लखनऊ (हि.स.)। गंगा के किनारे बसे अमरोहा की पहचान मशहूर शायर जॉन एलिया और बॉलीवुड के निर्देशक-लेखक कमाल अमरोही से रही है। अमरोहा में बने ढोलक की थाप पर दुनिया थिरकती है। वहीं अमरोहा के आम भी स्वाद को खास बनाते हैं। ऐसे ही यहां की राजनीति भी दिलचस्प है। अमरोहा में कभी किसी भी दल का गढ़ नहीं रहा है। इस सीट से हर पार्टी झंडा गाड़ चुकी है।
अमरोहा सीट का संसदीय इतिहास
वर्ष 1957 में मुरादाबाद पश्चिम सीट को अमरोहा लोकसभा का नाम मिला था। 1957 से अब तक 16 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। हर बार वोटरों ने चौंकाने वाले नतीजे ही दिए हैं। इस सीट पर सबसे अधिक तीन बार भाजपा और कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। जबकि सीपीआई को दो बार जीत दर्ज मिली। इसके अलावा एक बार निर्दलीय के रूप में हरीश नागपाल भी विजयी रहे हैं। वर्ष 1991 के चुनाव से पहले तक यहां भाजपा का खाता नहीं खुल पाया था। 1991 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने क्रिकेटर चेतन चौहान को चुनाव मैदान में उतारा था। चेतन चौहान ने पहली बार यहां कमल खिलाया था। पिछले 40 साल से यहां कांग्रेस और 28 साल से सपा को जीत नसीब नहीं हुई है। बसपा यहां से दो बार, सपा और रालोद भी एक-एक बार जीत दर्ज करा चुके हैं।
2019 लोकसभा चुनाव का नतीजा
2019 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी कुंवर दानिश अली ने 601082 (51.39 फीसदी) वोट लेकर जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रहे भाजपा प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर को 537834 (45.98 फीसदी) वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी सचिन चौधरी 12454 (1.07 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। 2014 में भाजपा के कंवर सिंह तंवर ने चुनाव जीता था। उन्होंने सपा के हुमैरा अख्तर को एक लाख वोटों से हराया था। तीसरे नंबर पर यहां बसपा थी।
चुनावी रण के योद्धा
2024 के चुनाव के लिए भाजपा ने पिछली बार हारे कंवर सिंह तंवर को फिर से टिकट देते हुए भरोसा जताया है। रालोद भी इस बार भाजपा के साथ है। दानिश अली बसपा से निलंबित कर दिए गए हैं और मायावती ने टिकट डॉ. मुजाहिद हुसैन उर्फ बाबू भाई को दिया है। सपा-कांग्रेस का गठबंधन है और यह सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने कुंवर दानिश अली को मैदान में उतारा है।
अमरोहा का जातीय समीकरण
अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में करीब 16 लाख वोटर हैं, इनमें से 8,29,446 वोटर पुरुष और 7,14,796 महिला मतदाता हैं। अमरोहा जनपद में करीब 60 फीसदी हिंदू आबादी है, जबकि 38 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है। इस लोस क्षेत्र में दलित वोटरों का भी प्रभावी असर है। जाट, गुर्जर, सैनी, खडगवंशी जैसी पिछड़ी जातियों का भी प्रभाव है। इसलिए, कोर वोटरों की एका और विभाजन भी नतीजे तय करते हैं। जब भी वोट सपा-बसपा में बंटे, भाजपा को उसका फायदा हुआ।
पीलीभीत लोकसभा की विधानसभा सीटों का हाल-चाल
अमरोहा लोकसभा की बात करें तो इसमें पांच विधानसभा हैं, इनमें धनौरा, नौगावां सादात, अमरोहा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट शामिल है। पांच सीटों में से तीन धनौरा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर भाजपा का कब्जा है। नौगावां सादात और अमरोहा सीट सपा के खाते में है।
दलों की जीत का गणित
पिछले चुनाव की विजेता बसपा अपनी मजबूती मुस्लिम, दलित और दूसरे पिछड़े वर्ग के बल पर कामयाबी देख रही है। कांग्रेस से मुस्लिम प्रत्याशी होने के चलते मुस्लिम वोटों में बिखराव की आशंका के नाम पर मुस्लिमों का बड़ा मतदान बसपा को अपने हक में कराने की चुनौती है। वहीं भाजपा द्वारा दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशों को रोकने के लिए भी उसे मशक्कत करनी होगी।
कांग्रेस और सपा यहां पिछले तीन दशकों से खाता नहीं खोल पाए हैं। 2019 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को सिर्फ 12454 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी दानिश पर दलबदलू और बाहरी प्रत्याशी होना कमजोर कड़ी है। भाजपा की मजबूती मोदी का नाम और काम, सवर्ण, पिछड़े और गुर्जर समाज समेत हर वर्ग का साथ है। दलित मुस्लिम ध्रुवीकरण उनकी कमजोरी साबित हो सकता है।
अमरोहा के जगदीश सरन हिन्दू पीजी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. ए.के. रस्तोगी के अनुसार, कांग्रेस और बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने से मुस्लिम वोटों में विभाजन होना तय है। मुस्लिम वोटों में विभाजन का फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा इस बार अमरोहा सीट बड़े मार्जिन से जीतेगी।
अमरोहा से कौन कब बना सांसद
1957 हिफजुल रहमान (कांग्रेस)
1962 हिफजुल रहमान (कांग्रेस)
1967 इशहाक संभली (सीपीआई)
1971 इशहाक संभली (सीपीआई)
1977 चन्द्र पाल सिहं (भारतीय लोकदल)
1980 चन्द्र पाल सिहं (जनता पार्टी सेक्युलर)
1984 राम पाल सिहं (कांग्रेस)
1989 हरगोविंद (जनता दल)
1991 चेतन चौहान (भाजपा)
1996 प्रताप सिंह (समाजवादी पार्टी)
1998 चेतन चौहान (भाजपा)
1999 राशिद अल्वी (बसपा)
2004 हरीश नागपाल (निर्दलीय)
2009 देवेन्द्र नागपाल (रालोद)
2014 कंवर सिंह तंवर (भाजपा)
2019 कुंवर दानिश अली (बसपा)