लखनऊ। राजस्व खुफिया निदेशालय यानी डीआरआई (DRI) के चार अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने एक शख्स को हिरासत में इतना ज़्यादा टार्चर किया कि उसने डीआरआई के दफ्तर की खिड़की से कूदकर खुदकुशी कर ली. साकेत कोर्ट ने अब इन अधिकारियों को बतौर आरोपी पेश होने के लिए समन जारी किया है. कोर्ट ने ये समन दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की ओर से दायर चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए जारी किया है.
दिल्ली पुलिस ने DRI अफसरों परमिंदर, निशांत और मुकेश पर IPC की धारा 323/341/166/352/362/348/306/330/34के तहत केस दर्ज किया है. वहीं कोर्ट ने अपने आदेश में डीआरआई के अधिकारियों की कार्रवाई को गैरकानूनी मानते हुए एजेंसी के लिए अपनी ओर से कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं.
मामला क्या है?
मामला 24 अप्रैल 2018 का है. जब डीआरआई की टीम ने पीड़ित गौरव गुप्ता के घर और शोरूम पर छापा मारा. 25 अप्रैल सुबह तक चली इस रेड में डीआरआई ने गोल्ड, सिल्वर और विदेशी मुद्रा बरामद की. डीआरआई की टीम ने दफ्तर पहुंचते ही सारे टेलीफोन कनेक्शन और वहां लगे 12-13 सीसीटीवी कैमरे को हटा दिया. गौरव गुप्ता ने पिता के दिये गए बयान के मुताबिक जांच में सहयोग देने के बावजूद एक अधिकारी ने उस पर रिवाल्वर तान दी.कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि महिला अधिकारी को छोड़कर डीआरआई के बाकी अधिकारियों ने स्टाफ और घरवालों की मौजूदगी में गौरव गुप्ता के साथ मारपीट की.
DRI दफ्तर की खिड़की से कूदकर की ख़ुदकुशी
छापेमारी की कार्रवाई के बाद गौरव गुप्ता और उसके पिता को DRI के अधिकारी पूछताछ के लिए अपने साथ दफ्तर ले गए. दोनों को वहां अलग अलग कमरे में रखा गया. गौरव गुप्ता को वहां भी पीटा गया. पास के कमरे में मौजूद उनके पिता अधिकारियों की ओर से हो रही पिटाई और बेटे के रोने की आवाज सुनते रहे. इसी बीच गौरव गुप्ता ने डीआरआई के दफ्तर की खिड़की से छलांग लगा दी (Jeweller dies at DRI office) जिसके बाद उसकी मौत हो गई.
पीड़ित के पिता ने लगाया हत्या का आरोप
गौरव गुप्ता ने पिता ने पुलिस की दी गई शिकायत में डीआरआई के अधिकारियों पर बेटे की हत्या का आरोप लगाया था. लेकिन पुलिस जांच के मद्देनजर कोर्ट पहले कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि ये आत्महत्या का मामला है. अब कोर्ट को तय करना है कि उसने मर्जी से छलांग लगाई या डीआरआई के दफ्तर में ऐसा कुछ हुआ कि उसे आत्महत्या के लिए मज़बूर होना पड़ा.
कोर्ट ने DRI को दिशानिर्देश जारी किए
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि डीआरआई के अधिकारियों ने जिस तरह से गौरव गुप्ता और उनके पिता को ग़ैरक़ानूनी तरीके से हिरासत में रखा है, ये सीधे तौर पर शक्ति का ग़लत इस्तेमाल है. पुलिस जैसी जांच एजेंसियों के लिए तो जांच की प्रकिया को लेकर सेफगार्ड और गाइडलाइन है, लेकिन डीआरआई और कस्टम जैसी एजेंसियों के लिए ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं है. ऐसे में कोर्ट ने अपनी ओर से डीआरआई को दिशानिर्देश जारी कर कहा है कि अधिकारियों की छापेमारी की दौरान होने वाली कार्रवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए.
रेड के खत्म होने के बाद और पूछताछ शुरू करने से पहले आरोपी को अपने वकील से बात करने के लिए पर्याप्त मौक़ा मिलना चाहिए. बिना उचित क़ानूनी प्रकिया का पालन किये हुए ही किसी शख्स को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. इस पर अमल न करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए. इसके लिए समय समय पर सीनियर अधिकारियों की जांच करती रहनी चाहिए. वहीं जिन लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है, उन सबका अलग से रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए. आरोपी से पूछताछ की वीडियो ऑडियो रेकॉर्डिंग होनी चाहिए और इसे तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि आरोपी के खिलाफ केस खत्म न हो जाएं या फिर अपील फाइल करने की समयसीमा खत्म न हो जाए. इस मामले की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी.