लखनऊ, (हि.स.)। लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय बैठक से पहले पार्टी रणनीतिकारों ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों को लेकर रणनीति बनायी है। इसमें पिछले लोकसभा चुनाव में जीते गये सीटों पर पुन: जीत के लिए भी बसपा नेतृत्व कार्यकर्ताओं से तैयारी करा रहा है।
बसपा के राष्ट्रीय टीम के सदस्यों की मानें तो बीते वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। इसमें 10 लोकसभा सीटें जीतकर बसपा एक बड़ी राजनीतिक पार्टी के रुप में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। इस बार लोकसभा चुनाव में इससे ज्यादा सीटें जीतने की तैयारी है। जीते हुई सीटों को भी पुन: जीता जायेगा।
बसपा का गढ़ माने जाने वाले अम्बेडकर नगर जनपद में सियासत बदली हुई है। लालजी वर्मा और रामअचल राजभर के समाजवादी पार्टी में चले जाने के बसपा के कैडर कार्यकर्ता कम हुए। इसी बीच वर्ष 2022 में राकेश पाण्डेय ने बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी से टिकट लेकर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक भी बन गये। राकेश पाण्डेय बसपा से अम्बेडकर नगर में ही सांसद रहे। आजकल उनके पुत्र रितेश पाण्डेय सांसद है और बसपा के बड़े नेता माने जाते है। फिलहाल बसपा उन्हें दूसरे बार टिकट देगी या नहीं, ये समय ही बतायेगा।
गाजीपुर लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव में बसपा का कब्जा हुआ था। जहां से अफजाल अंसारी चुनाव लड़कर जीते लेकिन अब बदली सियासत में अंसारी को दो वर्ष की अवधि से ज्यादा की सजा सुनायी गयी है। जिसके कारण गाजीपुर लोकसभा सीट खाली हो गयी है। अफजाल अंसारी को बसपा दूसरे बार टिकट देने की स्थिति में नहीं है। इसके लिए नये चेहरे की तलाश में बसपा की राष्ट्रीय टीम जुटी है।
इन सीटों पर बसपा जीती थी लोकसभा चुनाव
गाजीपुर से अफजाल अंसारी (खाली), घोसी से अतुल राय, नगीना से गिरीश चन्द्रा, सहारनपुर से हाजी फजलुर रहमान, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, बिजनौर से मलूक नागर, श्रावस्ती से राम शिरोमणी, अम्बेडकर नगर से रितेश पाण्डेय, लालगंज से संगीता आजाद, जौनपुर से श्याम यादव पिछली लोकसभा चुनाव को बसपा के टिकट से जीते थे।
वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर मंडल कर रहा कड़ी मेहनत
भाजपा के किले में सेंध लगाने के लिए बसपा नेतृत्व ने वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर मंडल की लोकसभा सीटों पर समीकरण साधने के लिए जिलाध्यक्षों को लगाया है। वहीं बसपा के कार्यकर्ता भी दिनरात अपने बूथ को प्रभावशाली बनाने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं। फिर भी शहरों में बसपा का प्रभाव उतना नहीं है, जो ग्रामीण क्षेत्र में दिख रहा है।