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सावधान : दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से हो रही ये बीमारियां, आईबीएस और आईबीडी जैसी समस्या बढ़ी

 

नई दिल्ली  । दिल्ली-एनसीआर में अब वायु प्रदूषण भयावह रूप धारण करता जा रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक, यहां रहने वाले लोगों में इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) और इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) जैसी पाचन संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। बुधवार को दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी 301 से 400 के बीच रही, जो कई जगह गंभीर श्रेणी में पहुंच गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, सुबह 7:30 बजे तक दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 358 था। बवाना (412), मुंडका (419), एनएसआईटी द्वारका (447) और वजीरपुर (421) जैसे क्षेत्रों में एक्यूआई 400 को पार कर गया, जो गंभीर स्तर है। वायु प्रदूषण से श्वसन से लेकर हृदय संबंधी, चयापचय और यहां तक ​​कि मानसिक स्वास्थ्य तक की समस्याएं हो सकती हैं। यह पाचन संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है। नई दिल्ली स्थित एम्स में सामुदायिक चिकित्सा केंद्र के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. हर्षल आर. साल्वे ने बताया, लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से मुक्त कण सक्रिय होते हैं, जिससे इंफ्लेमेटरी प्रतिक्रियाएं होती हैं। इससे पाचन तंत्र में कैंसरकारी या इन्फ्लेमेशन संबंधी विकार हो सकते हैं।

प्रदूषित हवा से बिगड़ता है आंत का स्वास्थ्य

गुरुग्राम के नारायणा हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, हेपेटोलॉजी और लिवर ट्रांसप्लांटेशन के कंसल्टेंट डॉ. सुकृत सिंह सेठी ने कहा, वायु प्रदूषण के कारण हम कई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) और मेटाबोलिक सिंड्रोम संबंधी स्थितियों का सामना कर रहे हैं। प्रदूषित हवा में मौजूद हानिकारक कण और गैसें जब सांस के साथ अंदर जाती हैं तो सिस्टमिक इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करती हैं जो आंत के स्वास्थ्य को बिगाड़ती हैं और माइक्रोबायोम को प्रभावित करती हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि आईबीएस और आईबीडी के साथ-साथ क्रोन डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस (आईबीडी का एक प्रकार) जैसी बीमारियां प्रदूषण के संपर्क में आने से होती हैं। सेठी ने कहा, प्रदूषण से होने वाले सिस्टमिक इन्फ्लेमेशन चयापचय संबंधी गड़बड़ी पैदा कर सकती है जो पाचन और समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि बच्चे, बुजुर्ग और पहले से बीमार लोग पाचन स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं। बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली और पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं, जिससे वे अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वृद्धों में अक्सर प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं कमजोर होती हैं और उन्हें पेट की बीमारी होती है।

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