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मिशन-2024 : मायावती के इस पैतरे से एनडीए को बड़ी राहत, कांग्रेस ने भी बनाया ये प्लान

इंडिया: यूपी में कठिन होगी पनघट की डगर
-तीस से ज्यादा सीटों लडऩे की तैयारी में कांग्रेस
-कोई किसी का पिछलग्गू बनने को तैयार नहीं

लखनऊ। मिशन-2024 को फतेह करने के लिए महासमर का मंच सजकर तैयार हो गया है। हाल ही में बंगलुरू और दिल्ली में हुई दो बैठकों में पक्ष-विपक्ष के दोनों धड़ों ने बैठके कर एकजुटता के प्रदर्शन के साथ बड़े बदलाव की बात कही है। एनडीए ने जहां ३८ क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर तीसरी बार सत्तारूढ़ होने का संकल्प दोहराया तो २६ दलों को मिलकर तैयार हुए इंडिया ने भी इस बार बिना किसी चेहरे के देश बचाने का नारा देकर आपसी मतभेद भुलाकर पूरी तैयारी के साथ मैदान मारने की बात कही है। हालांकि किसी भी चुनाव से पूर्व इस तरह की एकजुटता का प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। यूपी के विधानसभा चुनावों में इस तरह के कई प्रयोग देखने को मिले लेकिन चुनाव आने तक या फिर उसके बाद तीनतेरह होते दिखे। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह पक्ष-विपक्ष अपनी ताकत दिखा रहे है उसके बाद अभी से यह कहना मुश्किल होगा कि गेंद किसके पाले में रहेगी। इसी तरह की एकजुटता का प्रयास २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में भी देखने को मिला था। संयोग तब भी विपक्षी दलों ने एनडीए के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए ठिकाना बेंगलुरु को ही चुना था। उस बैठक में भी 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया इसके लिए सभी छुुटभैय्ये और क्षेत्रीय दलों ने मोदी को हटाने के नाम पर सारे गिले शिकवे भुलाकर साथ रहने का संकल्प लिया था।

 

लेकिन 2019 के जो चुनाव नतीजे आए उसने विपक्षी एकजुटता की हवा निकाल दी। एनडीए का नेतृत्व कर रही भाजपा इस साल हुए चुनाव में 2014 से बेहतर परिणाम सामने लाई। २०१४ में जहां भाजपा को 282 सीटे मिली तो 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 303 तक पहुंच गया था। 2024 की लड़ाई जिस तरह 2023 में शुरू हुई यह अपने अंजाम तक कहां पहुंचेगी इस बारे में अभी कुछ भी कह पाना जल्दबाजी होगा। देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव आने तक यह विपक्षी एकता कहां तक ठहरेगी। क्योकि पटना और बंगलुरू की बैठक के बाद इंडिया में शामिल दलों के सुर कुछ-कुछ बहके हुुए है। सीपीआई(एम) के सीताराम येचुरी ने साफ कर दिया है कि वे इंडिया में साथ है लेकिन के रल और पश्चिम बंगाल में उनका स्टैंड वहीं रहेगा जो अभी तक है। गठबंधन में शामिल यूपी की समाजवादी पार्टी ने अपनी मंशा पहले ही जाहिर कर दी है वह चाहती है कि यूपी में इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) की अगुवाई उसी के हांथ में हो। लेकिन इसके लिए कांग्रेस तैयार नहीं दिख रही है। कर्नाटक और हिमांचल प्रदेश में सरकार बनने के बाद कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार हुआ है और वह बदले परिवेश में तीस से कम सीटों पर लडऩे की तैयारी कर रही है।

हालांकि 209 के लोकसभा चुनाव में उसे यहां से मात्र एक सीट रायबरेली मिली थी जहां से सोनिया गांधी निर्वाचित हुई थी। कांग्रेस ही नहीं इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस के अलावा यूपी के अन्य दल जिनका अपने-अपने क्षेत्रो मेंं प्रभाव है वे यहां अकेले-अकेले ही चुनाव लडऩे की हिमायत कर रहे हैं। इस बारे में विशेषरूप से कांग्रेस को अपने केन्द्रीय नेतृत्व के फैसले का इंतजार है राष्टï्रीय पार्टी होने के नाते वहां यहंा किसी की पिछलग्गू बनने को तैयार नही दिख रही है। स्थानीय कांग्रेसियों का कहना है कि अखिलेश से मुस्लिमों और ओबीसी से नाराजगी का खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। दो राज्यों में सरकार बनने के बाद से कांग्रेस को लगता है कि जनता के बीच उसकी स्वीकार्यता बढ़ी है जिसका परिणाम 2024 के नतीजो में देखने को मिल सकता है।

वहीं इंडिया में शामिल रालोद,अपनादल(के) व जनवादी पार्टी सीटों के बटवारे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बजाए इंडिया के होने वाले संयोजक का ही निर्णय मानने की बात कह रहे है। यह तीनों दल विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन में शामिल थे लेकिन इंडिया में आने के बाद वे अब सपा के बजाय इंडिया नेतृत्व का फैसला मानने की बात कहते दिख रहे है। यूपी में एनडीए के लिए तसल्लीबक्श बात यह है कि यहां बहुजन समाज पार्टी इंडिया में शामिल नहीं है। हालांकि उसके शामिल होने की संभावना के मद्देनज़र रखते हुए ही आजाद समाज पार्टी(भीम आर्मी)को दूर रखा गया था। लेकिन बावजूद इसके मायावती ने अपने पत्ते खोल दिए है कि वे लोकसभा और उससे पूर्व चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावो में अकेले दम पर ही लड़ेगी। राजननीतिक जानकारों की माने तो मायावती के इस फैसले से यूपी में एनडीए को शिकस्त देने की मुहिम को झटका लग सकता है। २०१९ के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन करने के बाद बसपा को 10 सीटे मिली थी।

दोनों गठबंधनों में दलबदलुओ की भरमार
इंडिया हो एनडीए दोनो ही गठबंधनों राष्टï्र की एकता अखंडता और देश बचाने के नाम पर बदबदलू दलों की भरमार है। जो कल तक नीतीश शरद के साथ वे आज एनडीए का हिस्सा बन रहे है। यूपी में सपा गठबंधन में रही सुभासपा एक बार फिर एनडीए का हिस्सा है। इसी तरह बिहार में जेडीयू के साथ रहे पूर्व सीएम व हम के अध्यक्ष जीतनराम मांझी भी एनडीए का हिस्सा है। जिन शरद यादव ने १९९९ में विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था उसका एक धड़़ा एनडीए में और दूसरा धड़ा इंडिया में है। इसी तरह कई अन्य दल है जो जो कल तक उधर थे आज इधर है।

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