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जब यूपी के इस एक गांव के सैकड़ों लोगों ने की थी देश की पहरेदारी, क्षेत्र का नाम किया रोशन

हमीरपुर,  (हि.स.)। हमीरपुर जिले का एक गांव फौजियों का गढ़ माना जाता है। गांव के तीन सौ से ज्यादा लोगों ने देश की पहरेदारी कर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। भारत-चीन युद्ध में इस गांव के कई जांबाज लोग दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद भी हुए हैं। आज भी इस गांव के तीन दर्जन से ज्यादा लोग देश के सरहद पर पहरेदारी कर रहे हैं।

हमीरपुर जिले के राठ तहसील क्षेत्र के मझगवां मलेहटा गांव सैनिकों का गढ़ माना जाता है। इस गांव से तीन सौ से ज्यादा लोग आर्मी की सेवा में अपना जीवन बिताया है। करीब साढ़े पांच हजार की आबादी वाले इस गांव के रहने वाले प्रकाश सिंह सेकेंड राजपूत रेजीमेंट में सिपाही थे। इन्होंने वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान दुश्मनों से देश की सुरक्षा के लिए लोहा लिया था। ये नेफा में गोलाबारी में घायल हो गए थे। जो इलाज के दौरान 21 अक्टूबर 1962 में शहीद भी हो गए थे। इनके पिता शिवपाल सिंह भी इंडियन आर्मी में तैनात थे। उन्होंने भी वर्मा युद्ध में दुश्मन सैनिकों से लोहा लिया था।

फौज से रिटायर्ड हुए रणधीर सिंह (75) ने बताया कि शहीद प्रकाश सिंह के चाचा मंगली सिंह ने भी भारतीय सेना में तोपखाना शाखा में तैनात थे। वहीं उनके भाई हरी सिंह ने भी 16 राजपूत रेजीमेंट में नौकरी कर वर्ष 1965 व 1971 में युद्ध के दौरान दुश्मन सैनिकों से मोर्चा लिया था। इसी परिवार के फौजी केशव सिंह व धीरज सिंह ने भी आर्मी में सेवाएं दी है। इनका परिवार निरंतर तीन पीढ़ियों से भारतीय फौज में रहकर हमीरपुर का गौरव बढ़ा रहा है।

मलेहटा गांव निवासी लांसनायक रामनिवास सिंह ने 1962 के युद्ध में ऑपरेशन कैक्टस लिली में शामिल होकर मोर्चा लेते हुए दिव्यांग हो गए थे। मझगवां और मलेहटा के सैकड़ों लोगों ने देश की पहरेदारी में जीवन गुजारा, लेकिन इनके गांव का विकास फौजियों की उम्मीदों के मुताबिक नहीं हो सका। गांव में शहीदों के सम्मान के लिए आज तक एक इण्टरकॉलेज विद्यालय की स्थापना भी नहीं हो सकी। देश की पहरेदारी करने वाले तमाम फौजी अपने गांव में मायूस है।

शहीदों के परिवारों ने गांव छोड़ा, पुश्तैनी घर सन्नाटे में

इंडियन आर्मी से रिटायर्ड होने के बाद रणवीर सिंह मलेहटा गांव में रह रहे हैं। ये शहीद ज्ञान पाल सिंह के सगे भतीजे हैं। इनका सगा भाई विजय सिंह भी आर्मी से रिटायर्ड हो चुके हैं। बताया कि शहीद ज्ञान पाल सिंह के पारिवारिक नाती हर्ष प्रकाश सिंह गांव में ही रहते हैं। इनके दो बेटियां श्यामा व सुरजा है जो कानपुर में रहती हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। एक और शहीद की पत्नी उर्मिला देवी भी गांव छोड़ बेटियों के साथ कानपुर में रह रही हैं। मौजूदा में उनके पैतृक घर वीरान पड़े हैं। महेन्द्र पाल सिंह (70) ने बताया कि तीन पीढ़ियों से मझगवां मलेहटा के सैकड़ों लोग देश की सुरक्षा में जीवन गुजार चुके हैं। तीन दर्जन से अधिक लोग आज भी फौज में है।

विश्वयुद्ध में शहीद हुए परिजन आज भी पा रहे पेंशन

हमीरपुर में सैनिक एवं पुनर्वास विभाग की स्थापना 1944 में हुई थी। यहां का काम देख रहे विनोद सिंह ने बताया कि जिले में 1732 पूर्व सैनिक हैं, वहीं 269 उनकी विधवाएं हैं। बताया कि मौजूदा में 1975 पूर्व सैनिकों व आश्रितों को पेंशन डिपार्टमेंट से मिल रही है। बताया कि फौजी शिवपाल सिंह सेकेंड विश्वयुद्ध में शहीद हुए थे, जिनकी पत्नी पार्वती को हर माह पेंशन दी जा रही है। विनोद सिंह भी मझगवां के निवासी हैं। इन्होंने बताया कि मझगवां और मलेहटा फौजियों का गढ़ है। यहां से तीन सौ अधिक लोगों ने देश की पहरेदारी कर गांव का नाम रोशन किया है। बताया कि इस गांव में दो दर्जन से ज्यादा युवक फौज में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं।

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