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हिमाचल , उत्तराखंड, यूपी, दिल्ली पंजाब, हरियाणा, मप्र में बारिश, बाढ़, भूस्खलन से सरकारी और निजी संपत्ति को भारी नुकसान

-कुल्लू में बादल फटा, एक की मौत, आगरा में ताजमहल तक पहुंचा यमुना का पानी, दिल्ली के बाद मथुरा में नदी उफान पर

नई दिल्ली (ईएमएस)। इस बार मानसून की बारिश कई राज्यों में आफत बन गई है। बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से जहां करीब 700 लोगों की मौत की खबर है, वहीं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, यूपी, मप्र, पंजाब और दिल्ली समेत कई राज्यों में भारी बारिश से आई बाढ़ ने देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ से देश को करीब 15,000 करोड़ रुपए का इकोनॉमिक लॉस यानी आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।

एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बाढ़ों से होने वाले भारी नुकसान, साथ ही हाल ही में आए बिपरजॉय साइक्लोन जैसे नेचुरल डिजास्टर्स (प्राकृतिक आपदाओं) देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकल और ज्योग्राफिकल विशेषताएं देश को कई प्राकृतिक खतरों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बाढ़ों के कारण आर्थिक नुकसान की वर्तमान स्थिति का अनुमान लगाया जाना बाकी है। हमारा मानना है कि यह 10,000-15,000 करोड़ रुपए के बीच हो सकता है। उधर, दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे आने के बाद एक बार फिर बढऩे लगा है। इसकी वजह से उत्तर प्रदेश के आगरा-मथुरा के कुछ इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। यमुना का पानी आगरा में ताजमहल तक आ चुका है। मथुरा में यमुना डेंजर लेवल से 1 मीटर ऊपर बह रही है। इसके चलते नदी के आस-पास के मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए हैं। वहीं 52 कॉलोनियों में भी पानी भर गया है। एनडीआरएफ ने अब तक 500 लोगों को सुरक्षित राहत शिविर में पहुंचाया है। इसके अलावा अभी भी बहुत सारे लोग बाढ़ में फंसे हुए हैं। सोमवार सुबह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के कायस गांव में बादल फट गया। इससे एक की मौत हो गई और 3 घायल हैं। 9 गाडिय़ां पानी में बह गईं।

41 प्रतिशत प्राकृतिक आपदाएं बाढ़
अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है, जिसे 1990 के बाद से सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। जिसमें भूस्खलन, तूफान, भूकंप, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाएं शामिल हैं। भारत में 1900 के बाद से प्राकृतिक आपदाओं के 764 मामले दर्ज किए गए हैं। 1900 से 2000 तक भारत में 402 प्राकृतिक आपदाएं देखी गईं। वहीं 2001 से 2022 तक भारत में 361 ऐसी घटनाएं हुईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आने से आर्थिक तनाव के नए रिकॉर्ड बन गए हैं। प्राकृतिक आपदाओं में भारत में सबसे ज्यादा बाढ़ आती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 41 प्रतिशत प्राकृतिक आपदाएं बाढ़ के रूप में आईं हैं। इसके बाद देश में सबसे ज्यादा तूफान आते हैं।

भारत में सिर्फ 8 प्रतिशत ही कराते हैं इंश्योरेंस
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रोटेक्शन गैप बना हुआ है। यानी बहुत कम लोग ही ऐसे हैं, जो अपने नुकसान की भरपाई के लिए इंश्योरेंस (बीमा) करवाते हैं। 2022 में प्राकृतिक आपदाओं के कारण ग्लोबल लेवल पर टोटल 275 बिलियन डॉलर यानी 22.56 लाख करोड़ रुपए के इकोनॉमिक लॉस में से 125 बिलियन डॉलर यानी 10.25 लाख करोड़ रुपए बीमा द्वारा कवर किया गया था। इस हिसाब से 2022 में ओवरऑल प्रोटेक्शन गैप बढक़र 151 बिलियन डॉलर यानी 12.38 लाख करोड़ रुपए हो गया है, जो कि 10 साल के एवरेज 130 बिलियन डॉलर (10.66 लाख करोड़ रुपए) से बहुत ज्यादा है। यह बिना बीमा के टोटल नुकसान का लगभग 54 प्रतिशत है। हालांकि, यह अभी भी बहुत बड़ा गैप है, यह पिछले 10 सालों के 61 प्रतिशत एवरेज प्रोटेक्शन गैप से कम है। भारत में यह प्रोटेक्शन गैप का आंकड़ा 92 प्रतिशत है। यानी सिर्फ 8 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं, जो बीमा करवाते हैं।

 
रिपोर्ट में इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़े नेचुरल डिजास्टर रिस्क के लिए एक डिजास्टर पूल की जरूरतों पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर हम भारत में 2020 की बाढ़ की बता करें तो टोटल आर्थिक नुकसान 7.5 बिलियन डॉलर (52,500 करोड़ रुपए) का हुआ था, लेकिन इंश्योरेंस कवर सिर्फ 11 प्रतिशत था। एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी का जिक्र भी किया गया है, जिसने पब्लिक हेल्थ और बिजनेस तैयारियों में सुधार की आवश्यकता की ओर इशारा किया है। भारत को प्राकृतिक आपदाओं के लिए आउट-ऑफ-द-बॉक्स सोल्यूशन और प्रोटेक्शन गैप के संबंध में व्यवसायों में जागरूकता की आवश्यकता है।

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