– बुंदेलखंड की इस लोकसभा सीट पर भाजपा को हैट्रिक लगाना आसान नहीं
हमीरपुर (हि.स.)। बुंदेलखंड की हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर अब चुनाव प्रचार जोड़ पकड़ रहा है। इस सीट पर तीसरी बार कमल खिलाने के लिए मौजूदा सांसद व भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल जातीय समीकरण साधने में जुटे है। वहीं अबकी बार बहुजन समाज पार्टी और गठबंधन पार्टी (समाजवादी और कांग्रेस) के प्रत्याशी के कारण उनकी राहें आसान नहीं दिखती हैं। छठवें आम चुनाव से आज तक कोई भी लगातार तीसरी बार जीत कर संसद नहीं पहुंचा है। लेकिन इस रिकार्ड को तोड़ने के लिए भाजपा प्रत्याशी के साथ चुनाव प्रचार में लगी हैं।
बुंदेलखंड में हमीरपुर सदर, राठ, महोबा, चरखारी और तिंदवारी आदि पांच विधानसभा क्षेत्रों वाली लोकसभा की इस सीट पर किसी भी प्रत्याशी की जीत के लिए निर्णायक मतों की बड़ी भूमिका मानी जाती है। संसदीय क्षेत्र के राठ, चरखारी क्षेत्र में सर्वाधक लोधी मतदाता है जो किसी भी प्रत्याशी की चुनावी गणित को बिगाड़ सकता है। पिछले ढाई दशक पहले यहां की सीट बसपा के कब्जे में रही है। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के कार्ड पर बसपा ने कांग्रेस और भाजपा के मजबूत गढ़ को ढहा दिया था। लगातार पार्टी का जनाधार बढऩे और जातीय समीकरणों के खेल में इस संसदीय सीट पर दो बार बसपा ने कब्जा किया था। लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी मैजिक में भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के क्षेत्र से ही बाहर कर दिया था। भाजपा का संसदीय सीट पर कब्जा पिछले दो आम चुनावों से लगातार बरकरार है।
कांग्रेस के एमएल द्विवेदी लगातार तीन बार जीत कर पहुंचे थे लोकसभा
देश में 1952 के आम चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी एमएल द्विवेदी ने हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर कब्जा किया था। उन्हें 32.7 फीसदी मत मिले थे। एमएल द्विवेदी 1957 के लोकसभा चुनाव में दोबारा सांसद बने थे। उन्होंने बहुत ही कम वोटों के अंतर से जीत दर्ज कराई थी। उनके खाते में सिर्फ 28.6 फीसदी मत आए थे जबकि 28.2 फीसदी मत लेकर आरएसए के प्रत्याशी लक्ष्मीराम दूसरे स्थान पर रहे थे। एमएल द्विवेदी 1962 के आम चुनाव में तीसरी बार सांसद बने थे। उन्हें 47.9 फीसदी मत मिले थे। ईमानदार और सरल स्वाभाव के ये माननीय लगातार तीन बार यहां की संसदीय सीट से सांसद रहे हैं।
छठवें चुनाव से लेकर अब तक दो प्रत्याशियों को लगातार दो बार मिली थी जीत
1967 में लोधी बिरादरी के स्वामी ब्रह्मनंद महाराज भारतीय जनसंघ पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में आए थे। ये पहली बार 54.1 फीसदी मत लेकर सांसद बने थे। और तो और 1971 कांग्रेस पार्टी में आकर दोबारा चुनाव मैदान में आए और फिर सांसद बने। लेकिन 1977 के आम चुनाव में ये हार गए थे। स्वामी ब्रह्मनंद यहां की सीट पर हैट्रिक नहीं लगा सके। इसी तरह से गंगाचरण राजपूत 1989 में पहली बार सांसद बने थे। लेकिन 1991 में ये चुनाव हार गए थे। गंगाचरण ने 1996 में भाजपा का कमल खिलाया। जबकि 1998 के चुनाव में लगातार दोबारा सांसद बने लेकिन 1999 में ये तीसरे स्थान पर चल गए थे।
एक दशक से सीट पर काबिज भाजपा प्रत्याशी रिकार्ड तोडऩे को बहा रहे पसीना
हमीरपुर-महोबा संसदीय क्षेत्र के मौजूदा सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल भी लगातार दो बार बंपर वोटों से जीत दर्ज करा चुके है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ये पहली बार मोदी मैजिक में सांसद बने थे। जबकि 2019 के आम चुनाव में भी ये दोबारा जनादेश पाकर लोकसभा पहुंचे थे। यहां की सीट पर तीसरी बार कब्जा बरकरार रखने के लिए ये फिर से चुनाव मैदान में है। इन्हें घेरने के लिए विपक्ष एकजुट है। पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल महोबा के रहने वाले है जबकि बसपा के निर्दाेष दीक्षित व गठबंधन से अजेन्द्र सिंह राजपूत भाजपा की घेराबंदी कर मुश्किलें खड़ी कर रहे है। एक दूसरे के मजबूत गढ़ में सेंधमारी भी कर रहे है।