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नवरात्रि विशेष: तुलराधाम में आज भी मॉ विरासनी के दर्शन करने के लिए आते हैं शेर

पुष्पराजगढ के घने जंगलों के बीच पहाड़ में विराजी चतुर्भुजी मॉ करती हैं मनोकामना पूरी

अनूपपुर (हि.स.)। जिले की ख्याति मां नर्मदा उद्गम मन्दिर अमरकंटक के कारण है। नर्मदा,सोन, जोहिला की उदगम नगरी अमरकंटक में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन, पूजन के लिये आते हैं। इसके साथ ही जिले में देवी माता का एक मन्दिर ऐसा भी है कि जहाँ आज भी जंगल के राजा शेर देवी के दर्शनों के लिये आते हैं।

पुष्पराजगढ के घने जंगलों के बीच स्थित तुलराधाम तक बहुत लोग नहीं पहुँच पाते। लोगों को यहाँ की जानकारी भी कम है। लेकिन यहाँ आसपास के हजारों श्रद्धालुगण दर्शन,पूजन के लिये आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिये प्रार्थना करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहाँ अपनी सात बहनों के साथ विराजित चतुर्भुजी विरासनी माता सच्चे मन से मांगी गयी मनोकामना को अवश्य पूरा करती हैं। विंध्य क्षेत्र में हजारों साल पुरानी ऐसी बहुत सी सुन्दर, तेजमयी देवी – देवताओं की प्रतिमाएँ पाई जाती हैं। उनमें से एक बहुत सुन्दर विरासनी माता की प्रतिमा पुष्पराजगढ के ग्राम तुलरा में स्थापित हैं।

अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ विकासखण्ड के ग्राम तुलरा के तुलरागढ़ में चतुर्भुजी माता विरासनी की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। माताजी के साथ सात बहनों की प्रतिमाएँ भी यहाँ विराजित हैं। यहाँ आने वाले भक्तगण और पुजारी जी के अनुसार माता जी अपने भक्तों की पीड़ा को हर लेती हैं। जिन भक्तों के संतान नहीं है, माता संतान देती हैं। यहाँ पागल ठीक होते हैं। चैत्र नवरात्रि पर्व पर भक्त ज्योति कलश जलवाते हैं। जवारा भी बोया जाता है। यहां के घने जंगल में शेर के बहुत सारी गुफाएं हैं। माताजी के दर्शन करने के लिए माताजी की सवारी भी यहां आते हैं, जिन्हे हमेशा लोग प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं। पहाड़ में जहां सरई, बेल का जंगल में माता के स्थान पर जलप्रपात है। यहां से पानी ले जाकर कर कृषक अपने खेतों का सिंचाई करते हैं।

बताया जाता हैं कि दशकों पहले एक बैगा जनजाति के व्यक्ति को माताजी को स्वप्न दिए कि मैं तुलरा की कुल्हाड़ी नदी में हूं। मुझे आकर के ले चलो। तब बैगा जनजाति का व्यक्ति प्रातः काल उठकर तुलरा नदी में जाकर के मूर्ति को देखा लगा कि यह बहुत भारी है और उठा न पाने के डर से वापस आ गया मॉ पुनः रात्रि में स्वप्न आई और बोली कि मुझे लेकर क्यों नहीं आया तब वह कहता है कि आप बहुत भारी हैं इसलिए मैं आपको नहीं ला पाया। तब मॉ कहती हैं कि तुम मुझे उठाकर देखना मैं आ जाऊंगी। लेकिन जिस स्थान पर रख दोगे, मैं वहां से दोबारा नहीं उठूंगी। एक बार में तुम जहां ले जाना चाहते हो, मैं चली जाऊंगी। वह व्यक्ति नदी में जाकर श्रीफल चढ़ा, पूजा- प्रार्थना कर मूर्ति को सर में उठाकर चलना प्रारंभ किया। जैसे ही वह जंगल में प्रवेश किया, वहां जलप्रपात देख कर व्यक्ति को प्यास लग आई। वह मूर्ति को महुआ की वृक्ष पर रख करके पानी पीने चला गया। जल पीकर के उसने पुनः माताजी को उठाने का प्रयास किया। लेकिन माता जी की प्रतिमा वहां से फिर नहीं उठीं। वह व्यक्ति वहीं पर मां भगवती को प्रणाम करके छोड़ चला जाता है। बहुत दिनों तक लोगों को माताजी की मूर्ति के बारे में नहीं पता था। फिर लोगो को जैसे-जैसे पता चला लोग माता जी के दर्शन करने आने लग गये।

ग्रमीणों ने बताया है कि वर्षों पहले यहाँ बहुत घना जंगल था। 1997 में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बनारस से विद्वानों को बुलाकर माताजी का मंदिर, राम दरबार का मंदिर, शंकरजी का मंदिर बनवाकर प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा कर स्थापना कराया। 1997 से यहाँ प्रधान पुजारी के रुप में सेवा दे रहे उमेश पाठक बतलाते हैं कि मां बिरासिनी सभी भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। स्थानीय लोग क्वांर और चैत्र नवरात्रि में माताजी की नौ दिनों तक पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। अखंड ज्योति जलाई जाती है,जवारे लगाए जाते हैं। भजन, कीर्तन, हवन, भंडारा होता है। यहाँ मेला भी लगता है। जैसे – जैसे यहाँ स्थापित माई की ख्याति फैल रही है, यहाँ आने वाले भक्तों की संख्या में भी बढोतरी हो रही है।

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