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जीने की नहीं बेटे की मृत्यु की दुआ मांग रहे हैं खिलाड़ी हरीश के मजबूर माँ-बाप

 

-हाई कोर्ट में दया मृत्यु की अर्जी खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में

गाजियाबाद (हि.स.)। कहते हैं कि माँ-बाप अपने बच्चों की खुशहाली व लंबी आयु के लिए ईश्वर से दिन रात दुआ करते हैं, लेकिन दिल्ली से गाजियाबाद में ऐसा मामला प्रकाश में आया है कि एक माँ-बाप अपने पुत्र की जिंदगी नहीं बल्कि उसकी मौत के लिए न केवल भगवान से दुआ मांग रहे हैं, बल्कि हाईकोर्ट से दया मृत्यु की अर्जी खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।

जी हां, यह दर्दनाक मामला है राजनगर एक्सटेंशन एंपायर सोसायटी में रहने वाले दंपत्ति निर्मला और अशोक राणा के पुत्र हरीश का। जो पिछले 13 साल से एक हादसे के बाद जिंदा लाश बना हुआ है। हरीश वेट लिफ्टिंग का बेहतरीन खिलाड़ी था। वह चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में बीटेक फाइनल इयर का छात्र था। वहीं पीजी में रहता था।

13 साल पहले हरीश ने रक्षा बंधन के दिन आखरी बातचीत में अपनी बहन से कहा था कि उसे पंजाब यूनिवर्सिटी जाना है, वेट लिफ्टिंग का फाइलन खेलूंगा।

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उसी दिन शाम करीब 7 बजे सूचना मिली कि हरीश पीजी की चौथी मंजिल से गिर गया और उसे गंभीर चोट लगी। सूचना पर उसके माता-पिता आनन फानन में चंड़ीगढ़ पहुंचे। तभी से अशोक व निर्मला अपने बेटे की दयनीय हालत देखकर तिल-तिल मर रहे हैं और बेटे का दुख सह नहीं पा रहे हैं। उन्होंने हाई कोर्ट से दया-मृत्यु मांगी थी, लेकिन हाइकोर्ट ने इनकार कर दिया। जिसके बाद अब उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के लिए सुप्रीम कोर्ट में मार्मिक अपील करने का फैसला किया।

मां निर्मला व पिता अशोक राणा कहते हैं कि हादसे के बाद सांसें बख्शने के लिए ऊपर वाले का शुक्रिया करते थे। जहां भी किसी ने बता दिया उपचार के लिए वहीं दौड़ पड़ते थे, लेकिन ये नहीं पता था कि ऐसे दिन देखने पड़ेंगे। अपने बेटे के लिए मौत मांगना मां के लिए बहुत मु‌श्किल है, उसे रोज तिल-तिल मरते देखना, जिंदा लाश बने देखना उससे भी मुश्किल। जीवन की भीख मांगने हम कहां नहीं गए। चंडीगढ़ पीजीआई से लेकर एम्स तक कोई प्रयास नहीं छोड़ा। देश के बड़े से बड़े अस्पताल भी गए, लेकिन बेटा बिस्तर से नहीं उठ पाया। डॉक्टरों ने उसे क्वाड्रिप्लेजिया (शत-प्रतिशत दिव्यांग) घोषित कर दिया है। यूरिन बैग लगा हुआ है और फीडिंग के लिए फूड पाइप। सारी उम्मीदें टूटने के बाद हम चाहते हैं बेटे के सही अंग किसी के काम आ सकें। दिल्ली के महावीर एन्क्लेव इलाके में तीन मंजिला म‌कान था, उसे बेचकर हरीश के इलाज में लगा दिया। बेटे के ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं रह गई है, अब उम्र भी ढलान पर आ गई और हिम्मत टूट चुकी है। हमारे बाद उसकी देखभाल कौन करेगा। सरकार अपने खर्चे पर उपचार कराए या फिर इच्छा मृत्यु की इजाजत दे।

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