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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामला : कमिश्नर नियुक्त किए जाने पर फैसला सुरक्षित

–मंदिर पक्ष का दावा, मस्जिद के नीचे है कृष्ण का मूल गर्भ गृह

प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्म भूमि और शाही ईदगाह विवाद में एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए जाने के लिए दाखिल अर्जी पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।

इसके साथ ही कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अन्य मामलों में उपस्थित न रहने वाले पक्षकारों को नोटिस जारी करने का आदेश भी दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ ने अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन और प्रभाष पांडेय की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।

इसके पहले अर्जी पर अधिवक्ताओं की ओर से दलील दी गई कि पीठ के सामने मथुरा विवाद से जुड़े सभी 16 केसों की सुनवाई होनी है। इसके पहले कोर्ट अगर एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर भौतिक निरीक्षण करा ले तो इससे केस की सुनवाई में अहम सबूत सामने आ जाएंगे। क्योंकि, मस्जिद के नीचे भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े कई प्रतीक मौजूद हैं, जो केसों की सुनवाई के लिए अहम होंगे। इसके अलावा हिंदू स्थापत्य कला से जुड़े सबूत भी हैं।

 

 

कहा गया कि ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वेश्वर मंदिर विवाद मामले में भी ऐसा ही किया गया था। वहां भी एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर भौतिक जांच कराई गई थी। लिहाजा, एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया जाए। जबकि, कमेटी ऑफ मैनेजमेंट मथुरा ईदगाह की ओर से सुप्रीम कोर्ट से आए अधिवक्ता महमूद प्राचा की ओर से तर्क दिया गया कि मंदिर पक्ष की ओर से 46 सालों तक कुछ नहीं किया गया। कमेटी ऑफ मैनेजमेंट मथुरा ईदगाह ने केसों के स्थानांतरण के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। नौ जनवरी 2024 को उस पर सुनवाई होनी है।

 

 

 

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता की ओर से कहा गया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के अध्याय सात के नियम 11 के तहत यह सुनवाई नहीं की जा सकती है। पूजा स्थल अधिनियम के तहत भी यह प्रतिबंधित है। वक्फ अधिनियम भी इस पर लागू होता है। लिहाजा, मौजूदा स्थिति में एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त नहीं किया जा सकता है। पहले निचली अदालत में दाखिल वादों की पोषणीयता तय हो जाए। उसके बाद ही आगे कुछ आदेश पारित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में सारे केसों को जिला जज के यहां सुनवाई का आदेश दिया था। हालांकि, मंदिर पक्ष की ओर से मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर आपत्ति जताई गई। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह, सहित कई अन्य पक्षकारों ने अपनी दलील दी। तीन घंटे तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।

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