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लोस चुनाव : बदायूं में साइकिल दौड़ेगी या बरकरार रहेगा भाजपा का जलवा?, जानें इस सीट का पूरा इतिहास

लखनऊ  (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड क्षेत्र का जनपद बदायूं अपनी ऐतिहासिकता के साथ-साथ सूफी-संतों, औलियाओं, वलियों और पीरों की भूमि की वजह से जाना जाता है। आज से हजार साल पहले ही यह क्षेत्र ‘वेदामूथ’ हुआ करता था फिर यह क्षेत्र ‘भदाऊंलक’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। धीरे-धीरे ‘भदाऊंलक’ बदायूं हो गया। इस सीट को समाजवादी पार्टी (सपा) के गढ़ के रूप में माना जाता है। उप्र में 23वें नंबर के बदायूं संसदीय क्षेत्र में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।

बदायूं लोकसभा सीट का इतिहास

बदायूं संसदीय सीट के इतिहास को देखें तो यहां पर 1952 में पहली बार चुनाव कराया गया जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी। 1957 में भी कांग्रेस के खाते में यह सीट गई थी। लेकिन 1962 और 1967 में भारतीय जनसंघ को यहां पर जीत मिली थी। 1971 में कांग्रेस और 1977 में भारतीय लोकदल यहां से जीता। 1980 और 1984 में कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज कराई। साल 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल के नेता शरद यादव यहां से सांसद चुने गए थे। फिर 1991 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यहां से अपना खाता खोला। हालांकि भाजपा के लिए इस बदायूं सीट पर 2019 तक यह पहली और आखिरी जीत साबित हुई। 1996 से लेकर 2014 तक के हुए चुनाव में बदायूं सीट पर सपा का कब्जा बरकरार रहा है। सलीम इकबाल शेरवानी यहां से लगातार 4 बार सांसद रहे। साल 2009 में सैफई परिवार के धर्मेंद्र यादव की एंट्री इस सीट पर हुई और वो लगातार दो बार सपा के सांसद रहे। इस लोकसभा सीट से सबसे ज्यादा 6 बार सपा जीती है तो पांच बार कांग्रेस जीती है और दो बार भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की है। लेकिन, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का अभी तक इस सीट पर खाता नहीं खुला है।

पिछले दो चुनावों का हाल

2019 में उप्र के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी और भाजपा की प्रत्याशी संघमित्रा मौर्य ने सपा प्रत्याशी और सांसद धर्मेंद्र यादव को बेहद कड़े मुकाबले में हराया था। संघमित्रा मौर्य को चुनाव में 511,352 (47.28%) वोट मिले जबकि कड़ी चुनौती पेश करने वाले धर्मेंद्र यादव के खाते में 492,898 (45.58%) वोट आए। संघमित्रा 18,454 मतों से अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी। कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी तीसरे नंबर पर रहे।

बात 2014 के चुनाव की कि जाए तो सपा उम्मीदवार धर्मेन्द्र यादव मैदान में उतरे। उन्होंने भाजपा के वागीश पाठक को डेढ लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। बसपा प्रत्याशी अकमल खां उर्फ चमन तीसरे स्थान पर रहे थे।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर दुर्विजय सिंह शाक्य को मैदान में उतारा है। जबकि सपा ने अपने कद्दावर नेता शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव पर दांव लगाया है। सपा ने इस सीट पर तीन बार प्रत्याशी बदला है। बसपा ने मुस्लिम खां को चुनावी टिकट दिया है।

बदायूं सीट का जातीय समीकरण

19 लाख वोटरों वाले बदायूं में सबसे ज्यादा ज्यादा वोटर यादव बिरादरी के हैं। इनकी संख्या करीब चार लाख बताई जाती है। तीन लाख 75 हजार मुस्लिम वोटर भी यहां चुनाव में राजनीतिक दलों का खेल बनाने ओर बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा दो लाख 28 हजार गैर यादव ओबीसी वोटर, एक लाख 75 हजार अनुसूचित जाति, एक लाख 25 हजार वैश्य और ब्राह्मण वोटर हैं।

विधानसभा सीटों का हाल

बदायूं लोकसभा सीट में कुल 5 विधानसभा हैं, जिनमें 4 सीटें बदायूं जिले की हैं। जबकि एक सीट संभल जिले की गुन्नौर आती है। बदायूं जिले की बिसौली सुरक्षित, सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल है। बिल्सी और बदायूं पर भाजपा और बाकी सीटों पर सपा का कब्जा है।

दलों की जीत का गणित और चुनौतियां

भाजपा के सामने जहां सीट बचाए रखने की चुनौती है तो सपा को अपने गढ़ में जीतने की। तीन दलों के प्रत्याशी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा का चुनावी प्रबंधन में मजबूत है। मौर्य-शाक्य मतों के साथ सवर्णों का झुकाव पार्टी की मजबूती है, पर यादव मुस्लिम मतों की चुनौती भी है। सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट कटने से पैदा हालात को भाजपा ने मैनेज किया है। सपा यादव और मुस्लिम मतों के गठजोड़ के साथ सपा खड़ी है। लेकिन गैर यादव जातियों के साथ सवर्ण मतदाता को जोड़ना चुनौती भी है। यहां अधिकतम दो लाख मत हासिल कर चुकी बसपा के लिए अनुसूचित और मुस्लिम का गठबंधन एक बार फिर मजबूती का आधार है पर सर्वण मतदाता और यादव मतदाता बसपा के लिए चुनौती हैं। उम्मीदवार मुस्लिम खां अपने संपर्क के आधार पर मुस्लिम मतों का कितना बंटवारा कर पाते हैं और बसपा अपने परंपरागत मतदाता को कितना सहेज पाती है। इस पर सबकी निगाहें हैं।

बदायूं से कौन कब बना सांसद

1952 बदन सिंह (कांग्रेस)

1957 रघुबर सिंह (कांग्रेस)

1962 ओंकार सिंह (जनसंघ)

1967 ओंकार सिंह (भारतीय जनसंघ)

1971 करण सिंह यादव (कांग्रेस)

1977 ओंकार सिंह (भारतीय लोकदल)

1980 मो0 असरार अहमद (कांग्रेस आई)

1984 सलीम इकबाल शेरवानी (कांग्रेस)

1989 शरद यादव (जनता दल)

1991 स्वामी चिन्मयानंद (भाजपा)

1996 सलीम इकबाल शेरवानी (सपा)

1998 सलीम इकबाल शेरवानी (सपा)

1999 सलीम इकबाल शेरवानी (सपा)

2004 सलीम इकबाल शेरवानी (सपा)

2009 धर्मेन्द्र यादव (सपा)

2014 धर्मेन्द्र यादव (सपा)

2019 डॉ. संघमित्रा मौर्य (भाजपा)

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