जालौन (हि.स.)। जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलो मीटर दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में शारदा देवी का मंदिर है। यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं। मां शारदा देवी की अष्टभुजी प्रतिमा लाल पत्थर से निर्मित है। मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मंदिर की स्थापना चंदेलकालीन राजा द्वारा 11वीं सदी में कराई गई थी। किंवदंतियों के अनुसार यह मंदिर आदिकाल में निर्मित कराया गया था और मां शारदा की मूर्ति मंदिर के पीछे बने एक कुंड से निकली थी।
प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है। मां शारदा शक्ति पीठ का दर्शन करने वाले भक्तों के अनुसार मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है। सुबह के समय देवी प्रतिमा कन्या के रूप में नजर आती हैं तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में दिखाई देती हैं। इनके दर्शनों के लिए पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु आते हैं।
मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है। पृथ्वीराज ने बुंदुलखंड को जीतने के उद्देश्य से 11वीं सदी के बुंदेलखंड के चंदेल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी। उस समय चंदेलों की राजधानी महोबा थी। आल्हा-उदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे। बैरागढ़ के युद्ध में आल्हा-उदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था।
आल्हा और उदल मां शारदा के उपासक थे। जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पाएगा। उदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुए अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी। उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी। पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोक को सीधा कर पाए। सांग आज भी मंदिर के मठ के ऊपर गड़ी है। यह सांग 30 फिट से भी ऊंची है और यह जमीन में इतनी ही अधिक गढ़ी है। मंदिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता दर्शाता है। देश में यह मंदिर दो ही स्थान पर हैं, जिसमें एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में है। मंदिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं।
मंदिर के पुजारी श्याम जी महाराज का कहना है कि मां शारदा के दर्शन करने के लिए प्राचीन समय में आल्हा उदल आते थे। उन्होंने बताया कि लोग अपनी मनोकामनाओं के लिए चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर दर्शन करने आते हैं। यहां पर विशाल मेला लगता है जो पूरे एक माह चलता है। मंदिर के पीछे एक कुंड है, जिसमें नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं।