नई दिल्ली । दुनिया में कई प्रकार के कैंसर हैं, जिनका इलाज अब तक नहीं खोजा गया है। लेकिन रूस ने दावा किया है कि उसके वैज्ञानिकों ने कैंसर की वैक्सीन विकसित कर ली है। लेकिन ये दस कैंसर इतने खतरनाक हैं कि इन कैंसर से बचने का कोई चांस ही नहीं होता।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2020 में लंग कैंसर यानी फेफड़ों के कैंसर से 18 लाख लोग मारे गए। कोलोरेक्टल कैंसर से 9.16 लाख लोग मारे गए। लिवर कैंसर से 8.30 लाख लोग मारे गए। कैंसर के सबसे सामान्य फॉर्म हैं प्रोस्टेट कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर। लेकिन जरूरी नहीं कि इसमें जान चली जाए।
पैनक्रियाटिक कैंसर
अमेरिका में दिल के दौरे के बाद ये दूसरी सबसे ज्यादा जान लेने वाली बीमारी है। अगर ये समय से पहले पता भी चल जाए, इलाज भी हो जाए, तब भी इसमें जान लेने की ताकत होती है। इस बीमारी से ग्रसित 12.5 प्रतिशत लोग ही पांच साल जीते हैं। 95 फीसदी पैनक्रियाटिक कैंसर एक्सोक्रीन सेल्स में होता है। ये सेल्स पाचन बढ़ाने वाले एंजाइम पैदा करती है। यहीं से इंसुलिन भी बनता है।
ब्रेन/नर्वस सिस्टम कैंसर
इन दोनों कैंसर के होने पर 33.8 प्रतिशत लोग ही पांच साल तक जीते हैं। ब्रेन कैंसर होता ट्यूमर बनने से। ये दुर्लभ है लेकिन खतरनाक है। अगर ये कैंसर होता है, तब अन्य कैंसर की तुलना में इसके फैलने का चांस पांच गुना ज्यादा होता है। इसके होने के पीछे की वजह बढ़ती उम्र, ज्यादा वजन या मोटापा है।
लिवर/ बाइल डक्ट कैंसर
पांच साल में सर्वाइवल रेट मात्र 21.6 फीसदी। पूरी दुनिया में लिवर कैंसर सबसे ज्यादा जानलेवा साबित होता है। 1980 के दशक से अब तक बीमारी की रेट तीन गुना बढ़ी है। इसकी ज्यादातर वजह है हेपटाइटिस बी वायरस या हेपटाइटिस सी वायरस का संक्रमण होता है। ये इंसान के शरीर के तरल पदार्थों में फैल जाते हैं। जैसे कि खून, वीर्य आदि में। अमेरिका में 2021 में हेपटाइटिस सी संक्रमण के 1.07 लाख केस सामने आए थे। एक और कैंसर है बाइल डक्ट कैंसर ये लिवर, गॉलब्लैडर और छोटी आंत को प्रभावित करता है। पिछले साल अमेरिका में इन दोनों कैंसर से 29,380 लोगों की मौत हुई थी।
पेट का कैंसर
पेट का कैंसर यानी स्टमक कैंसर होने पर 35.7 प्रतिशत लोग ही पांच साल तक जीते हैं। इस गैस्ट्रिक कैंसर भी कहते हैं। ये स्टमक की कोशिकाओं में होता है। ये महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा होता है। आमतौर पर 60 साल के बाद होता है। मोटापा, खानपान और एथनिसिटी इसके लिए वजह होते हैं।
इसोफेगल कैंसर
इसोफेगस यानी आहार नाल का कैंसर। जहां से आपका खाना मुंह के रास्ते पेट तक जाता है। इसके होने पर 21.7 प्रतिशत लोग ही पांच साल जीते हैं। ये आमतौर पर बुजुर्ग होने पर और पुरुषों को ज्यादा होता है। इसकी वजह है स्मोकिंग, शराब पीना या एसिडिक रिफ्लक्स होना।
लंग/ब्रॉन्कस कैंसर
फेफड़े या ब्रॉन्कस कैंसर होने पर 25.4 प्रतिशत लोग ही पांच साल जीते हैं। ये इकलौता कैंसर है जो दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की जान लेता है। सबसे बड़ी वजह है सिगरेट-बीड़ी पीना है। ये दो तरह का होता है नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर, सबसे ज्यादा यही होता है। दूसरा है स्मॉल सेल लंग कैंसर। ये तेजी से फैलता है।
एक्यूट माइलॉयड ल्यूकीमिया
इस कैंसर के होने पर 31.7 प्रतिशत लोग ही पांच साल तक जीते हैं। ल्यूकीमिया स्टेम सेल्स में म्यूटेशन से होता है। ये सेल्स हड्डीमज्जा यानी बोन मैरो में होती है। इसमें ही खून में सफेद रक्त कोशिकाएं यानी डब्ल्यूबीसी बनता है। कुछ हिस्सा लाल रक्त कोशिकाएं भी बनाता है। इनकी वजह से ब्लड क्लॉटिंग होती है। जिसके लिए प्लेटलेट्स जिम्मेदार होते हैं। ल्यूकीमिया होने पर खून और बोन मैरो खराब होने लगता है। ये 45 साल से पहले के मरीजों में कम दिखता है।
ओवेरियन कैंसर
इसके होने पर 50.8 प्रतिशत लोग पांच साल तक जीते हैं। ये तब होता है जब ओवरी या फेलोपियन ट्यूब्स में कोशिकाएं म्यूटेशन करती हैं। खासतौर से उस रास्ते में जो ओवरीज को यूट्रेस से जोड़ता है। महिलाओं में होने वाली सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक। महिलाओं को इसके अलावा लंग और ब्रेस्ट कैंसर भी होता है।
माइलोमा
इसके होने पर 59.8 प्रतिशत लोग ही पांच साल तक जीते हैं। ये कैंसर इम्यून कोशिकाएं यानी प्लाज्मा सेल्स में होता है। ये सेल्स बोन मैरो में होती हैं। हड्डियों में होती हैं। और शरीर की नरम ऊतकों में। इम्यूनिटी खराब होती चली जाती है। एंटीबॉडीज बनना बंद होती हैं। कैंसर शरीर में बढ़ता चला जाता है। इलाज के लिए कीमोथैरेपी, टारगेटेड ड्रग थैरेपी और स्टेरॉयड्स होते हैं।
लैरींजियल कैंसर
इस कैंसर में 61.6 प्रतिशत लोग पांच साल तक जीते है। ये कैंसर तब होता है जब लैरिंक्स में कैंसर कोशिकाएं जमा होती हैं। यानी जहां से आपकी आवाज निकलती है। ये होता हैं तंबाकू उत्पादों और शराब के सेवन से होता है। कई बार डॉक्टर सर्जरी करके ट्यूमर को निकालते हैं। कई बार पूरा लैरिंक्स निकाल देते हैं।
वहीं रूस का दावा है कि उसके वैज्ञानिकों ने कैंसर की वैक्सीन बना ली है। ये वैक्सीन अगले साल से वे अपने लोगों को मुफ्त लगाना शुरू करेगा। ये एक एमआरएनए वैक्सीन है। रूस इस वैक्सीन को अपने हर नागरिक के शरीर और संभावित कैंसर के मुताबिक देगा। आम नागरिकों को सीधे साधारण वैक्सीन की तरह नहीं लगेगी। ये वैक्सीन किसी मरीज के ट्यूमर से निकाले गए आरएनए से बनाई गई है।
जब मरीज को यह एमआरएनए वैक्सीन लगेगी, तब शरीर के अंदर यह खास प्रोटीन पैदा करेगी। जिसके बदले में शरीर का इम्यून सिस्टम सक्रिय होगा। वह इसतरह के प्रोटीन को खत्म करने वाले प्रोटीन का निर्माण करेगा। ताकि कैंसर या ट्यूमर के सेल्स शरीर के अंदर न बन पाएं। साल 2022 में पूरी दुनिया में 2 करोड़ कैंसर के मामले सामने आए थे। जिनमें से 97 लाख लोग मारे गए थे। सबसे ज्यादा ब्रेस्ट, कोलोन, रेक्टम और प्रॉस्टेट कैंसर से पाड़ित थे।
मॉडर्ना और मर्क मिलकर स्किन कैंसर की वैक्सीन बना रहे हैं। प्रिवेंटिव कैंसर वैक्सीन पहले से दुनिया में मौजूद है। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया सर्वाइकल कैंसर के लिए सर्वावैक बना रहा है। रूस का दावा है कि उसकी वैक्सीन की तरह के कैंसर का इलाज करने में मदद मिलेगी।