अहमदाबाद (ईएमएस)। एक पंथ विशेष से प्रभावित होकर महिला आयुर्वेदिक डॉक्टर पत्नी ने अपने पति को दस साल तक संबंध नहीं बनाने दिए। कई बार पति डॉक्टर ने समझाने की कोशिश की लेकिन पत्नी नहीं मानी। और आत्महत्या करने की धमकी देती रही। अंतत: पति ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करने हुए तलाक की मंजूरी दे दी।पति के मुताबिक, पत्नी ब्रह्मचर्य पर इस कदर अड़ी हुई थी कि उसने यौन संबंध बनाने पर आत्महत्या करने की धमकी भी दी थी। पति ने कहा कि शादी से पहले उसे अपनी पत्नी की मानसिक स्थिति के बारे में अंधेरे में रखा गया था और यह क्रूरता के समान है। 2018 में, फैमिली कोर्ट ने पति के दावों को खारिज करते हुए पत्नी के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि पति ने अपने सबूतों में सुधार किया था।
इसके बाद पति को गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसने सिजोफ्रेनिया के लिए उसकी पत्नी का इलाज करने वाले डॉक्टरों और अन्य गवाहों की गवाही पेश की, जिन्होंने फैमिली कोर्ट में गवाही दी थी कि पत्नी 2011 से ससुराल के घर में नहीं रह रही थी।गुजरात हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि पत्नी की मेडिकल स्थिति, अपने वैवाहिक संबंधों को निभाने से इनकार करना और 12 साल तक ससुराल वाले घर से दूर रहना यह मानने के लिए पर्याप्त आधार थे कि शादी टूट गई थी और पूर्ण नहीं हुई थी। गुजरात हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए उस व्यक्ति के तलाक को मंजूरी दे दी। इस जोड़े की 2009 में शादी हुई थी और महिला एक सिजोफ्रेनिया रोगी थी। पति एमडी है और पत्नी आयुर्वेद डॉक्टर है। रिपोर्ट के अनुसार, पति ने 2012 में फैमिली कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर किया था, जिसमें इस आधार पर क्रूरता का आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी सिजोफ्रेनिया की मरीज थी और एक आध्यात्मिक पंथ की अनुयायी थी और उसके साथ यौन संबंध नहीं बनाना चाहती थी।