वॉशिंगटन (ईएमएस)। आज से लगभग 50 साल पहले सोवियत संघ और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष में रेस चल रही थी। सोवियत संघ ने जहां अपने लैंडर चांद पर उतार दिए, वहीं अमेरिका सबसे पहले इंसानों को भेजने में कामयाब रहा। 54 साल पहले इंसान ने चांद पर कदम रखा था। पांच दशक बाद अब भारत ने भी अपना टार्गेट चांद को बना लिया है। 23 अगस्त को चांद पर लैंडर उतार कर भारत ने वह कर दिखाया, जो आज तक कोई नहीं कर सका था। लेकिन क्या कभी भारत भी चांद पर इंसानों को पहुंचा सकेगा?
इसका जवाब अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक नीलेश देसाई ने दिया। उन्होंने कहा कि चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने में कम से कम दो से तीन दशक लग सकते हैं। उनका यह बयान चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद आया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और रूस पहले ही ऐसा कर चुके हैं। लेकिन भारत को इसमें कुछ समय लगेगा क्योंकि हमें सिर्फ आदमी नहीं भेजना, आदमी को जिंदा वापस भी लाने की जरूरत है। हमें तकनीक बढ़ाने की जरूरत है। अगर हमारे पास अच्छी परखी हुई तकनीक हुई तब यह कदम उठा सकते हैं। लेकिन इसमें भारत को कम से कम 20-30 साल लग सकते हैं।
नासा फिर चांद पर जाने की तैयारी कर रहा है। नासा का लक्ष्य है कि 2025 तक इंसानों को फिर चांद पर पहुंचाया जाए। इसके लिए नासा ने आर्टेमिस प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसमें तीन मिशन चलाए जाएंगे। सबसे पहला मिशन आर्टेमिस-1 है जो 2022 में पूरा हो गया है। इसके तहत खाली ओरायन कैप्सूल को चांद तक भेजा गया। ये कैप्सूल चांद का चक्कर लगा कर धरती पर वापस आ गया। ओरायन ने 450,000 किमी की यात्रा की थी और 130 किमी की ऊंचाई से चांद का चक्कर लगाया था।
इसके बाद 2024 के अंत तक आर्टेमिस-2 मिशन चलाया जाएगा, जिसमें 4 अंतरिक्ष यात्रियों को बैठाकर चांद तक भेजा जाएगा। यह लोग सिर्फ चांद का चक्कर लगाकर वापस आ जाएगा। मिशन में आठ से दस दिन लगेगा और ओरियन मॉड्यूल के लाइफ सपोर्ट सिस्टम और इसकी क्षमता का मूल्यवान डेटा इकट्ठा किया जाएगा। तीसरा आर्टेमिस मिशन 30 दिनों का होगा, जिसके तहत इंसानों को चांद पर भेजा जाएगा। स्पेसएक्स की तरफ से एक ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम डिजाइन किया जा रहा है, जिससे इंसानों को चांद पर उतारा जाएगा।