प्रयागराज, (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक सम्बंधों को अपराध बनाना नहीं था। आजकल यह अक्सर देखने को मिल रहा है कि इस अधिनियम का प्रयोग लोग शोषण के उपकरण के रूप में कर रहे हैं।
हालांकि, कोर्ट ने प्रत्येक मामलों को तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर देखने पर बल दिया, लेकिन कहा कि जमानत देते समय प्यार से पैदा हुए सहमति संबंध के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि, अगर पीड़िता के बयान को नजरअंदाज कर दिया गया और आरोपी को जेल के पीछे पीड़ा सहने के लिए छोड़ दिया गया तो यह न्याय की विकृति होगी।
कोर्ट ने जालौन के थाना आटा में पॉक्सो सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं में दर्ज आपराधिक मामले में याची मृगराज गौतम उर्फ रिप्पू की जमानत अर्जी मंजूर कर ली और उसे जेल से रिहा करने का आदेश दिया।
मामले की सुनवाई कर रही कृष्ण पहल की पीठ के समक्ष याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उसे अनावश्यक रूप से परेशान करने के लिए फंसाया गया है। पीड़ित का कोई चिकित्सकीय परीक्षण नहीं किया गया। याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने जमानत अर्जी का विरोध किया लेकिन कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत पर शर्तों के साथ रिहा करने का आदेश पारित किया।