लगभग प्रतिदिन प्रेमी जोड़ों द्वारा आत्महत्या कर मृत्यु का आलिंगन करने के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। क्या कारण है कि आज भी समाज प्रेमी जोड़ों को जिंदा रहकर जीवन जीने का अवसर नहीं देता। जो युवक-युवती प्रेम विवाह करते हैं उनमें से कईयों की या तो हत्या कर दी जाती है या वे स्वयं परेशान होकर आत्महत्या कर लेते हैं। कल (17 सितंबर 2023) के अखबारों में एक प्रेमी जोड़े द्वारा की गई आत्महत्या का समाचार पढ़ने को मिला। यह जोड़ा नरसिंहपुर जिले से आत्महत्या करने के लिए भोपाल आया था। उसने एक दुर्गम स्थान पर आत्महत्या की।
कुछ दिनों पूर्व अहमदाबाद से यह समाचार आया था कि एक पूरे परिवार ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली क्योंकि उनके परिवार की एक बेटी ने एक दलित युवक से प्रेम विवाह कर लिया था। प्रेम एक अत्यधिक पवित्र रिश्ता होता है। अनेक प्रेम के रिश्ते से किए गए विवाह आज सदियों बाद भी याद किए जाते हैं। इनमें लैला-मंजनू, शीरी-फरहाद, सोहनी-महिवाल, ब्रिटेन के राजा द्वारा प्रेम की खातिर गद्दी त्यागकर एक साधारण परिवार की लड़की से विवाह आदि शामिल हैं। ‘‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’’ मीरा का यह भजन आज भी करोड़ों लोगों की जुबान पर है। यद्यपि इसे आध्यात्मिक प्रेम के रूप में याद किया जाता है। प्रेम पर आधारित बनीं अनेक फिल्में, कहानियां और उपन्यास बड़े चाव से देखे और पढ़े जाते हैं।
इस सबके बावजूद प्रेम हत्याओं और आत्म हत्याओं की वजह बनता है। दुःख की बात है कि समस्या की ओर समाज का ध्यान नहीं गया है। वैसे संविधान और कानून में किसी भी वयस्क व्यक्ति को स्वयं के बारे में विवाह समेत किसी भी प्रकार का निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। परंतु किसी परिवार का वयस्क युवक या युवती स्वतः निर्णय लेकर अपने प्रेमी से विवाह कर लेता है तो उसके परिवार के सदस्यों के अहं को चोट लग जाती है और फिर वह उसकी हत्या पर आमादा हो जाता है। इसी तरह एक परिवार ने अपनी बेटी से बदला लेने के लिए उसके साथ उसके भाई और भाभी के रहने का प्रबंध किया ताकि मौका पाकर विद्रोही बेटी की हत्या की जा सके। मेरी राय में संपूर्ण समाज, कानूनविदों, जनप्रतिनिधियों आदि को मिलकर कोई ऐसा निदान ढूंढना चाहिए ताकि प्रेम के नाम पर और प्रेम के कारण अनावश्यक खून-खराबा बंद हो सके और प्रेम संबंधों को लेकर मधुर गीत गाए जा सकें।