– हाई कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने एकल जज के आदेश को सही न मानते हुए रद्द कर दिया
प्रयागराज, (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने होमगार्ड सेवा को सिविल पदधारक (सरकारी कर्मचारी) मानने वाले एकल पीठ के आदेश को सही न मानते हुए इसे रद्द कर दिया है। खंडपीठ ने कहा है कि होमगार्ड की सेवा वालेंटियर सेवा है, वे सिविल पद धारक नहीं हो सकते।
हालांकि, कोर्ट ने यूपी होमगार्ड अधिनियम के तहत धारा 12 में दी गई शक्तियों के उपयोग के क्रम में होमगार्ड के निलंबन या सेवामुक्ति के लिए नियम बनाने का सुझाव दिया है ताकि किसी भी सदस्य की सेवामुक्ति या निलंबन की शर्तों को विनियमित किया जा सके। कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति होमगार्ड विभाग के सचिव को भेजने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विभाग इस संदर्भ में उचित कार्रवाई करें।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने यूपी सरकार की ओर से दाखिल विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि यूपी होमगार्ड अधिनियम के तहत कमांडेंट होमगार्ड के किसी भी सदस्य की सेवा समाप्ति या निलम्बित कर सकता है। लेकिन, इसके लिए कोई निर्धारित प्रावधान नहीं है। इसलिए इसको अधिनियमित करने की जरूरत है।
मामले में एकल पीठ ने कमांडेंट द्वारा बर्खास्त किए गए होमगार्ड की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उनकी सेवा को सिविल सेवक के रूप में माना था। इसके साथ ही कमांडेंट द्वारा होमगार्ड की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया था। एकलपीठ ने अपने नौ सितम्बर 2021 के आदेश में कहा था कि होमगार्ड यूपी होमगार्ड अधिनियम की धारा सात के तहत वालेंटियर के रूप में रजिस्टर्ड होकर धारा आठ के तहत ड्यूटी पर तैनात किए जाते हैं। ड्यूटी पर तैनाती के दौरान वह सरकार की सेवा में रहते हैं। इसलिए वे भी सिविल सेवक माने जाएंगे। उनके साथ भी सरकारी सेवकों की भांति भारतीय संविधान की धारा 311 के तहत कार्रवाई की जाए।
यूपी सरकार ने एकल पीठ के आदेश को विशेष अपील के जरिए चुनौती दी। खंडपीठ के समक्ष सरकारी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने तर्क दिया कि एकल पीठ ने एक शब्द के आधार पर होमगार्ड को सरकारी कर्मचारी मान लिया। जबकि, होमगार्ड सेवा में कोई परीक्षा पास करके नहीं आते हैं। वे बतौर वालेंटियर जुड़ते हैं और स्वेच्छा से अपनी सेवा देते हैं। इसलिए वे सरकारी कर्मचारी नहीं हो सकते हैं। लिहाजा, एकल पीठ के आदेश को रद्द किया जाए। कोर्ट ने मामले में 31 मई को अपनी सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर लिया था।