कानपुर (हि.स.)। जून माह से शुरु हुई मानसून की बारिश जुलाई माह तक अच्छी रही। यहां तक कि जुलाई माह में औसत से 47.3 फीसदी ज्यादा बारिश हो चुकी थी। इसके बाद समुद्री गतिविधियां अलनीनो का प्रभाव पड़ गया और अगस्त माह में पिछले 122 साल में सबसे कम बारिश हुई। इससे उत्तर प्रदेश के दर्जनों जनपदों में सूखा जैसे हालात हो गए हैं और फसलें प्रभावित हो रही हैं।
चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ. एस एन सुनील पाण्डेय ने शुक्रवार को बताया कि ओपनिंग के साथ एंट्री करने वाला मानसून बीते एक महीने से बिल्कुल कमजोर रहा है। अगस्त में कम बारिश होने से प्रदेश के कई जिलों में सूखे का संकट छाने लगा है। प्रदेश में 31 जुलाई तक 398.93 मिमी यानि औसत 47.3 फीसदी ज्यादा बारिश हो चुकी थी। इसके बाद अलनीनो का प्रभाव देखने को मिला और इस बार अगस्त महीने में 122 साल के इतिहास में सबसे सूखा महीना दर्ज किया गया है। इस अवधि के दौरान भारत में बारिश में 33 प्रतिशत की कमी होने की संभावना है, जिससे कृषि और पानी की उपलब्धता पर खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही है, क्योंकि कृषि में वर्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस साल के मानसून सीजन में अगस्त महीने में 20 दिनों के लिए ‘ब्रेक’ आया है, जिससे वर्षा की कमी हो रही है। यह स्थिति कृषि, पानी और मौसम प्रभावित सेक्टरों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
मौसम विभाग ने सात सितंबर तक सामान्य से कम बारिश का अनुमान जताया है, इससे प्रदेश के दो दर्जन से अधिक जिलों में सूखा पड़ने की आशंका है। फिलहाल 10 जिले सामान्य से ज्यादा, 14 जिले में सामान्य और 9 जिले में सामान्य से नीचे की कैटेगरी में आ चुका है। विज्ञानियों का कहना है कि अल-नीनो अभी अगले साल मार्च- अप्रैल तक इसी स्थिति में रहने की संभावना है, ऐसे में मानसून के बाद व सर्दियों में भी बारिश कम होगी और उसके बाद अगले साल के मानसून से पहले प्री-मानसून में भी कम बारिश की आशंका है।