता के साथ—साथ आधुनिकता हावी होता जा रहा है। मुंगेर के उत्तरवाहिणी गंगा के तट पर बने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व समेटे और लौहनगरी के रूप में पूरे देश में विख्यात जमालपुर में एक अत्यंत प्रसिद्ध सिद्ध स्थल है। यह स्थान श्री श्री 108 योगमाया बड़ी दुर्गा स्थान है। यह स्थान उदासीन सम्प्रदाय की अद्भूत कीर्तियों में से एक चर्चित स्थान है। यह सिद्ध स्थल श्री योगमाया बड़ी दुर्गा स्थान उदासीन के नाम से प्रसिद्ध है।श्रीपंचायतती अखाड़ा बड़ा उदासीन मुख्यालय प्रयागराज के मुखिया महंत दुर्गादास इनका गुरु धाम भी है। बड़ी दुर्गा स्थान कहते हैं कि जमालपुर की यह पहली दुर्गा है और इसलिए बड़ी दुर्गा के नाम से जानी जाती है।लौहनगरी जमालपुर नगर के मध्य में अवस्थित है और मध्य में विराजमान होकर माता भगवती अपनी अलौंकिक दया, करूणा,प्रेम,वालसल्य से अपने भक्तजनों पर स्वतः कृपा की वर्षा करती रही है। जमालपुर रामायण काल से ही गृह ग्राम और जनपदीय क्षेत्र था। इसका प्रमाण रामायण काल से ही मिलता है सुप्रसिद्ध समाज शास्त्री एवं प्ररातत्वबिद डाॅ बी.आर. पाटिल ने अपनी एक पुस्तक एन्टी कवेरियन रिमेन्स इन बिहार में बहुत अधिकारपूर्वक यह कहा है कि खुदाई और अनुसंधान के क्रम में जमालपुर पर्वत श्रृंखला की तराई में और पहाड़ पर बसे गांवो में पाषणयुगीन मानव के अस्थि पंजर मिले थे। फरवरी 1865 ई0 से लगभग 35 वर्ष पूर्व अन्नत श्री विभूषित महंत बाबा प्रयाग दास उदासीन ने वैदिक तांत्रिक के द्वारा महामाया आदिशक्ति दुर्गा आदि देवी-देवताओं की स्थापना की थी।उन्हीं उदासीन महापुरूषों महंतो की पंरपरा में इस आश्रम के सम्पति महंत डाॅ मनोहरदास हैं। मंदिर परिसर में एक ओर महंत बाबा प्रयाग दास जी उदासीन (स्थान निर्माता) महंत जुगतराम जी, महंत विशुन दास जी महंत पंचम दास जी, महंत भगवती नंदनदासजी की समाधि है तो दूसरी ओर मंदिर के एक हिस्से में शिवालय दर्शनीय हैं यहाँ संतों महापुरुषों की तप स्थली के रुप में सिद्ध धूना विराजमान है।सिद्ध धूना का साधना मिक्षित विभूति ललाट पर लगाने से असहाय बीमारी से निराश लोग को जीवन जीने की शक्ति मिलती है।

मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही आगत भक्तजनों को ऐसा प्रतीत होता है कि माँ प्रत्यक्ष रुप से विराजमान है।कुछ पल के लिए मन स्वतः ही भौतिक संसार से अलग हटकर आध्यात्मिक जगत के आनन्द में आत्मविभोर हो जाता है। दुर्गा मंदिर में शारदीय नवरात्र के अवसर पर वैदिक एवं तांत्रिक मिश्रित पद्धति से पूजा की जाती है।यहाँ माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है।माँ की साज-सज्जा की सामग्रियां कोलकाता (बंगाल) से लायी जाती है।जाने माने मूर्तिकारों कलाकारों द्वारा माँ तथा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ गढ़ी जाती है।

उनपर रंग रोगन किया जाता है।माँ की मान्यता तथा दिव्य दर्शन के लिए सुदूर क्षेत्रों से भारी संख्या में लोग परिवारों के साथ उमड़ पड़ते हैं और सुख शांति महसूस करते है।यहाँ आरती में समय सैकड़ों की संख्या में भक्तों नर उपस्थिति देखा जा सकता है।संध्या बेला में हजारों की संख्या में कुमारी कन्या तथा विवाहित महिलाएँ माता के सम्मुख दीप प्रज्वलित अपनी भावना अर्पित करती है जो दृश्य मन प्राणों को अध्यात्मिकता से भर देता है।पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के मुखिया महंत दुर्गादास अपने गुरुधाम पहूँचे है। उनका मानना है कि राष्ट्र कल्याण लोक कलयाण के निर्मित तथा विश्व में उपद्रव जैसी कार्य शक्तियों को मूल नष्ट करने के उपदेश तथा विश्व में शांति स्थापित करने जाति-पांत के भेदभाव के विचारों से उपर उठते हुए मानव मात्र के अन्दर तमोगुणी शक्ति को नष्ट कर पवित्र एवं मंगलमय आयोजन किया जाता है।आरती भजन का समवत कार्यक्रम मनभावन लगता है।जय दुर्गा, लक्ष्मी सरस्वती देवी जय जय अम्बे भवानी माँ जगदम्बे भवानी,मंत्र गुंज रहें हैं,इस बड़ी दुर्गा स्थान को उदासीन बड़ा अखाड़ा के मुखिया महंत दुर्गादास जी का सानिध्य प्राप्त है।गत दस-पंद्रह वर्षो से इस बड़ी दुर्गा स्थान मंदिर का जीर्णोद्वार निर्माण कार्य विकास विस्तार कार्य जारी है। दुर्गा स्थान के परिसर में भक्त के साथ नर- नारियों का जत्था पूजा के गीत गुजांयमान रहते हैं। महिला भक्त मंडली का स्वर तेज है।आई सिंह पे सवार मैया ओढ़े चुनरी, कुछ मांगे इअलौह मैया अंचरा पसारा। यहाँ माता दुर्गा प्रातः दोपहर तथा संध्या काल में अलग-अलग रुपों में दर्शन देती है।

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