स्पेशल जज रवि कुमार दिवाकर का कड़ा फैसला – एक को उम्रकैद
छह बार सिर पर बार करके जान लेते हैं छैमार
महिलायें भीख मांगकर रैकी करती थीं, डकैत कत्ल करते थे
सास – बहू, बाप – बेटे – सब के सब डकैत
बरेली। करीब आठ साल पहले शहर के थाना बारादरी के सुरेश शर्मा नगर में रहने वाले एक आयकर अधिकारी के घर हुए ट्रिपल मर्डर की घटना से पूरा शहर सहम गया था। इस मामले में कुछ ही दिनों के बाद पुलिस ने छैमार गैंग को पकड़ा था, कैंट के एक सुनार को भी डकैती का माल खरीदने में पकड़ा गया था। अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम रवि कुमार दिवाकर ने सभी अभियुक्तों को दोषसिद्ध पाया है तथा आठ को फांसी की सजा सुनाई है। डकैती का माल खरीदने वाले सुनार को उम्रकैद की सजा भुगतनी पड़ेगी। न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर वही न्यायाधीश हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी प्रकरण व बरेली में मौलाना तौकीर रजा खां के प्रकरण में महत्वपूर्ण फैसले सुनाये हैं।
आठ साल पहले पड़ी थी डकैती व हुई थीं तीन हत्यायें – – अदालत के आदेश के अनुसार आयकर विभाग में निरीक्षक के पद पर काम करने वाले रविकांत मिश्रा के घर, सुरेश शर्मा नगर पर 21 अप्रैल 2014 को डकैतों ने धावा बोलकर लूटपाट की थी तथा उनकी मां, भाई व भाभी की हत्या कर दी थी। रविकांत मिश्रा पीलीभीत गए थे, घर पर फोन नहीं उठने पर वापस लौटे, मैनगेट अंदर से बंद था, गैलरी में खिड़की खुली थी। जब पड़ोस के मकान से देखा तब अंदर उनकी मां पुष्पा देवी की लाश सीढ़ियों के पास पड़ी थी। घर का सारा सामान बिखरा था, बैडरूम में भाई योगेश व उनकी पत्नी प्रिया की लाश भी वहीं पड़ी हुई थी। रविकांत मिश्र की तहरीर पर पुलिस ने मुकदमा अपराध संख्या 279/2014 के अन्तर्गत धारा 396, 412, 404 व 120 बी के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज किया।
अपराधी जो पकड़े गए – अदालत के आदेश में पुलिस की अभियुक्तों को पकड़े जाने की भी पूरी कहानी का जिक्र है। सभी अभियुक्त पंजाब के छैमार गैंग के थे तथा उमरिया के पास गांव के उत्तरी छोर पर डेरा बनाकर रहते थे। दो मई 2014 को जब मुखबिर की खबर पर पुलिस ने छापा मारा तब एक व्यक्ति पकड़ में आया जिसकी जेब से चांदी के चार सिक्के मिले। एक पर्स में डकैती में मारी गईं पुष्पा देवी का पर्चा व योगेश मिश्र का पैन कार्ड मिला। यहां लोहे का सब्बल भी मिला। मौके पर कुछ महिलायें भी पकड़ी गईं। रवि कांत मिश्र ने पर्स देखकर पहचाना कि यह उनके मारे गए भाई योगेश का है। यहां मौके पर नाजिमा उर्फ कल्लो, हाशमा पत्नी यासीन व वाजिद पुत्र रईस को मौके से गिरफ्तार किया गया।
पकड़ में आया डकैती का माल खरीदने वाला सुनार – सात मई को पुलिस को खबर मिली कि सैटेलाइट पर एक सुनार खड़ा है, जो छैमार गिरोह से माल खरीदता है। पहचान पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया। सदर कैंट का रहने वाला राजू वर्मा नाम का एक सुनार पुलिस ने दबोच लिया, उसके पास से कुछ जेवर बरामद हुए, जिनमें डकैती में मारी गईं प्रिया के कानों के टाप्स आदि जेवर भी थे। राजू वर्मा ने पुलिस को डकैती का माल खरीदना स्वीकार किया।
11 मई को बारादरी के प्रभारी निरीक्षक आरके सिंह व पुलिस टीम ने रुहेलखंड मेडीकल कालेज के पास डोहरा रोड से हसीन पुत्र नियाज उर्फ वर्फ, यासीन उर्फ जीशान पुत्र हसीन को गिरफ्तार किया। उसके पास से लूटा हुआ सामान साड़ी, ब्लाउज, चांदी के सिक्के बरामद हुए। इसके अलावा आठ जुलाई को समीर उर्फ साहिब उर्फ नफीस पुत्र छ्म्मे मियां की गिरफ्तारी की गई। उसके पास से भी डकैती का सामान मिला।
ईंट और सब्बल तब तक मारा – जब तक तीनों मर नहीं गए – अदालत के आदेश में इस घटना भयावहता का भी हवाला दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ है कि मृतका पुष्पा देवी, योगेश व प्रिया को तब तक सब्बल और ईंट से मारा गया, जब तक वह मर नहीं गए। अपराधियों ने बिना किसी रंजिश के डकैती के उद्देश्य से शौकिया सामूहिक हत्या की और उनको तब तक मारा जब तक उनका भेजा बाहर नहीं आ गया।
छह बार वार करते हैं छैमार – आदेश में कहा गया है कि सुनार राजू वर्मा को छोड़कर बाकी सभी सिद्धदोष डकैत परिवार से सम्बंधित हैं। यह मूल रूप से पंजाब का छैमार गैंग है। खानाबदोश घुमंतु डकैतों के गिरोह में छैमार सबसे खतरनाक हैं, यह किसी को मारने के लिए उसके सिर पर छह बार बार करते हैं, इसलिए यह छैमार कहलाते हैं। इनकी महिलायें भिखारी बनकर कालोनियों में रैकी करती हैं।
सास – बहू, बाप – बेटे, सभी डकैत – अदालत के आदेश में बताया गया है कि सिद्धदोष नाजिमा एवं हाशिमा सास बहू हैं। हसीन के दो बेटे जुल्फाम और यासीन हैं। चचेरा भाई समीर उर्फ साहिबा उर्फ नफीस तथा फहीम उर्फ शंकर व जुल्फाम व उसके साले वाजिद सभी एक ही परिवार के हैं। हसीन की बीबी नाजिमा है तथा यासीन की पत्नी हाशिमा है।
अगर अदालत फांसी नहीं देगी तब मृतक का परिवार कानून हाथ में लेने को मजबूर होगा –
अदालत के फैसले में कहा गया है कि यह पाश्विक ढंग से की गई सामूहिक हत्याये हैं। अदालत मानती है कि ना कोई मारा जाये, ना किसी के प्राण लिए जायें। लेकिन यह शायद व्यवहारिक दृष्टि से संभव नहीं है। समाज में निर्दोष की हत्या पर अदालत को मृत्युदंड अवश्य देना चाहिए। विधि का स्थापित सिद्धान्त है कि कोई व्यक्ति कानून को हाथ में ना ले। यह सभी संभव है जब कानून का शक्ति से पालन हो। अगर सामूहिक हत्यारे को अदालत समुचित दंड नहीं देती है तब निश्चित ही मृतक का परिवार कानून को अपने हाथ में लेकर अपराधियों से बदला लेने पर विवश होगा। यह सभी आदतन अपराधी हैं तथा इनको मृत्युदंड देना उचित है।
फांसी पर तब तक लटकायें, जब तक यह मर ना जायें – अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम रवि कुमार दिवाकर ने अपने इस बेहद कड़े आदेश में कहा है कि सिद्धदोष वाजिद पुत्र रईस, हसीन पुत्र नियाज उर्फ बर्फ, यासीन उर्फ जीशान पुत्र हसीन, नाजिमा पत्नी हसीन, हाशिमा पत्नी यासीन, समीर उर्फ साहिब उर्फ नफीस पुत्र छम्मे मियां उर्फ इकबाल उर्फ जागीर हसन, जुल्फाम पुत्र हसीन एंव फहीम उर्फ शंकर पुत्र हनीफ को धारा 396 व 120 बी में मृत्युदंड दिया जाता है, सिद्धदोषों को फांसी के फंदे पर तब तक लटकाया जाये जब तक कि उनकी मृत्यु ना हो जाये। डकैती का माल खरीदने वाले सुनार राजू वर्मा को उम्रकैद की सजा दी गई है।
आपरेशन कन्विक्शन से तेज हुई पैरवी – एसपी क्राइम व नोडल अधिकारी आपरेशन कन्विक्शन मुकेश प्रताप सिंह के अनुसार इस चर्चित मामले में पुलिस अधीक्षक ग्रामीण दक्षिणी मानुष पारिक, आईपीएस, कोर्ट पैरोकार महकार सिंह, कोर्ट मोहर्रिर योगेन्द्र सिंह, प्रथम विवेचक तत्कालीन एसओ थाना बारादरी अनिल कुमार सिरोही, दूसरे विवेचक तत्कालीन एसओ बारादरी आरके सिंह आदि की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अलावा इस मामले में जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुनीति पाठक, एडीजीसी फौजदारी दिगंबर पटेल व सौरभ तिवारी ने भी कानून का पक्ष बेहद मजबूती के साथ कोर्ट के समक्ष रखा।
आठ अभियुक्तों को मृत्युदंड व एक को उम्रकैद सुनाई गई है। यह सुरेश शर्मा नगर का तिहरा हत्याकांड है। डकैतों की साथी महिलाओं ने रैकी की थी। वह महिलायें भीख मांगने के बहाने घूमती थीं। गवाहों ने भी शिनाख्त की थी। पानी मांगती थी। यह छैमार गैंग है। डेरों में रहते हैं, पहले इनको कच्छा बनियान गिरोह भी कहते थे।
दिगंबर पटेल – एडीजीसी
मानवीय जीवन भगवान द्वारा प्रदत्त बहुत ही सुंदर जीवन है, इसलिए सभी व्यक्तियों को जीवित रहने का समान अधिकार है। जीवन ईश्वर देता है, तो जीवन केवल ईश्वर ही ले सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की जान ले लेता है तो ऐसे व्यक्ति को जीने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। समाज में ऐसा व्यक्ति दया का पात्र नहीं रह जाता है, चाहें वह महिला की क्यों ना हो।
रवि कुमार दिवाकर – अपर सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम, बरेली