कानपुर, (हि.स.)। केन्द्र सरकार के निर्देश पर डेंगू, चिकनगुनिया एवं मलेरिया रोग प्रबंधन एवं उपचार के कार्य में सरकारी चिकित्सालयों एवं निजी चिकित्सालय भी अब इस महा अभियान से जुड़ेंगे। यह जानकारी बुधवार को जीटी रोड स्थित एक होटल में एक दिवसीय प्रशिक्षण के बाद कानपुर नगर के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ.आलोक रंजन ने दी।
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग और सहयोगी संस्था गोदरेज,पाथ सीएचआरआई के सहयोग से निजी चिकित्सकों को आज प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षक में कानपुर के सभी निजी चिकित्सालयों से एक विशेषज्ञ चिकित्सक, एक फिजिशियन व एक इमरजेंसी चिकित्साधिकारी समेत कुल 70 से अधिक लोग शामिल हुए।
डॉ आलोक रंजन ने बताया कि डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया संक्रमणों के प्रभाव को कम करने के लिए मच्छर नियंत्रण और सार्वजनिक जागरूकता में सक्रिय प्रयास महत्वपूर्ण हैं। अक्सर देखा गया है की डेंगू, चिकनगुनिया एवं मलेरिया रोग से ग्रस्त रोगियों का निजी अस्पताल जांच के बाद उपचार तो शुरू करते हैं, मगर इसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग को नहीं मिल पाती है। ऐसे में कई बार गंभीर बीमारियों पर रोकथाम के लिए समय पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा की सभी निजी अस्पताल और पैथोलॉजी उत्तर प्रदेश सरकार के यूनीफाइड,डीजीज सर्विलेंस पोर्टल ( यूडीएसपी) पर स्वत: पंजीकृत करें । रोजाना जांच के बाद इसमें रिपोर्ट दर्ज करें।
जिला पुरुष चिकित्सालय उर्सला के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी व प्रशिक्षक डॉ मुन्ना लाल विश्वकर्मा ने बताया कि डेंगू वायरस के चार अलग-अलग सीरोटाइप के कारण होता है। इसके लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक होते हैं और इसमें तेज बुखार, गंभीर सिरदर्द, आंखों के पीछे दर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, दाने और हल्का रक्तस्राव शामिल हैं। कुछ मामलों में, डेंगू बढ़कर डेंगू रक्तस्रावी बुखार (डीएचएफ) या डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) में बदल सकता है, जो गंभीर रक्तस्राव और अंग विफलता की विशेषता वाली जीवन-घातक स्थितियां हैं।
चिकनगुनिया का प्रमुख लक्षण जोड़ों में असहनीय दर्द है, जिससे अक्सर मरीज़ आराम से चलने-फिरने में भी असमर्थ हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों बीमारियों के निदान में नैदानिक मूल्यांकन, रक्त परीक्षण और कभी-कभी, वायरस अलगाव शामिल होता है।
जिला पुरुष चिकित्सालय उर्सला के वरिष्ठ सलाहकार व प्रशिक्षक डॉ बीसी पाल ने मलेरिया रोग जनन, जीवन चक्र, नैदानिक प्रबंधन, उपचार हेतु के लिए प्रोटोकॉल, पूर्ण उपचार और अनुवर्ती कार्रवाई के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मलेरिया पांच परजीवी प्रजातियों के कारण होता है, जिनमें से दो पी. फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स – मनुष्य के लिए सबसे खतरनाक हैं।
प्रशिक्षण में आये पाथ सीएचआरआई की राज्य प्रतिनिधि डॉ शिवानी सिंह , डॉ अमृत शुक्ला एवं राहुल श्रीवास्तव ने प्रशिक्षण के मुख्य उद्देश्य से सभी को अवगत करवाया । साथ ही प्रशिक्षण सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर भी दिये। इसके साथ ही आईवीएम जिला समन्वयक सीताराम चौधरी ने पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया।
इस दौरान संचारी रोगों के नोडल अधिकारी व एसीएमओ डॉ आरपी मिश्रा, जिला मलेरिया अधिकारी अरुण कुमार सिंह, सहायक मलेरिया अधिकारी यूपी सिंह व भूपेंद्र सिंह सहित डेंगू व मलेरिया विभाग के समस्त अधिकारी व कर्मचारी मौजूद रहे।