नई दिल्ली (ईएमएस)। देश की आजादी के बाद साल 1951-52 में भारत में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। तब से लेकर 2019 में हुए आखिरी लोकसभा चुनाव तक 71 हजार से ज्यादा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में 86 प्रतिशत उम्मीदवार ऐसे थे, जिनकी जमानत जब्त हो गई थी। तो आखिर क्या होती है जमानत, कैसे और क्यों जब्त हो जाती है? अब तक कुल कितने उम्मीदवार, लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत गंवा बैठे हैं? इलेक्शन कमीशन के डाटा पर नजर डालें तो पता लगता है कि 1951-52 से लेकर 2019 तक के लोकसभा चुनाव में कुल 91,160 कैंडिडेट ने अपनी किस्मत आजमाई, जिसमें से 71,246 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। यानी 78 फीसदी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए।
क्या होता है जमानत जब्त का मतलब
लोकसभा चुनाव के लिए सामान्य कैटेगरी के उम्मीदवारों को 25000 रुपये जमानत राशि जमा करनी होती है। जबकि एससी-एसटी कैंडिडेट को 12500 हजार रुपए देने होते हैं। इलेक्शन कमीशन के मुताबिक जमानत राशि जमा करवाने के पीछे मंशा यह है कि चुनाव में गंभीर प्रत्याशी ही उतरें। चुनाव आयोग के मुताबिक यदि किसी उम्मीदवार को चुनाव में कुल वैध वोट का 1/6 हिस्सा यानी 16.67 फीसदी वोट नहीं मिलता है तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है। इस स्थिति में उस उम्मीदवार ने चुनाव आयोग के पास जो जमानत राशि जमा की है, उसे आयोग जब्त कर लेता। यदि किसी कैंडिडेट को 16.67 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलता है तो आयोग उसकी जमानत राशि लौटा देता है। इसके अलावा कोई उम्मीदवार अपना नामांकन वापस लेता है या उसका नामांकन किसी कारण से रद्द होता है तो इस स्थिति में भी जमानत राशि वापस कर दी जाती है। इसके अलावा जीतने वाल कैंडिडेट की जमानत राशि भी वापस कर दी जाती है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता लगता है कि राष्ट्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपनी जमानत बचाने में अच्छा प्रदर्शन किया है। उदाहरण के तौर पर 1951-52 के पहले लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय दलों के 1,217 उम्मीदवारों में से सिर्फ 28 प्रतिशत या 344 की जमानत जब्त हुई। 1957 के चुनावों में इसमें सुधार हुआ। 919 उम्मीदवारों में से केवल 130 या 14 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। 1977 के चुनावों में जमानत बचाने के मामले में राष्ट्रीय पार्टियों का सबसे अच्छा प्रदर्शन देखने को मिला। इस बार नेशनल पार्टियों के 1,060 उम्मीदवारों में से केवल 100 (9प्रतिशत) की जमानत जब्त हुई। पर 2009 का चुनाव राष्ट्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों के लिए बहुत खराब साबित हुआ और लगभग हर दूसरे उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई। 2009 में, राष्ट्रीय पार्टियों ने कुल 1,623 उम्मीदवार उतारे, जिसमें से 779 की जमानत जब्त हो गई थी। इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी उम्मीदवारों को जमानत राशि जमा करनी होती है। विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के प्रत्याशी को जमानत राशि के तौर पर 10 हजार रुपये और एससी-एसटी कैटेगरी के कैंडिडेट को 5हजार रुपए की राशि जमा करनी होती है।
जमानत जब्ती का आंकड़ा बढ़ता रहा
वर्ष 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में 1874 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिसमें से 745 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। यानी करीब 40 प्रतिशत। इसके बाद से जमानत जब्त होने वाले उम्मीदवारों का आंकड़ा बढ़ता गया। 1996 में तो 91 फीसदी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। इससे पहले 1991-92 के चुनाव में भी 86 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमाने जब्त हुई थी।2019 के लोकसभा चुनाव में महज 14 फीसदी उम्मीदवार अपनी जमानत बचा पाए। 86 फीसदी की जमानत जब्त हुई। जमानत गंवाने वाले उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा बहुजन समाज पार्टी के थे। 383 उम्मीदवारों में से 345 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी जिसके 421 उम्मीदवारों में से 148 की जमानत जब्त हुई। इसी तरह सीपीआई के 41 उम्मीदवारों के जमानत जब्त हुई थी। लोकसभा चुनाव में हर उम्मीदवार को जमानत के तौर पर चुनाव आयोग के पास एक निश्चित राशि जमा करनी होती है। इस राशि को ‘जमानत राशि’ अथवा सिक्योरिटी डिपॉजिट कहते हैं। चुनाव आचरण नियम, 1961 में इसकी व्यवस्था की गई है।