-180 मरीज थेलेसिमिया का है रजिस्ट्रेशन, हर 3 माह और 6 महा में होती है स्क्रीनिंग
-करोना काल में जरूरत होने पर प्राइवेट ब्लड बैंक से लिया गया खून।
-प्राचार्य डॉक्टर संजय काला ने विभागध्यक्ष के बयान का किया खण्डन।
कानपुर। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 14 बच्चों के संक्रमण में र्पदेश ही नहीं देश की सियासत में उबाल आ गया। जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिलेश यादव के ट्वीट ने प्रदेश सरकार को घेरने का काम किया।कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं पर निशाना साधते हुए ट्विटर पर पोस्ट कर भाजपा सरकार को कहां है की डबल इंजन की सरकार ने हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था को डबल बीमार कर दिया है। थैलेसीमिया से पीडित 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ा दिया गया जिसका पता स्क्रिनिंग में हुआ।सरकारी लापरवाही की सजा इन मासूम बच्चों को भुगतनी पड़ रही है जो पहले से ही एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा है कि मामले की जांच कर कार्रवाई हो। कानपुर जिलें में संक्रमित खून चढ़ने से 14 बच्चों को एचआईवी और हेपेटाइटिस का संक्रमण हो गया।
जिसको प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लेते हुए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्राचार्य काला से बात की। प्राचार्य का कहना है, ब्लड हमारे हेलैट से दिया ही नहीं गया। हमारे ब्लड बैंक में जो मशीन काम करती है,इससे बेहतर अभी तक भारत में नही है।
बाल रेाग विभागध्यक्ष बयान पर प्राचार्य डॉ. संजय काला ने एक प्रेसवार्ता कर विभागध्यक्ष डॉक्टर अरूण आर्या के बयान को अनाधिकृत और गलत बताते हुए खण्डन किया। उन्होंने बताया कि हैलट अस्पताल में बच्चो को ब्लड नही चढ़ाया गया है। जो भी बच्चे संक्रामित हुए है वह स्कैनिंग करने पर जानकारी हुई है। इसमें मेडिकल कालेज के डाक्टर्स या ट्रासं फ्यूजन मेडिसन विभाग का कोई भी लेना देना नही है। डॉक्टर अरूण आर्या ने जो भी बयान दिया है वह अनाधिकृत और गलत है जिसका खण्डन किया जाता है। इन पर शासन ही कार्यवाही करेगा। लेकिन विभागीय स्तर पर गलत बयानबाजी के लिए कार्यवाही जरूर की जाएगी।
– तीन से चार हफ्ते में मरीजों को खून की पड़ती है जरूर
थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों को हर 3 से 4 हफ्ते के बीच ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है ऐसे में कभी-कभी मरीज अपनी सुविधा के अनुसार जो अस्पताल घर के पास हुआ वहां से खून चढ़ा लेते हैं उसे समय तो मरीज को नहीं पता चलता है लेकिन बाद में जब संक्रमण फैल चुका होता है तब मरीज को इसकी जानकारी होती है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है
-हर तीन से चार माह में होती है स्क्रीनिंग
इस मामले को लेकर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संजय काला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि मेडिकल कॉलेज में एक भी बच्चे को ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं किया गया है मेडिकल कॉलेज हमेशा ब्लड और मरीज की स्क्रीनिंग करता है ,
– अलग-अलग सेंट्ररो में चढ़ाया गया खून
इन सभी मरीजों को अलग-अलग सेंटरों पर खून चढ़ाया गया था। कोरोना कल के बाद थैलेसीमिया मरीजों की संख्या बढ़ी है। डॉक्टर आर्या के मुताबिक कोरोना काल के बाद से अस्पताल में थैलेसीमिया मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। पहले 40 से 45 थैलेसीमिया के मरीज आते थे, लेकिन अब मरीजो की संख्या काफी बढ़ गई है क्योंकि लोग लखनऊ या अन्य सेंटर पर ना जाकर कानपुर मेडिकल कॉलेज आ रहे हैं इन दिनों यहां करीब 180 मरीज आए है। यहां पर वर्ल्ड क्लास नायक मशीन के माध्यम से ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है।
-क्या है थैलीसीमिया
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है इस रोग होने पर मरीज को खून नहीं बन पाता है उनमें से लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या बहुत कम होती है यह रोक माता-पिता के जिन की गड़बड़ी होने के कारण बच्चों में रहता है खून न बनने के कारण मरीज को हर 3 से 4 हफ्ते में एक बार खून चढ़ाना पड़ता है। इस प्रेस वार्ता में मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉक्टर संजय काला,उप प्रधानाचार्य डॉक्टर रिचा गिरी,ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डॉक्टर लुबना खान,बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉक्टर अरुण आर्या ,डॉक्टर विकास मिश्रा,डॉक्टर सीमा द्विवेदी,डॉक्टर प्रियदर्शी ,डॉक्टर धनंजय चौधरी ,कई फैकल्टी में मेंबर उपस्थित रहे।