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लोस-2024 : गौरक्षा आंदोलन के बाद जब एक संत को पहली बार राजनीति में मिली थी इन्ट्री,

दो बार सांसद बनने के बाद राजनीति छोड़ कुटिया में बिताया था सारा जीवन

हमीरपुर  (हि.स.)। हमीरपुर जिले के एक छोटे से गांव के संत ने गौरक्षा आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरे थे। आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। यहीं से इस संत को पहली बार राजनीति में इन्ट्री मिली थी। पहले भारतीय जनसंघ पार्टी से लोकसभा चुनाव में आकर कांग्रेस के दिग्गज को शिकस्त देकर स्वामी ब्रह्मानंद महाराज सांसद बने थे। यहीं नहीं ये लोकसभा चुनाव में दोबारा सांसद भी बने थे। तीसरी बार चुनाव में पराजय होने पर इस संत ने राजनीति छोड़कर अपनी कुटिया में आ गए थे।

 

बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के राठ कोतवाली क्षेत्र के बरहरा गांव में 4 दिसम्बर 1884 को स्वामी ब्रह्मानंद का जन्म हुआ था। पिता मातादीन लोधी और मां यशोदाबाई ने इनका नाम शिवदयाल रखा था। ये परिवार खेतीबाड़ी करता था। गांव के ही विद्यालय में शिवदयाल की प्रारम्भिक शिक्षा हुई।

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह ने बताया कि बचपन में एक स्कूल से पढ़ाई करने के बाद ये उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए बाहर जाना चाहते थे लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण वह बाहर नहीं जा सके। बताया कि बचपन में इन्होंने रामचरित मानस, महाभारत और गीता के अलावा अन्य धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान ले लिया था।

 

इसीलिए तेरह साल की उम्र में ही परिवार के लोगों के दबाव में इनकी शादी हो गई थी। जरिया क्षेत्र के अमूंद गांव में राधाबाई के साथ शादी करने के कई साल बाद ये एक बच्चे के पिता भी बन गए थे। बच्चे का नाम बृजलाल रखा गया। 4 जून 1918 को ये घर छोड़ तीर्थ पर निकल गए थे। हरिद्धार जाकर गंगा स्नान किया और संत का चोला पहनकर ये साधू हो गए थे। इन्होंने अपना नाम भी स्वामी ब्रह्मानंद रखा। इसके बाद ये अपने गांव लौटे, लेकिन परिवार से मिलने वह घर नहीं गए। गांव में ही एक मंदिर को अपना ठिकाना बनाया। सिर्फ 23 साल की उम्र में स्वामी संत बनकर महात्मा गांधी के आंदोलन में शामिल हो गए थे। इन्होंने जीवन भर पैसे को हाथ से नहीं छुआ था।

 

तत्कालीन गृहमंत्री की कोठी के सामने तीन माह तक संत ने दिया था धरना

महात्मा गांधी के सविनय आंदोलन के आवाह्न पर वर्ष 1832 में स्वामी ब्रह्मानंद ने यहां क्षेत्र में सड़क पर आकर मोर्चा लिया था, जिस पर उन्हें गिरफ्तार कर बरेली जेल भेजा गया था। सजा के बाद 21 नवम्बर 1933 को ये जेल से रिहा हो गए लेकिन 1942 में स्वामी जी ने गौरक्षा आंदोलन में प्रयागराज से दिल्ली तक तमाम संतों के साथ पैदल ही यात्रा की और तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा के आवास के सामने 14 मई 1966 से 15 अगस्त 1966 तक लगातार तीन माह तक धरना दिया। तमाम संतों के साथ स्वामी ब्रह्मानंद गिरफ्तार किए गए। जेल से रिहा हो गए थे। इस संत ने राठ क्षेत्र के जराखर गांव में कांग्रेस का सम्मेलन भी कराया था, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, गोविन्द बल्लभ पंत समेत अनेक नेता शामिल हुए थे।

 

पहली बार लोकसभा चुनाव में 54.1 फीसदी वोट पाकर सांसद बने थे संत

कई मुद्दों को लेकर आंदोलन करने वाले संत की पहचान शीर्ष नेताओं में होने के बाद भारतीय जनसंघ पार्टी के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेयी ने स्वामी ब्रह्मनंद को राजनीति में इन्ट्री कराई और उन्हें हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया।

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह ने बताया कि वर्ष 1967 में स्वामी जी ने 54.1 फीसदी वोट पाकर पहली बार सांसद बने थे। बाद में स्वामी जी ने कांग्रेस पार्टी में इन्ट्री ली और 1971 के लोकसभा चुनाव में ये दोबारा सांसद बन गए थे। इन्हें 52 फीसदी वोट मिले थे। चुनाव हारने के बाद स्वामी जी ने 1977 कांग्रेस के टिकट से तीसरी बार चुनाव मैदान में आए, लेकिन इन्हें उम्मीदवार तेज प्रताप सिंह से पराजय का सामना करना पड़ा।

 

सार्वजनिक सभा में बुंदेलखंड मालवीय की उपाधि से संत हुए थे विभूषित

स्वामी ब्रह्मानंद महाराज के त्याग और संघर्ष को देखते उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम सीबी गुप्ता यहां एक सार्वजनिक सभा में आए थे। उन्होंने स्वामी जी को बुंदेलखंड मालवीय की उपाधि से विभूषित किया था। यहां के साहित्यकार डा. बीडी प्रजापति ने बताया कि स्वामी जी ने 1923 में महात्मा गांधी के आवाह्न पर यहां विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। स्वामी जी के न्यौता देने पर ही महात्मा गांधी 1928 में महोबा, हमीरपुर व राठ आए थे। गांधी जी ने यहां जनसभा में कहा था कि यदि स्वामी ब्रह्मानंद जैसे सौ संत उन्हें मिल जाए तो देश जल्द ही गुलामी की जंजीरों से आजाद हो सकता है। बताया कि स्वामी ब्रह्मानंद महाराज जी पूरे देश भर में पदयात्रा की थी। उन्हें नमक कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की जेल भी हुई थी।

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