– महानिबंधक ट्रायल रोकने वाले केसों को सुनवाई के लिए अदालतों में करें पेश
प्रयागराज, 25 नवंबर (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश की सभी एमपी-एमएलए विशेष अदालतों को फांसी, उम्रकैद व पांच वर्ष से अधिक की सजा से दंड वाले आपराधिक मामलों को प्राथमिकता के आधार पर यथाशीघ्र तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि हाई कोर्ट या सत्र अदालत से सुनवाई पर रोक लगी है तो मासिक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया जाय।
कोर्ट ने महानिबंधक को ऐसे मामले जिनमें ट्रायल पर रोक है, सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है ताकि सुनवाई कर अवरोध हटाया जा सके। साथ ही मजिस्ट्रेट की विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ यदि सत्र अदालत में अपील या पुनरीक्षण अर्जी लंबित है तो यथाशीघ्र सुनवाई कर तय करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को सभी एमपी-एमएलए विशेष अदालतों को मुकदमों के त्वरित निस्तारण की तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराने का भी आदेश दिया है और कहा है कि यदि हाई कोर्ट के अनुमोदन की जरूरत हो तो सूचित किया जाय। जिसका हल प्रशासनिक तौर पर किया जा सके। कोर्ट ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र एवं शासकीय अधिवक्ता एके सण्ड से इसमें सहयोग मांगा है और याचिका को सुनवाई के लिए 4 जनवरी 24 को पेश करने का आदेश दिया है।
यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमके गुप्ता तथा न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने अश्वनी उपाध्याय केस में सुप्रीम कोर्ट के 9 नवम्बर 23 को दिये गए आदेश के अनुक्रम में स्वतःकायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट इस याचिका के माध्यम से सांसदों, विधायकों के खिलाफ विचाराधीन आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों की मानीटरिंग करेगी। कोर्ट को बताया गया कि इसी मामले में पहले ही एक जनहित याचिका विचाराधीन है। जिसमें समय-समय पर निर्देश जारी किए गए हैं। दोनों याचिकाओं की अब एक साथ सुनवाई होगी।
प्रदेश में सत्र अदालत एवं मजिस्ट्रेट स्तर की अलग-अलग विशेष अदालतें सांसदों-विधायकों के मुकदमों की सुनवाई कर रही हैं। वे हर माह प्रगति रिपोर्ट हाई कोर्ट को भेजती हैं। इसमें उन केसों का जिक्र भी होती है जिनके कारण ट्रायल रुका हुआ हैं। हाई कोर्ट ने मौत, उम्रकैद एवं पांच साल से अधिक की सजा के आपराधिक मामलों को सुनवाई में वरीयता देने का निर्देश दिया है और कहा है कि अपरिहार्य परिस्थितियों के अलावा सुनवाई अनावश्यक रूप में स्थगित न की जाय। कोर्ट ने जानकारी वेबसाइट पर अपडेट करते रहने का भी आदेश दिया है।