रायबरेली (हि.स.)। श्री राम मंदिर आंदोलन के लिए रामभक्तों ने बहुत संघर्ष किया। जेल गए और पुलिस की लाठी-गोली का शिकार हुए। आंदोलन के इस पथ पर न केवल आमजन चले बल्कि साधू-संतों ने भी अपना अहम योगदान दिया है। आंदोलन की शुरुआत से ही कई संतों और धर्माचार्यों को जेल जाना पड़ा और यातनाएं सहनी पड़ी। अब इन सभी के लिए जीवन का सबसे शुभ दिन आया है।
रायबरेली में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक मठ डलमऊ के बड़े मठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि श्रीराम मंदिर आंदोलन में संघर्ष के शुरुआती दिनों से काफी सक्रिय रहे। लोगों को आंदोलन से जोड़ने के लिए वह लागातार बैठकें करते थे। साधू-संतों को जागरूक करने के लिए उन्होंने कई यात्राएं भी की। 1990 में कारसेवा के लिए एक बड़े जत्थे का नेतृत्व उन्होंने किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें अयोध्या के रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया और उन्हें गोरखपुर जेल भेजा गया। वहां वह 18 दिन तक रहे। आज जब प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बन रहा है तो वह भाव विह्वल हैं और अपने को धन्य मान रहे हैं कि रामकाज में उनका भी योगदान रहा है।
स्वामी देवेंद्रानंद गिरी कहते हैं कि 22 जनवरी 2024 का दिन उनके लिए सबसे शुभ और कभी न भूलने वाला होगा। वह अपने जीवनकाल में प्रभु श्रीराम का मंदिर और प्राण प्रतिष्ठा होता देख रहे हैं। इसके पहले भी 2019 के फ़ैसले के बाद जब मंदिर बनने की शुरुआत हुई तो डलमऊ से पवित्र पावनी गंगा का जल और पौराणिक मान्यता वाले धर्मस्थलों की माटी लेकर वह अयोध्या पहुंचे थे।