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प्रत्येक दिन फूल और बेलपत्र से बनाई जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा, जानें कब से शुरू हुआ सिलसिला

बेगूसराय (हि.स.)। मां दुर्गा की भक्ति कर शक्ति पाने के लिए शारदीय नवरात्र के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने कुष्मांडा स्वरुप की पूजा-अर्चना किया। नवरात्रि को लेकर तमाम दुर्गा मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। सभी देवी मंदिरों में सुबह से देर शाम आरती तक हूजूम उमड़ पड़ा है।

दुर्गा पूजा को लेकर बेगूसराय के मंदिरों में जहां अलग-अलग प्रकार की प्रतिमा बनाई जा रही है। वहीं, मंझौल अनुमंडल के विक्रमपुर गांव में अन्य वर्षो की तरह इस बार भी प्रत्येक दिन फूल और बेलपत्र से भगवती के स्वरूपों की प्रतिमा बनाई जा रही है। जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है।

यहां सैकड़ों वर्षों से शारदीय नवरात्र में प्रत्येक दिन माता भगवती के अलग-अलग स्वरूपों की प्रतिमा फूल और बेलपत्र से बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है तथा ग्रामीण के अलावा दूर-दूर से भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा पद्धति के लिए चर्चित क्षेत्र के विक्रमपुर गांव माता के भक्ति रस में सराबोर हो गया है।

यहां प्रत्येक दिन मां की आकृति बनाने हेतु फूल और बेलपत्र इकट्ठा करने के लिए गांव वालों की उत्साह देखते ही बनती है। मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा देखने के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और देर रात घर लौटते हैं। गांव वालों की माने तो माता जयमंगला की असीम अनुकंपा के कारण गांव में सुख-शांति और समृद्धि है।

कहा जाता है कि करीब सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में बलि प्रदान करने को लेकर पहसारा और विक्रमपुर गांव के जलेवार भूमिहार में विवाद हो गया। इसी दौरान नवरात्र के समय विक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला आई और कहा कि नवरात्र के पहले पूजा से लेकर नवमी पूजा के बलि प्रदान करने तक विक्रमपुर गांव में रहूंगी, इसके बाद गढ़ को लौट जाऊंगी।

देवी भगवती ने कहा था कि अपने हाथों से फूल, बेलपत्र तोड़कर आकृति बनाकर परिजनों सहित धूप और गुग्गुल से श्रद्धापूर्वक पूजा करो। उसी समय से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई और आज भी उनके वंशज पूजा करते आ रहे हैं। कलश स्थापन के दिन स्व. सिंह के वंशज मिलकर मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं।

रोजाना अपने हाथों से तोड़े गए फूल-बेलपत्र की आकृति बनाकर पूजा करते हैं। कालांतर में परिवार के विस्तार होने के कारण पहली पूजा तीन खुट्टी खानदान के चंदेश्वर सिंह बगैरह करते हैं। दूसरी पूजा पंचखुट्टी के सुशील सिंह के परिवार द्वारा तथा शेष सभी पूजा नौ खुट्टी के राजेश्वर सिंह एवं परमानंद सिंह आदि के परिवार के लोग करते हैं।

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