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सत्ता संग्राम : कैसरगंज लोकसभा चुनाव धुरंधरों की बढ़ गई धड़कन

 

जरवल/बहराइच। एसी की कूल कूल हवा मे रहने वाले नेताओ का ही नही उनके लंगोटिया यारो का भी चुनाव के अंतिम दौर मे अब पसीना छूट रहा है। प्रचण्ड गर्म हवाओं के बीच वोटरो से मन की बात करना जी के जंजाल से कम भी नहीं है।पर “मरता न तो करता क्या” गुड भरी हंसिया को निगलना भी है।जिसको लेकर कैसरगंज लोकसभा के भाजपा ही नही सपा प्रत्याशी का मुस्लिम प्रेम कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है।बताते चले हाल ही मे इस संसदीय सीट के विवादो मे फंसे बृजभूषण शरण सिंह का टिकट जब काट कर उनके छोटे बेटे करण भूषण सिंह को दिया गया तो चुनावी समीकरण भी बदल गए जिसको लेकर सांसद बृजभूषण शरण सिंह को पुत्र की उनके ही क्षेत्र में हो रही अग्नि परीक्षा को लेकर सांसद बृजभूषण सिंह ने मुस्लिम नेताओ का प्रेम अचानक जाग गया l जिसको लेकर वह कमल खिलाने पर भरोसा किया है।

लेकिन नेता जी की कसौटी पर क्या मुस्लिम वोटर खरे भी उतर पायेंगे नेता जी के इस नए प्रयोग से क्या उनके बेटे करण की चुनावी बैतरणी पार भी होगी ? एक बड़ा सवाल भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओ पर अपनी छाप जरूर छोड़ रहा है। वैसे यह भी कहना गलत न होगा की सांसद बृजभूषण शरण सिंह से मुस्लिम नेताओ से ही नही सामान्य मुस्लिम समाज में उनकी कम पैठ भी नही है जिसका उन्हे व्यक्तिगत फायदा हो सकता है l पर कमल के निशान पर मुस्लिम वोटर अपने नफा नुकसान का भी कम आंकलन नही कर रहा। दूसरी तरफ तमाम भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओ मे यह बात भी बैठ चुकी है कि नेता जी का यह ओवर कांफीडेस कही उनके सारे किए धरे पर पानी न फेर दे।रही बात इस संसदीय सीट पर सपा प्रत्याशी भगतराम मिश्रा की तो मुस्लिम ब्राह्मण यादव के साथ अन्य जातियों मे भी उनकी कम सेंध मारी नही है जिसे नकारा भी नही जा सकता है। परिणाम जो भी हो पर मुख्य मुकाबला भाजपा व सपा के बीच आ ठहरा है। वैसे इस सीट पर बसपा ने भी नरेन्द्र पाण्डे पर दांव लगाया जरूर है पर चर्चा मे केवल भाजपा व सपा का नाम लोग ले रहे है जिससे बसपा के कैडर वोटरो के सामने असमंजस की स्थित बन गई है कि वह किस मुकाम पर कदम रखे कुछ सोच नही पा रहे है जबकि उनका निर्णायक मत भी है।

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