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उप्र की इत्र नगरी तय करेगा सोने से मंहगे बिकने वाले अगरवुड ऑयल का मानक

– चंदन अगरबत्ती की गुणवत्ता तय करने के बाद अब कन्नौज एफएफडीसी को एक ओर महत्वपूर्ण कार्य का मिला अवसर

कन्नौज (हि.स.)। देश-विदेश में अपनी सुगंध से महकाने वाला ख्याति प्राप्त इत्र नगरी कन्नौज मनमोहक खुशबू (इत्र) उत्पादन के लिए मशहूर है। यह नगरी अब देश-दुनिया में सबसे महंगे बिकने वाले अगरवुड ऑयल का मानक तय करेगा। ऑयल के मानक तय करने की इस बड़ी जिम्मेदारी को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री द्वारा उप्र की कन्नौज नगरी में स्थापित सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) को मिली है। इस फार्मूला का मानक तय करने के लिए शोध पर खर्च होने वाला बजट भी आवंटन कर दिया गया है।

इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज के नाम एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ने वाली है। दुनिया के सबसे महंगे तेल अगरवुड के मानक को आने वाले समय में कन्नौज से तय किया जाएगा। कन्नौज में बने सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) को इसकी टेस्टिंग की जिम्मेदारी मिली है। इस प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर मुहर लगने के बाद सरकार की तरफ से एफएफडीसी को इसका भुगतान भी कर दिया गया है। तेल का सैंपल आते ही मानक बनाने पर इसको भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) में भेज दिया जाएगा।

क्या है अगरवुड और कहां से आती है लकड़ी

अगरवुड की खेती सुगन्धित लकड़ी के लिए की जाती है, इसे गॉड ऑफ़ वुड भी कहते हैं। इसका रासायनिक नाम एक्वीलेरिया है। अगरवुड पूर्व, दक्षिण एशिया मूल का पौधा है। विश्व में अगरवुड के पेड़ों का उत्पादन भारत, चीन, वियतनाम, सुमात्रा, मलाया, बांग्लादेश, कंबोडिया, म्यांमार, भूटान, लाओस, मलक्का, सिंगापुर और जावा देशों में किया जाता है। यह एक्विलरिया की एक संक्रमित लकड़ी है, जिसका पूर्ण विकसित वृक्ष 40 मीटर लम्बा और 80 सेमी. तक चौड़ा होता है। यह एक जंगली पेड़ है, जो कुछ विशेष परजीवी कवक या सांचो से संक्रमित होकर विकसित होते हैं। यह फियालोफोरा पैरासिटिका कहलाते हैं। इस संक्रमण से अप्रभावित पौधा प्रतिक्रिया कर हर्टवुड से अगरवुड में परिवर्तित हो जाता है। यह पूरी तरह से गंधहीन पूर्ण संक्रमण होता है, जो समय के साथ अधिक संक्रमित होकर गहरे रंग का राल उत्पन्न करता है।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने मानक तय करने की दी जिम्मेदारी

एफएफडीसी के प्रबंध निदेशक डॉ शक्ति विनय शुक्ला ने बताया कि चंदन अगरबत्ती के मानक तय करने के बाद एफएफडीसी को नई जिम्मेदारी मिली है। यह जिम्मेदारी त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा द्वारा एफएफडीसी को मिली है। उनके द्वारा अगरवुड तेल इत्र और इसके मानक तय करने का जिम्मा मिला है।जिसको लेकर हमारी टीम ने चर्चा कर आगे की प्रोसेसिंग को लेकर रणनीति तैयार कर ली है।

जल्द शुरू हो जाएगा काम

एफएफडीसी के प्रबंध निदेशक डॉ शुक्ला ने बताया कि अगरवुड ऑयल के मानक को लेकर मार्च 2022 को त्रिपुरा सरकार ने इसकी जिम्मेदारी दी थी और उसका बजट आवंटित हुआ था। उस बजट को पास करके उसका पैसा भेज दिया गया है। जैसे ही वहां से अगरवुड तेल आता है तो उसके मानक तय करने का काम तेजी से शुरू कर दिया जाएगा।

अगरवुड को भगवान की लकड़ी भी कहते हैं

अगरवुड काफी बेशकीमती होती है। इसकी पैदावार भी बहुत कम होती है। इसके चलते इसको भगवान की लकड़ी भी कहा जाता है। इसका तेल इतना महंगा होता है कि इसको लिक्विड गोल्ड भी कहा जाता है।

80 लाख तक होती है ऑयल की कीमत

एफएफडीसी के प्रबंध निदेशक डॉ शक्ति विनय शुक्ला ने बताया कि पैदावार कम होने के चलते यह काफी मुश्किल से प्राप्त हो पता है। इसके चलते इसकी कीमत 70 से 80 लाख रुपये किलो तक की होती है।

सुगंधित इत्र बनाने में आता है काम

अगरवुड का तेल बनाने के लिए इस पेड़ की छाल को उधेड़ दिया जाता है। उसमें फफूंद लगने के साथ ही इसमें एक खास किस्म की रार या गोंद निकलता है। इसी रार या गोंद से कई प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद अगरवुड का ऑयल तैयार की जाती है।

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