प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के चित्रकूट-सतना सीमांकन क्षेत्र में करीब 140 करोड़ वर्ष पुराने तीव्र भूकम्प के प्रमाण खोज निकाले हैं। चित्रकूट धाम से लगभग 3.5 किमी दूर स्थित हनुमानधारा पहाड़ (विंध्य पर्वत) पर कई ऐसी विकृत संरचनाएं मिली हैं, जो उस समय के भूमिगत परिवर्तनों को दर्शाती हैं।
प्रोफेसर जयंत कुमार पति एवं अनुज कुमार सिंह (श्यामा प्रसाद मुखर्जी फेलो) के अनुसार इन विकृति संरचनाओं का गठन भूकम्पीय झटकों द्वारा उत्पन्न गुरुत्वाकर्षणीय अस्थिरता, तरलीकरण एवं द्रवीकरण समेत कई अन्य प्रक्रियाओं के संयोजन से सम्बंधित है। वर्तमान अध्ययन (विकृति संरचनाओं के प्रकार एवं उनकी जटिलता, भूगतिकीय वितरण, विन्ध्यनसंधीय का भू-भौगोलिक ढांचा) इस बात की पुष्टि करता है कि रिक्टर पैमाने पर इस भूकम्प की तीव्रता 5 से अधिक होगी। वर्तमान शोध के परिणाम एवं निष्कर्ष, स्पष्ट चर्चा के साथ, प्रतिष्ठित एल्से वियर जर्नल (जर्नल ऑफ पेलियोजियोग्राफी) के आगामी अंक (जुलाई, 2023) में प्रकाशित हो रहे हैं। हालांकि इस शोध पत्र का प्री-प्रिंट जर्नल के वेबसाइट पर अभी ऑनलाइन उपलब्ध है।
इविवि की पीआरओ डॉ जया कपूर ने बताया कि शोधकर्ताओं के अनुसार मध्य भारत के इस भूभाग को अभी तक भूकम्पीय झटकों से सुरक्षित माना जाता रहा है। परन्तु इस शोध ने भूमिगत परिवर्तनों को एक नए रूप से अध्ययन करने पर बल दिया है। अब जबलपुर की तरह ये कतई नहीं माना जाना चाहिए कि मध्य भारत के इस भूभाग में तीव्र भूकम्पीय झटके नहीं आ सकते। हिमालय के टकराव जोन की तरह, मध्य भारत के ये भूभाग भी भूकम्पीय झटकों से प्रभावित हो सकते हैं।
एक लम्बे समय से मध्य भारत क्षेत्र को भूकम्पीय दृष्टिकोण से काफी सुरक्षित माना गया है। हालांकि प्राचीन विंध्य बेसिन में विभिन्न विकृति संरचनाएं एवं उनकी संरचनात्मक विशेषताएं, भूकम्पीयता की प्रासंगिकता का प्रकटीकरण करती हैं। हाल के दिनों में इस इलाके में छोटे-छोटे भूकम्प आए हैं जो यह संकेत दे रहे हैं कि इस इलाके में जमीन के भीतर कुछ ऐसी भ्रंशे हैं, जो भविष्य में किसी बड़े भूकम्प का कारण बन सकती हैं। भूकम्प से धरती की अंदरूनी संरचना को समझने में वैज्ञानिकों को मदद मिलती है। हालांकि तीव्रता अधिक होने पर इनकी वजह से जान माल का नुकसान बहुत होता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हम भूकम्पों को नहीं रोक सकते, लेकिन सरकार की गाइडलाइन का सावधानीपूर्वक पालन करके मजबूत इमारतों के निर्माण किए जाने चाहिए।