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लोस चुनाव : खेल नगरी मेरठ के सियासी रण में कौन बनेगा खिलाड़ी नंबर वन, जानें यहाँ कौन कब बना सांसद

लखनऊ  (हि.स.)। मेरठ क्रांति की जमीन है। 1857 की क्रांति का बिगुल इसी मेरठ में बजा था और फिर तेजी से देश में कोने-कोने तक पहुंचा था। गंगा और यमुना के बीच बसे मेरठ शहर की विरासत बहुत पुरानी है। मेरठ शहर की खेल नगरी के नाम से पहचान हैं। यहां के बने खेल के समान दुनिया भर में पसंद किये जाते हैं।

मेरठ सीट का संसदीय इतिहास

आजादी के बाद के पहले तीन चुनाव कांग्रेस के पक्ष में गए और संसद पहुंचने वाला चेहरा थे शाहनवाज खान। शाहनवाज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना में जनरल थे। 1967 से लेकर 1989 तक यहां किसी एक दल का कब्जा नहीं रहा। 1991 में हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया था। लगभग तीन साल की कानूनी कसरत के बाद चुनाव आयोग ने वहां प्रभावित बूथों पर पुनर्मतदान और शेष बूथों पर 1991 में पड़े वोटों की गिनती करवाकर 1994 में रिजल्ट घोषित किया गया। इस चुनाव में भाजपा के अमरपाल सिंह ने जनता दल के उम्मीदवार को 85 हजार वोटों के अंतर से हराकर पहली बार यहां भाजपा का खाता खोला। कांग्रेस यहां से 7 बार, भाजपा 6 बार और बसपा 1 बार जीत हासिल कर चुकी है। सपा का यहां खाता नहीं खुला। 2024 के चुनाव में भाजपा लगातार चौथी जीत के लिए मैदान में है तो विपक्ष उसके विजय रथ को रोकने की कोशिशों में जुटा है।

2019 लोकसभा चुनाव का नतीजा

2019 के चुनाव में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने 586184 (48.17 फीसदी) वोट लेकर जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी कुरैशी को 581455 (47.78 फीसदी) वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र अग्रवाल 34479 (2.83 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। 2014 में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने चुनाव जीता था। उन्होंने बसपा के मो0 शाहिद अखलाक को सवा दो लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। तीसरे नंबर पर सपा और कांग्रेस यहां चौथे नंबर पर थी।

चुनावी रण के योद्धा

भाजपा ने इस बार तीन बार के विजेता राजेंद्र अग्रवाल के स्थान पर रामायण सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध अभिनेता अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। सपा ने सरधना से विधायक अतुल प्रधान को कैंडिडेट घोषित किया है। सपा ने पहले भानुप्रताप को उम्मीदवार बनाया था। बसपा ने देवव्रत त्यागी प्रत्याशी बनाया है। मेरठ में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है।

मेरठ का जातीय समीकरण

यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 94 हजार 144 है। मेरठ लोकसभा के साथ हापुड़ का कुछ क्षेत्र भी जुड़ता है। मेरठ क्षेत्र को दलित और मुस्लिम बाहुल्य वोटर्स का वर्चस्व माना जाता है। 2019 के चुनाव में यहां पर मुस्लिम आबादी करीब 5 लाख 64 हजार थी। जाटव बिरादरी का भी यहां पर खास भूमिका और इनकी आबादी 3 लाख 14 हजार 788 है। बाल्मीकि समाज 59,000 के करीब आबादी रहती है। यहां ब्राह्मण, वैश्य, पंजाबी और त्यागी समाज के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है। जाटों की भी करीब 1.30 लाख आबादी रहती है। गुर्जर और सैनी समाज के वोटर्स का भी खासा प्रभाव दिखता रहा है।

मेरठ संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों का हाल

मेरठ संसदीय सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। पांच में से तीन सीटों मेरठ कैन्ट, मेरठ दक्षिण और हापुड़ भाजपा के कब्जे में है। किठौर और मेरठ पर सपा काबिज है। हापुड़ सीट एससी के लिए आरक्षित है। यानी इस लोस क्षेत्र में दलित वोटरों का भी प्रभावी असर है।

दलों की जीत का गणित

परंपरागत तौर पर भाजपा यहां मजबूत मानी जाती है। पिछले आठ में छह चुनाव भाजपा ने जीते हैं। अरुण गोविल को जाटलैंड से मैदान में उतारकर हिंदुत्व का संदेश दिया है। भाजपा वैश्य, ब्राह्मण, त्यागी ठाकुर, गुर्जर, अतिपिछड़ों आदि के सहारे चुनावी मैदान में हैं, तो वहीं बसपा प्रत्याशी मुस्लिम, त्यागी तथा अनुसूचित जाति के सहारे मैदान मारने की फिराक में हैं। उधर, सपा के अतुल प्रधान की भी जाट, गुर्जर, अति पिछड़ों, मुस्लिमों आदि पर नजर है।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ समाज शास्त्र विभाग के अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. अरविंद सिरोही के अनुसार, बीजेपी ने अरुण गोविल को चुनावी मैदान में उतारा है। बाहरी चेहरा होने की वजह से गोविल की राह इतनी आसान नहीं है। सपा प्रत्याशी को लेकर भी पार्टी के स्थानीय नेताओं में नाराजगी है। हालांकि सपा प्रत्याशी स्थानीय हैं, उनका जनसंपर्क बढ़िया हैं, ऐसे में वो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है। बाजी कौन जीत सकता है सवाल के जवाब में डॉ. सिरोही कहते हैं, मोदी जी का प्रभाव पूरे देश में है, मेरठ में भी उनका असर दिख सकता है।

मेरठ से कौन कब बना सांसद

1952 शाहनवाज खान (कांग्रेस)

1957 शाहनवाज खान (कांग्रेस)

1962 शाहनवाज खान (कांग्रेस)

1967 महाराज सिंह भारती (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)

1971 शाहनवाज खान (कांग्रेस)

1977 कैलाश प्रकाश (भारतीय लोकदल)

1980 मोहसिना किदवई (कांग्रेस)

1984 मोहसिना किदवई (कांग्रेस)

1989 हरीश पाल (जनता दल)

1991 हिंसा के कारण चुनाव रद्द

1994 अमर पाल सिंह (भाजपा)

1996 अमर पाल सिंह (भाजपा)

1998 अमर पाल सिंह (भाजपा)

1999 अवतार सिंह भड़ाना (कांग्रेस)

2004 मो0 शाहिद अखलाक (बसपा)

2009 राजेन्द्र अग्रवाल (भाजपा)

2014 राजेन्द्र अग्रवाल (भाजपा)

2019 राजेन्द्र अग्रवाल (भाजपा)

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