लखनऊ (हि.स.)। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर मतदान होगा। दूसरे चरण की जिन चार सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, उनमें से दो सीटों पर उसे आखिरी बार 40 साल पहले जीत मिली थी। वहीं शेष दो में से एक सीट पर उसका अब तक खाता नहीं खुला, और एक पर उसे 20 साल पहले जीत नसीब हुई थी। उल्लेखनीय है कि, सपा-कांग्रेस का इस चुनाव में गठबंधन है। कांग्रेस कुल 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
दूसरे चरण में कांग्रेस के हिस्से की सीटें
प्रदेश में दूसरे चरण में अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलन्दशहर (सु0), अलीगढ़, मथुरा लोकसभा क्षेत्र में मतदान होगा। इनमें से अमरोहा, गाजियाबाद, बुलन्दशहर (सु0) और मथुरा कांग्रेस के खाते में हैं। शेष सीटों पर सपा के प्रत्याशी मैदान में हैं। इस चरण के सभी आठ सीटों पर कांग्रेस का पिछला प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है।
अमरोहा 40 साल पहले जीती कांग्रेस
पश्चिम उत्तर प्रदेश की अहम अमरोहा सीट पर कांग्रेस की आखिरी जीत 40 साल पहले 1984 के आम चुनाव में हुई थी। उसके बाद कांग्रेस का यहां खाता नहीं खुला। 1957 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 1962 के चुनाव में कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। 1967 और 1971 में सीपीआई ने यहां से जीती। 1977 में भारतीय लोकदल और 1980 में यहां से जनता पार्टी सेक्यूलर को सफलता हासिल हुई। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और 2019 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) यहां जीती। समाजवादी पार्टी (सपा) का इस सीट पर अब तक खाता नहीं खुला है।
बुलंदशहर में आखिरी जीत 1984 के चुनाव में मिली
बुलंदशहर सीट 1952 में अस्तित्व में आई। 1952 से लेकर 1971 के कुल पांच चुनाव में यहां कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज की। 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल ने कांग्रेस की जीत का सिलसिला तोड़ा। 1980 में जनता पार्टी सेक्यूलर ने यहां जीत हासिल की। 1984 में कांग्रेस ने यहां जीत का झंडा गाड़ा। ये कांग्रेस की इस सीट पर आखिरी जीत थी। पिछले 40 सालों से इस सीट पर कांग्रेस जीत का सूखा झेल रही है। 1991 से लेकर 2004 तक लगातार पांच चुनाव यहां भाजपा ने जीते। 2009 में यहां सपा की साइकिल दौड़ी। 2014 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर अब तक हुए 17 में से 7 चुनाव भाजपा ने जीते। बसपा का तो यहां अब तक खाता ही नहीं खुला।
गाजियाबाद में अब तक खाता नहीं खुला
उत्तर प्रदेश के वीआईपी सीटों में शुमार गाजियाबाद सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर कांग्रेस का खाता अब तक नहीं खुला। इस सीट पर हुए पहले चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने कमल खिलाया था। 2014 में भाजपा प्रत्याशी वीके सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को हराया था। जीत का अंतर 5 लाख 67 हजार 260 वोट के बड़े अंतर से पटखनी दी थी। इस चुनाव में बसपा और सपा क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। 2019 के आम चुनाव में भाजपा उम्मीदवार वीके सिंह ने जीत का सिलसिला जारी रखा। वीके सिंह ने सपा प्रत्याशी सुरेश बंसल को 5 लाख 1 हजार 500 मतों के अंतर से हराया था। कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा 111,944 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही।
मथुरा में जीत का दो दशकों से इंतजार
श्रीकृष्ण नगरी मथुरा की संसदीय सीट पर 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के कृष्ण चन्द्रा जीते थे। 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। 1962 में उसने जीत के साथ वापसी की। लेकिन 1967 के चुनाव में उसे हार मिली। 1971 में कांग्रेस के चक्रेश्वर सिंह यहां से जीते। 1977 और 1980 के चुनाव में कांग्रेस से जीत दूर ही रही। 1984 के आम चुनाव में मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस की जीता का सूखा खत्म किया। लेकिन इसके बाद उसे जीत के लिए दो दशकों को लंबा इंतजार करना पड़ा। 2004 में कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह आखिरी बार यहां से जीते। 2014 और 2019 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी ने जीत हासिल की। 2014 में कांग्रेस-रालोद का गठबंधन था। इस सीट से रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को भाजपा उम्मीदवार हेमामालिनी ने करीब ढाई लाख वोटों के अंतर से हराया था। 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी ने रालोद प्रत्याशी को तकरीबन तीन लाख वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी। कांग्रेस प्रत्याशी मात्र 28 हजार वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहा। इस सीट पर कुल 17 संसदीय चुनाव हुए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 6 बार भाजपा ने जीत दर्ज की है।