नई दिल्ली,(ईएमएस)। नहाए खाए से मंगलवार की सुबह छठ पर्व की शुरुआत हो गई है। छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से हो जाती है। इसके साथ ही सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पर्व को मुख्य रूप से महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए मनाती हैं। इस वर्ष, छठ पूजा का पहला दिन ‘नहाय खाय’ है, जो इस पर्व को मनाने वालों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नहाय खाय के दिन, मंगलवार सुबह 6:39 बजे सूर्योदय और शाम 5:41 बजे सूर्यास्त होगा। इस दिन व्रति महिलाएं गंगा नदी में स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव की आराधना करती हैं। इसके बाद घर में कद्दू और चने की दाल से भोजन तैयार किया जाता है। नहाय खाय का अर्थ है स्नान के बाद भोजन करना। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं और फिर भात, चना दाल और कद्दू या लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं। यह भोजन साधक में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और व्रति को पवित्रता की ओर अग्रसर करता है।
कद्दू का है विशेष महत्व
इस दिन कद्दू भात का सेवन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस व्रत की शुरुआत कद्दू भात के बिना नहीं हो सकती। इस अवसर पर लहसुन और प्याज के बिना कद्दू, लौकी की सब्जी और चना दाल के साथ चावल बनाने का विधान है। कद्दू, लौकी और चने की दाल का सेवन व्रति के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा, जिसे डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है, एक चार दिवसीय त्योहार है जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है, लेकिन अब यह पर्व देश और विदेश में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा है। छठ पूजा के अवसर पर घाटों पर विशेष चहल-पहल होती है, और भक्त अपने प्रियजनों की समृद्धि, सुख और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करते हैं। इस साल छठ पूजा की शुरुआत आज, यानी नहाय खाय से हो चुकी है।
इसके बाद, 6 नवंबर को खरना, 7 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्यदान और 8 नवंबर को प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद पारण होगा। इसी के साथ इस महापर्व का समापन भी होगा। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता और परिवार के साथ बिताए गए समय का भी प्रतीक है।